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2024 लोकसभा चुनाव से निकले ये बड़े संदेश

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2024-06-08 10:36:55

देश की जनता ने मोदी के नेतृत्व और उसके पाखंडी प्रपंचों को नकार दिया है। लेकिन उनकी मानसिकता में मुसोलिनी की तानाशाही का संघी अंश होने के कारण वे सत्ता में बने रहने की अनैतिक और बेशर्मी भरी कोशिश करते रहेंगे।

मोदी के अथक परिश्रम के बावजूद भी कांग्रेस जिंदा है: 2014 में मोदी की अगुआई में बीजेपी जब सत्ता में आयी थी तो मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। मनुवादी पाखंडों और प्रपंचों के चलते कुछ वर्षों तक यह नारा हकीकत होता भी दिखा। कांग्रेस ने अपना बद-से-बदत्तर दौर देखा। कांग्रेस को दो बार मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी नहीं मिल पाया। लेकिन 2024 में कांग्रेस ने संघी भाजपाईयों को संदेश दिया है कि वह अभी जिंदा है। कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर अंधभक्तों व पाखंडियों के द्वारा दिखाये जा रहे सभी एक्जिट पोल को विफल और निरर्थक कर दिया है।

बीजेपी कमजोर हुई है, उसे देशहित में जड़ से खत्म करना अभी बाकी है: संघी भाजपा अपने दम पर बहुमत पाने में नाकाम रही है, लेकिन वह अपने गठबंधन (एनडीए) से 240 लोकसभा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। पार्टी का उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में विस्तार भी हुआ है। उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में पार्टी राज्य की सत्ता में आ रही है। केरल में भी भाजपा का खाता खुला है लेकिन उत्तर प्रदेश में राम मंदिर की स्थापना और उसमें प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन भी मोदी व उसके पाखंडी प्रपंची नरेटिव जैसे ‘जो राम को लाये हैं हम उनको लाएँगे’ पूरी तरह विफल रहे हैं। संघी भाजपा अयोध्या की सीट भी नहीं बचा पाई है। इससे संदेश साफ है कि उत्तर प्रदेश की जनता मोदी-योगी के तांडवी पाखण्डों व प्रपंचों से निजात पाने की कोशिश कर रही है। संदेश यह भी निकलता है कि अगर आज उत्तर प्रदेश की विधान सभा के चुनाव कराए जाये तो मोदी-योगी के प्रपंची स्लोगन पूरे प्रदेश में शायद 50 सीट भी नहीं जीत पायें।

मजबूर सरकार बनाना मोदी-भाजपा की मजबूरी: मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने अपने उद्बोधन में कहा था कि ‘बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) के लिए मजबूत सरकार नहीं चाहिए, हमें मजबूर सरकार चाहिए, चूंकि मजबूत सरकार हमेशा गरीबों, दलितों, अति पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न व शोषण करती है। भारत जैसे विविधता पूर्ण देश में मजबूर सरकार ही जन उपयोगी नीतियाँ बना भी सकती है और उनके लिए योजना बनाकर काम भी कर सकती है। मजबूत सरकार बनने पर सरकार का रवैया तानाशाही हो जाता है। देश की जनता ने मोदी-संघियों के 10 साल के शासन में गंभीर तानाशाही देखी। इस मनुवादी संघी शासन में तानाशाह के द्वारा जनता का उत्पीड़न और शोषण चरम पर रहा है। सरकार की सभी नीतियाँ ब्राह्मण और व्यापारी वर्गों के पक्ष में खड़ी की गई। देश में नौजवानों को रोजगार पाने से वंचित किया गया। देश की जनता महँगाई और बेरोजगारी से त्रस्त होकर त्राहि-त्राहि कर रही है और मोदी शासन से छुटकारा चाहती है।

देश में लौट रहा है गठबंधन युग: लोकसभा चुनाव के नतीजों से संदेश निकल रहा है कि देश में फिर से गठबंधन राजनीति का दौर लौटकर आ रहा है। नरेंद्र मोदी की पहली दो पारियों में भाजपा बहुमत में थी लेकिन इस तीसरी पारी में सहयोगियों की बैसाखी पर निर्भर रहना होगा। छोटे दलों और सहयोगियों की अहमियत बढ़ जाएगी। मोदी पहली बार शायद गठबंधन की सरकार की अगुआई करेंगे। मोदी की तानाशाही प्रवृति गठबंधन की सरकार की अगुआई के लिए शायद कामयाब नहीं रहेगी और सरकार के गिरने का हमेशा खतरा बना रहेगा।

सरकार का स्वरूप बदलेगा: सरकार का जब गठन होगा तो उसमें बहुत बदलाव देखने को मिल सकते हैं चूंकि सहयोगी दलों की मानसिकता मोदी से फिट नहीं बैठती। पहली दो पारियों में भाजपा को बहुमत था, मोदी ने अपनी शर्तों पर टीम बनाई थी लेकिन इस बार ऐसा करना मुमकिन नहीं है। सहयोगी दल सरकार की संभावित टीम में अपनी शर्तें थौंप सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में मोदी की तानाशाही मानसिकता कैसे सामंजस्य बैठाएगी और यह देखना दिलचस्प होगा।

मंडल की वापसी: 2024 के चुनाव में जाति का फैक्टर वर्षों बाद प्रभावी होते दिख रहा है और शायद अभी यह फैक्टर सामाजिक न्याय की लड़ाई में प्रमुख मुद्दा बनेगा। 2014 के बाद से संघी मोदी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के रथ पर सवार होकर सामाजिक न्याय की लड़ाई को पीछे छोड़ दिया था। अब पिछड़े वर्ग के युवक-युवतियां सरकार में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जागरूक हो रहें है। मान्यवर साहेब कांशीराम जी के बाद आज अति पिछड़ी जातियां सरकार में अपनी भागीदारी के लिए जन संघर्ष खड़ा करेंगे जो देश में सामाजिक न्याय के लिए एक अच्छा मुद्दा होगा।

