2022-10-07 06:15:43
बंगाल में दलित परिवार में जन्मे महानायक जोगेन्द्र नाथ मंडल जी बहुत समय तक गुमनाम रहे जबकि उनके कामों का आंकलन करें तो वो इस समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और सामयिक रहे हैं। आजतक भी इस महानायक के नाम से बड़ी संख्या में लोग वाकिफ नहीं हैं। इस महानायक का जन्म 29 जनवरी 1904 को बंगाल प्रेसीडेंसी में बरीसाल जिले के मइसकड़ी में एक दलित परिवार के घर हुआ था। इनकी माता का नाम संध्या और पिताजी का नाम रामदयाल मंडल था। जोगेन्द्रनाथ 6 भाई-बहन थे जिनमें यह सबसे छोटे थे। जोगेन्द्र ने सन 1929 में बी.ए. पास कर पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले ढाका और बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की थी । जोगेन्द्र नाथ पढाई में कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी थे। उन्होंने राजनीति शास्त्र में एमए की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने एलएलबी की परीक्षा भी पास की। उसके बाद वे वकालत का पेशा करने लगे। वकालत पर उनकी पकड़ बहुत अच्छी थी और कुछ ही समय में वे एक जानेमाने और प्रतिष्ठित वकील बन गए। वकालत में उनकी बडी धाक थी। वकालत के साथ साथ वे सामाजिक कार्यों और राजनीति से भी जुड गये। सन 1937 में उन्हें जिला काउन्सिल के लिए मनोनीत किया गया। सन 1937 में वे बंगाल विधानसभा के लिए चुने गए। सन 1939-40 तक वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आये मगर, जल्दी ही उन्हें अहसास हो गया कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके अपने समाज के लिए ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं है इसके बाद वो मुस्लिम लीग से जुड़ गये। जोगेन्द्र नाथ मंडल मुस्लिम लीग के खास सदस्यों में से एक थे। उनकी योग्यता, कर्मठता और सूझबूझ के कारण वे बंगाल विधानसभा के विधायक भी बने। इसके बाद वे बंगाल सरकार में मंत्री भी बनाये गये। जोगेन्द्रनाथ जी में संगठन बनाने की अद्भुत क्षमता थी। उस समय बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का दलित समाज के उत्थान के लिए आंदोलन अपने चरम पर चल रहा था। डॉ अंबेडकर ने लंदन में हुए तीनों गोलमेज सम्मेलनों में अछूत वर्ग की समस्याओं को ब्रिटिश सरकार के सामने रखा और अछूत वर्ग के लोगों की दयनीय और नारकीय स्थिति से ब्रिटिश सरकार को अवगत कराया। अछूत वर्ग के उद्धार के लिए और उनके जीवन स्तर को ऊपर लाने के लिए डॉ. अम्बेडकर ने ब्रिटिश सरकार के सामने अनेक मांग रखी और इनके लिए विशेष कानून बनाकर इनको देश की मुख्य धारा में लाने के लिए निवेदन किया। अंग्रेज सरकार ने डॉ. अम्बेडकर की अधिकतर मांगों को मान लिया। जुलाई सन 1942 में डॉ. अंबेडकर को वायसराय की कार्यकारिणी में श्रममंत्री बनाया गया। डॉ. अम्बेडकर ने इसी दौरान अखिल भारतीय शैड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना की। जोगेन्द्रनाथ मंडल जी को फेडरेशन की बंगाल शाखा की जिम्मेदारी सौंपी। जुलाई 1942 में जोगिन्द्रनाथ जी ने नागपुर में शैड्यूल्ड कास्ट फेडरोशन के प्रथम अधिवेशन में भाग लिया।
3 जून 1946 को ब्रिटिश सरकार ने भारत को आजादी देने का निर्णय किया और अन्तरिम सरकार बनाने की घोषणा की। इसके साथ ही संविधान सभा का गठन करने की घोषणा भी की। इसी संविधान सभा को भारत का संविधान बनाने की जिम्मेदारी थी। संविधान सभा के लिए चुनाव कराने की प्रक्रिया भी जारी की। डॉ. अम्बेडकर महाराष्ट्र के रहने वाले थे लेकिन वहां से उनका चुनकर संविधान सभा में जाना असंभव था। जोगेन्द्रनाथ जी डॉ. अंबेडकर को अपना नेता मानते थे, उनके लिए बहुत श्रद्धा रखते थे। उनका यह दृढ़ निश्चय था कि अछूत वर्गों के लिए जी जान से लडने वाले डॉ. अम्बेडकर को हर हाल में संविधान सभा में भेजना चाहिए। उस समय जोगेन्द्रनाथ मंडल बंगाल विधानसभा में शैड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन के इकलौते सदस्य थे। जोगेन्द्र नाथ मंडल जी ने इस बात का बीडा उठाया कि डॉ. अम्बेडकर को हर हाल में बंगाल से चुनकर संविधान सभा में भेजना है। उन्होंने इसके लिए डॉ. अम्बेडकर से बात की और उन्हें इस बात के लिए सहमत कर लिया। डॉ. अम्बेडकर ने बंगाल जाकर अपने नामांकन पत्र भरने की औपचारिकता पूरी की। जोगेन्द्र नाथ मंडल जी ने पुरुष और महिला कार्यकर्ताओं की एक सर्मपित