2023-08-07 09:10:48
9 अगस्त का दिन इतिहास (history of 9 august) में मूल निवासी दिवस के रूप में विद्यमान है। भारत सहित विश्व में अनेक स्थानों पर सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन कुछ संकेत देकर जाता है। भारत के जनजाति क्षेत्रों में इस दिन को ‘आदिवासी दिवस’ (Tribal Day) कहते हैं। आज इस दिन को भारत में मनाने की क्या प्रासंगिकता है, इसके बारे विचार करे।
पहली बात तो ये कि 9 अगस्त को जिसे भारत में ‘आदिवासी दिन’ (Tribal Day) कहा जाता है वह वास्तव में ‘विश्व मूलनिवासी दिवस’ है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यदि विश्व मूलनिवासी दिवस मनाया जाता है तो उसका उद्देश्य यह कि अतीत में विश्व के कई देशों में वहां के मूलनिवासियों पर हुए अत्याचारों के बारे में जब समाज को जानकारी मिली और उसके मध्य का सच सबके सामने आया तो उनके साथ हुए अन्याय को राष्ट्रीय स्तर पर सबके सामने लाने की बात सामने आयी। जिसमें तय हुआ कि इस दिन को विश्व मूलनिवासी दिवस (International Day of the Worlds Indigenous Peoples) का दर्जा देकर प्रतिवर्ष बनाया जाए।
यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका खंड के देशों में साम्राज्यवादी ताकतों ने स्थानीय मूलनिवासियों पर आक्रमण कर अमानवीय अत्याचार किये, उनकी संस्कृति को नष्ट किया, वहां अपने उपनिवेश-कॉलोनियां बनाई। कहीं-कहीं तो सम्पूर्ण मूलनिवासी समाज को नष्ट कर अपनी बस्ती बनाई। 13 फरवरी 2008 को आस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रूड ने इस संदर्भ में संसद में सार्वजनिक रूप में वहां के मूलनिवासियों से माफी भी मांगी थी।
आज वक्त बदला है। विश्व में हम परिवर्तन देख सकते हैं। जनजातीय समाज में आयी जागृति के कारण आज समाज अपने अधिकारों के लिए आगे आया है। ऐसे में जनजातीय समाज ‘विश्व मूलनिवासी दिवस’ मनाए, उनके लिये एकता प्रकट करे तो उसमें कुछ अनुचित नहीं। परन्तु भारत में इसके मनाने की प्रासंगिकता पर विचार आवश्यक है।
भारत में मूलनिवासी कौन है?
भारत में वे सभी भारतीय जो यहां की श्रवण संस्कृति में विश्वास करते थे वे वास्तव में यहाँ के मूलनिवासी हैं। भारत के संविधान ने जिस समाज को अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित किया है उसके विकास हेतु कई प्रकार के प्रयास चल रहे हैं। संविधान में जनजाति समाज के लिये कई अधिकारों का प्रावधान है। विश्व में मूलनिवासियों के अधिकारों की जो बात आज चल रही है वैसे अधिकार (उससे भी अधिक) भारतीय संविधानकर्ताओं ने पहले से ही जनजाति समाज को दिए हैं। इसलिए विश्व के अन्य देशों में मूलनिवासियों के अधिकारों की लड़ाई और भारत में जनजाति अधिकारों की बात में बहुत अंतर है। एक बात है कि स्वतंत्रता के बाद जनजाति समाज के विकास हेतु जिन योजनाओं की सरकार ने आज तक घोषणा की है उसका लाभ वास्तव में जनजाति समाज को नहीं मिला है। सरकारी अधिकारियों के रवैये के कारण समाज के अंतिम पंक्ति में खडे व्यक्ति तक लाभ नहीं पहुंच सका है। इसके लिये जनजाति समाज को अपनी बात करना उचित एवं न्यायपूर्ण कह सकते हैं। परन्तु विश्व के अन्य देशों में अपने अधिकारों के लिये जिस प्रकार की भाषा बोली जाती है वैसी स्थिति भारत में नहीं है।
भारत में कुछ लोग ‘आदिवासी दिवस’ के नाम पर अपनी राजनीति कर रहे हैं, उसे भी समझने की आवश्यकता है। जनजाति समाज को संम्पूर्ण समाज के साथ जोड़ने के बदले अलग पहचान की बात होती हो तो उसमें देशहित नहीं है। जनजाति समाज के पढ़े-लिखे युवकों को इसे समझने की आवश्यकता है। वैसे भी अपने जनजाति बन्धुओं में शिक्षा का प्रतिशत कम है। इसलिये कोई भी आए और अपनी बात कहने के बहाने कुछ भी समझाये- ये कितना उचित होगा? ‘हमें अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करना पड़े तो हम संघर्ष करेंगे परन्तु अपने अधिकार लेकर ही रहेंगे’, यह सुनने के लिये तो अच्छा लगता है। परन्तु भाषण के बाद आंदोलन और इसका परिणाम यदि हिंसा में परिवर्तित होता हो तो कदापि उचित नही, इससे जनजाति को ही परेशानी होगी। जागृत जनजातीय युवकों को ऐसे स्वार्थी तत्वों की मनसा को समझना होगा। इससे अपने समाज को बचाना होगा। ‘आदिवासी दिवस’ के नाम पर यदि अलगाव की भावना बढ़ती है तो वह न जनजाति समाज के हित में है और न देश के हित में।
हमें एक बात को स्पष्ट रूप से जानने की आवश्यक है कि हम समाज को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं, न कि तोड़ने का। जनजातीय समाज सम्पूर्ण समाज का अभिन्न अंग था और आज भी है, इसमें कोई भी दो राय नहीं है। यदि कोई हमारे जनजाति बन्धुओं को सम्पूर्ण समाज से अलग कर उसकी अलग पहचान बनाना चाहता है तो वह देश की एकता एवं अखण्डता के लिए संकट ही होगा। वास्तव में सांस्कृतिक विरासत को लेकर समाज को जोड़ने का कार्य करने की आवश्यकता है। जनजातीय समाज का विकास हो सके इसके लिए शिक्षा, आरोग्य, रोजगार चलाते हुए प्रयास होने चाहिए। 9 अगस्त को विश्व मूलनिवासी दिवस (International Day of the Worlds Indigenous Peoples) पर जनजाति समाज के उत्थान हेतु बात हो और वह भी सकारात्मक भाषा में हो तो उसकी प्रासंगिता रहेगी।
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