2023-08-14 09:03:57
लगभग 50 साल तक राजनीति में सक्रिय रहे रामस्वरूप वर्मा को राजनीति का कबीर कहा जाता है। किसान परिवार में जन्मे वर्मा ने एक लेखक, समाज सुधारक और चिंतक के रूप में उत्तर भारत पर गहरा असर डाला। एक ऐसे वक्त में जब अंधश्रद्धा का विरोध करने वाले लेखकों नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे व एमएम कलबुर्गी आदि को इसके लिए अपनी जान गंवानी पड़ रही है और बड़ी संख्या में ऐसे संगठनों और लोगों को अतिवादियों की धमकियों और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है तो आज से करीब पांच छह दशक पहले इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले राम स्वरूप वर्मा की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के गौरीकरन नामक गांव के एक किसान परिवार में 22 अगस्त 1923 को जन्मे राम स्वरूप वर्मा का ध्येय एक ऐसे समाज की संरचना करना था जिसमें हर कोई पूरी मानवीय गरिमा के साथ जीवन जी सके। आचार्य नरेंद्र देव और राम मनोहर लोहिया के करीबी रहे रामस्वरूप वर्मा कई बार विधायक चुने गए थे। वे 1967 में चौधरी चरण सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री भी रहे। प्रखर एवं प्रतिबद्ध समाजवादी रामस्वरूप वर्मा आजादी के बाद भारतीय राजनीति में उस पीढ़ी के सक्रिय राजनेता थे, जिन्होंने विचारधारा और व्यापक जनहितों की राजनीति के लिये अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।
1957 में रामस्वरूप वर्मा सोशलिस्ट पार्टी से भोगनीपुर विधानसभा से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गये, उस समय उनकी उम्र 34 वर्ष थी। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से, 1969 में निर्दलीय, 1980, 1989 में शोषित समाज दल से विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए, 1999 में छठी बार शोषित समाज दल से विधानसभा के सदस्य चुने गये।
उन्होंने ‘अर्जक संघ’ की स्थापना 1 जून, 1968 को की थी। अर्जक संघ मानववादी संस्कृति का विकास करने का काम करता है। इसका मकसद मानव में समता का विकास करना, ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करना और सबकी उन्नति के लिए काम करना है। संघ 14 मानवतावादी त्योहार मनाता है। इनमें गणतंत्र दिवस, आंबेडकर जयंती, बुद्ध जयंती, स्वतंत्रता दिवस के अलावा बिरसा मुंडा और पेरियार रामास्वामी की पुण्यतिथियां भी शामिल हैं। अर्जक संघ के अनुयायी सनातन विचारधारा के उलट जीवन में सिर्फ दो संस्कार ही मानते हैं- विवाह और मृत्यु संस्कार। शादी के लिए परंपरागत रस्में नहीं निभाई जातीं। लड़का-लड़की संघ की पहले से तय प्रतिज्ञा को दोहराते हैं और एक-दूसरे को वरमाला पहनाकर शादी के बंधन में बंध जाते हैं। मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार मुखाग्नि या दफना-कर पूरा किया जाता है, लेकिन बाकी धार्मिक कर्मकांड इसमें नहीं होते। इसके 5 या 7 दिन बाद सिर्फ एक शोकसभा होती है। अर्जक संघ के मुताबिक, दरअसल हमारे हिंदू समाज में जन्म के आधार पर बहुत ही ज्यादा भेदभाव किया गया है। कोई पैदा होते ही ब्राह्मण, तो कोई वाल्मीकि होता है। ब्राह्मण समाज धर्मग्रंथों का सहारा लेकर सदियों से नीची जातियों का दमन करते आए हैं। उनके बारे में भाषाविद राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं, रामस्वरूप वर्मा सिर्फ राजनेता नहीं थे, बल्कि एक उच्चकोटि के दार्शनिक, चिंतक और रचनाकार भी थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की है। ‘क्रांति क्यों और कैसे’, ‘मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद’, ‘मानववाद प्रश्नोत्तरी’, ‘ब्राह्मणवाद महिमा क्यों और कैसे’, ‘अछूतों की समस्या और समाधान’, ‘आंबेडकर साहित्य की जब्ती और बहाली’, ‘निरादर कैसे मिटे’, ‘शोषित समाज दल का सिद्धांत’, ‘अर्जक संघ का सिद्धांत’, ‘वैवाहिक कुरीतियां और आदर्श विवाह पद्धति’, ‘आत्मा पुनर्जन्म मिथ्या’, ‘मानव समता कैसे’, ‘मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक’ आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
वे कहते हैं, वर्मा की अधिकांश रचनाएं ब्राह्मणवाद के खिलाफ हैं। पुनर्जन्म, भाग्यवाद, जात-पात, ऊंच-नीच का भेदभाव और चमत्कार सभी ब्राह्मणवाद के पंचांग हैं जो जाने-अनजाने ईसाई, इस्लामी, बौद्ध आदि मानववादी संस्कृतियों में प्रकारांतर से स्थान पा गए हैं। वे मानववाद के प्रबल समर्थक थे। वे मानते थे कि मानववाद वह विचारधारा है जो मानव मात्र के लिए समता, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।
रामस्वरूप ने आंबेडकर की पुस्तक जब्ती के खिलाफ आंदोलन भी किया था। डॉक्टर भगवान स्वरूप कटियार द्वारा संपादित किताब ‘रामस्वरूप वर्मा: व्यक्तित्व और विचार’ में उपेंद्र पथिक लिखते हैं, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘जाति भेद का उच्छेद’ और ‘अछूत कौन’ पर प्रतिबंध लगा दिया तो रामस्वरूप ने ‘अर्जक संघ’ के बैनर तले सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया, साथ ही ‘अर्जक संघ’ के नेता ललई सिंह यादव के हवाले से इस प्रतिबंध के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा दिया। वर्मा जी खुद कानून के अच्छे जानकार थे। अंतत: मुकदमे में जीत हुई और उन्होंने सरकार को आंबेडकर के साहित्य को सभी राजकीय पुस्तकालयों में रखने की मंजूरी दिलाई।
उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ लेखक ‘मुद्राराक्षस’ कहते थे, यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इतना मौलिक विचारक और नेता अधिक दिन जीवित नहीं रह सका, लेकिन इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि समाज को इतने क्रांतिकारी विचार देने वाले वर्मा को उत्तर भारत में लगभग पूरी तरह से भुला दिया गया। रामस्वरूप वर्मा ने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनकी दिलचस्पी राजनीति से अधिक सामाजिक परिवर्तन में थी। वह वैज्ञानिक चेतना पर जोर देते थे। उनका निधन 19 अगस्त, 1998 को लखनऊ में हुआ।
एक ऐसे वक्त में जब ब्राह्मणवाद द्वारा नये-नये तरीकों से फैलाये गए अंधविश्वास, पाखंडवाद और सांप्रदायिकता आज भी मुंह बाये खड़े हैं। उनके खिलाफ सिर्फ अतिवादियों से ही नहीं बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था से भी लड़ना है तो क्रांतिकारी राम स्वरूप वर्मा जी के वैज्ञानिक, तर्कयुक्त और पाखंड से दूर विचार समाज के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं।
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