2022-09-15 08:31:29
बृहद्रथ मौर्य (187 ई.पू. से 185 ई.पू.) मौर्य वंश का अंतिम शासक था। यह अपने प्रधान सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा मारा गया। इसके बाद भारत में बौद्ध धर्म को अनेक षयड़त्रों द्वारा नष्ट किया गया और हिन्दू धर्म को जोर शोर से स्थापित किया गया। इस प्रकार भारत में जन्मा बुद्ध धर्म इस देश से लुप्त प्राय हो गया। श्रीलंका में जन्मे अनागारिक धर्मपाल ही वह प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान थे जिन्होंने इस देश में बुद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने का बीडा उठाया।
इनका जन्म श्रीलंका में 17 सितंबर 1864 को हुआ। पिता का नाम डान करोलिंस हेवावितारण तथा माता का मल्लिका था। इनका नाम डान डेविड रखा गया। शिक्षाकाल से ही इन्हें ईसाई स्कूलों में पढ़ने यूरोपीय रहन-सहन और विदेशी शासन से घृणा हो गई थी। शिक्षासमाप्ति पर प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान भदंत हिवकडुवे श्रीसुमंगल नामक महास्थविर से पालि भाषा की शिक्षा और बौद्ध धर्म की दीक्षा ली तथा अपना नाम बदलकर अनागरिक (संन्यासी) धर्मपाल रखा और सार्वजनिक प्रचार कार्य के लिए एक मोटर बस को घर बनाया और उसका नाम शोभन मालिगाँव रखकर गाँव-गाँव घूमते विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा बौद्ध धर्म का संदेश देने लगे। प्रथम महायुद्ध के समय ये पाँच वर्षों के लिए कलकत्ता में नजरबंद कर दिए गए। महाबोधि सभा (महाबोधि सोसायटी) इनके ही प्रयत्न से स्थापित हुई। मेरी फास्टर नामक एक विदेशी महिला ने इनसे प्रभावित होकर महाबोधि सोसायटी के लिए लगभग पाँच लाख रुपए दिए थे।
13 जुलाई 1931 को उन्होंने प्रव्रज्या ली और उनका नाम देवमित धर्मपाल हुआ। 1933 की 16 जनवरी को प्रव्रज्या पूर्ण हुई और उन्होंने उपसंपदा ग्रहण की, नाम पड़ा भिक्षु श्री देवमित धर्मपाल। 29 अप्रैल 1933 को 69 वर्ष की आयु में इहलीला संवरण की। उनकी अस्थियाँ पत्थर के एक छोटे से स्तूप में मूलगंध कुटी विहार के पार्श्व में रख दी गई।
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