टीम बनाई। इस टीम ने दिनरात एक करके बहुत समर्पण भावना से काम किया। उस समय बंगाल विधानसभा में शूद्र व अछूत सदस्यों की अच्छी संख्या थी। इस टीम के सदस्यों ने प्रत्येक सदस्य के साथ संपर्क किया और उनको हर तरह से समझाकर डॉ. अम्बेडकर को जिताने के लिए समर्थन मांगा। इस मुहिम के पीछे जोगेन्द्र नाथ मंंंडल जी थे और हर तरह की योजना बनाकर वे इस काम को अंजाम देने में लगे हुए थे। जोगेन्द्र नाथ मंडल जी और उनकी टीम की मेहनत रंग लाई और डॉ. अम्बेडकर अच्छे मतों से विजयी हुए। डॉ. अम्बेडकर को संविधान सभा के लिए विजयी बनाने में माननीय जोगेन्द्र नाथ मंडल का यह कार्य उनका अछूतों के लिए बहुत बड़ा त्याग है। यदि वे चाहते तो इतनी मेहनत से बंगाल विधानसभा से स्वयं भी संविधान सभा के लिए चुने जा सकते थे। उनका यह त्याग डॉ. अम्बेडकर के साथ इस देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा और उन्हें हमेशा-हमेशा इसके लिए याद किया जायेगा। इस प्रकार जोगेन्द्र नाथ मंडल जी के प्रयास से अछूत वर्ग के लोगों को अधिकार मिलने की नींव रख दी गयी। डॉ. अम्बेडकर की इस महा विजय से हिन्दूवादी और सांप्रदायिक शक्तियों के सीने पर सांप लेट गये और वे हतप्रभ रह गये। माननीय जोगेन्द्र नाथ मंडल जी का भीम प्रयास जिसके कारण डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा में पहुंचे, स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। और हमेशा उन्हें डॉ. अम्बेडकर के साथ इस महान काम के लिए याद किया जायेगा।
जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हो गया। इस सरकार में कांग्रेस व अन्य दल शामिल हो गये लेकिन मुस्लिम लीग ने अंतरिम सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया। कुछ समय बाद कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता हो गया और मुस्लिम लीग ने सरकार में शामिल होना मान लिया। जोगेन्द्र नाथ मंडल ने मुस्लिम लीग के साथ समझौता कर लिया था इसलिए मुस्लिम लीग के कोटे से सन 1946 में वे अंतरिम सरकार में कानून मंत्री बनाये गये।
15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत के विभाजन के बाद, मंडल पाकिस्तान के संविधान सभा के सदस्य और अस्थायी अध्यक्ष बने, और पहले कानून और श्रम मंत्री के रूप में सेवा करने पर सहमत हो गए। सरकार का उच्चतम स्थान वाला हिंदू सदस्य 1947 से 1950 तक वह पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी कराची के बंदरगाह शहर में रहते थे।
जोगेन्द्र नाथ मंडल पाकिस्तान के आधुनिक राज्य के मध्य और प्रमुख संस्थापक पिता में से एक थे, और देश के पहले कानून मंत्री और श्रमिक के रूप में सेवा करने वाले विधायक थे और वे राष्ट्रमंडल और कश्मीर मामलों के दूसरे मंत्री भी थे। एक भारतीय और बाद में पाकिस्तानी नेता जो पाकिस्तान में कानून और श्रम के पहले मंत्री थे। अनुसूचित जातियों (दलितों) के नेता के रूप में, जोगेंद्रनाथ ने मुस्लिम लीग के साथ पाकिस्तान के लिए अपनी मांग के साथ आम कारण बना दिया था, उम्मीद करते थे कि अनुसूचित जातियों को इसके लाभ मिलेगा और पाकिस्तान के पहले कैबिनेट में शामिल हो गए थे। कुछ समय बाद उन्होंने महसूस किया कि पाकिस्तान के नेता पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों तथा दलितों के हितों की उपेक्षा करते हंै। इससे वे अंदर ही अंदर दुखी होते थे और उन्होंने यह पाया कि जिस मतलब के लिए वे पाकिस्तान सरकार में शामिल हुए थे, वह पूरा नहीं हो रहा। इसलिए माननीय जोगेन्द्रनाथ मंडल ने 1950 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा देने के बाद वे वापस भारत लौट आये, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के विरोधी हिंदू पूर्वाग्रह का हवाला दिया गया था। उन्होंने अपने त्याग पत्र में सामाजिक अन्याय और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार से संबंधित घटनाओं का उल्लेख किया। भारत लौटने के बाद महान जोगेन्द्र नाथ मंडल जी एक गुमनाम व्यक्ति जैसा जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हो गये। उनको यहां की सरकार और यहां की जनता ने भी नजरअंदाज किया। अंत में कुछ वर्ष गुमनामी की जिन्दगी जीने के बाद 5 अक्टूबर, 1968 को पश्चिम बंगाल के बनगांव में उन्होंने अंतिम सांस ली ।
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