मनुवादी-ब्राह्मणी संस्कृति और छलावों से मोदी ध्वस्त: मोदी ने अपने 10 साल में ब्राह्मणी संस्कृति के छलावों को बढ़ाकर देश में ब्राह्मणवाद को मजबूत किया है। लेकिन मोदी के इन पाखंडी छलावों से पिछड़े वर्ग की जनता अब वास्तविक तथ्यों को समझ रही है और वह अब ब्राह्मणवादी काल्पनिक देवी-देवताओं, भगवानों के पाखंड में फँसना नहीं चाहती। अब अति पिछड़ी जातियों को अपने संख्याबल के आधार पर सरकार में पूरी भागीदारी चाहिए।

मोदी के खोखले नारों व झूठे वायदों से जनता त्रस्त: मोदी संघियों ने अपने 10 साल के शासन में देश की जनता को झूठ परोसे है, झूठे वायदे किये हैं। मोदी-संघियों ने आजतक एक भी जनता से किया गया वायदा पूरा नहीं किया है। मोदी-संघियों की महारथ देश की जनता को झूठ परोसने, भविष्य के सपने दिखाने की रही है जिसे अब देश की जनता सुनना नहीं चाहती। अब देश की जनता को किये गए वायदे पूरे चाहिए और उन्हें वर्तमान में वायदों के अनुसार जमीन पर काम भी दिखना चाहिए। जनता अब मोदी के इस जाल में नहीं फँसने वाली कि विश्व में मोदी का ढँका बज रहा है और मोदी कह रहे कि 2047 में भारत विकसित राष्ट्र बनेगा। ऐसी झूठी कपोल कल्पित बेबुनियादी धारणाओं को जनता अब खरीदना नहीं चाहती।

राजनैतिक दलों की ‘एकला चलो’ की नीति फेल: देश में जितने भी छोटे राजनैतिक दल है उनका अहम उनके कद से बड़ा हो गया है। उन्हें देश व समाज की वास्तविक धरातल पर चलने की आदत नहीं है। छोटे राजनैतिक दलों को जनता की इच्छा को परखने की समझ होनी चाहिए और जनता की वास्तविक इच्छा को समझकर, जनता के साथ विचार-विमर्श करके वास्तविक समझ और इच्छा को समाज और देशहित में आंकलन करके राजनैतिक फैसले लेने चाहिए। इन सब बातों को ध्यान में रखकर अपने स्वार्थ में फैसला स्वयं को लेना चाहिए नहीं तो ऐसे राजनैतिक दलों की असमय मृत्यु होना निश्चित रहेगा। इसका वर्तमान उदाहरण बहुजन समाज पार्टी है। बहन जी ने समाज के चार दशक के सामाजिक संघर्ष और समाज की अस्मिता को अपने पारिवारिक स्वार्थ और स्वयं के अहम के कारण समाज के हित को ध्वस्त कर दिया है। सभी छोटे राजनैतिक दलों को बहन जी के आत्मघाती आचरण से सबक लेना चाहिए। बहन जी अगर इंडिया गठबंधन में जातीं और वहाँ पर समाजहित में देशव्यापी गठबंधन करतीं तो बहुजन समाज पार्टी पूरे देश में कम से कम 50-60 सीटें जीतकर गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रबल दावेदार बन सकती थीं।

ब्राह्मणी संस्कृति के राजनीतिज्ञयों को देनी होगी सभी को हिस्सेदारी: भारत के राजनीतिक परिवेश को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि देश की सभी जातियों में गहराई तक ब्राह्मणवाद व सामंतवाद की भावना है। देश का हर कोई नागरिक जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त है। हरेक व्यक्ति अपने आपको दूसरे से ऊँचा मानता है या नीचा समझता है। किसी में भी समता का भाव नहीं है इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 में समता को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। अगर समाज में समता का भाव नहीं होगा तो समाज में संगठनात्मक भाव भी पैदा नहीं होगा और समाज में अगर ये सब बातें नहीं होगी तो समाज कमजोर और शक्ति विहीन ही बनेगा। वास्तविकता में भारतीय संविधान को देश की अभी तक भारतीय संस्कृति में उतारा ही नहीं गया है जिसके कारण समाज में आज भी विकृतियाँ दिखाई दे रही है और देश सभी मानवीय स्तरों पर साल-दर-साल नीचे जा रहा है। भारत को सशक्त और विकसित करने के लिए संविधान में दिये मौलिक अधिकारों को लागू करना आवश्यक है। संविधान को देश की जमीन पर मनुवादी संघी सरकारें कभी लागू नहीं करेंगी। मोदी-संघी शासन ने 10 साल के शासन में यह प्रमाणित करके दिखा दिया है। जिसे अब ठीक से समझना जनता का कर्तव्य है अगर जनता इसे समझने में विफल होती है तो फिर बहुजन जनता की समझ और बुद्धि का ही दोष होगा।

2024 का चुनाव पूरी तरह से मोदी के विरुद्ध : देश के जनतंत्र ने मोदी को व्यक्तिगत रूप से नकारा है जो चुनाव परिणामों से साफ है। मोदी की कार्यशैली बहुजन वादियों के विरुद्ध है और अब वे मोदी और शाह को सत्ता में देना नहीं चाहते। देश में मोदी और शाह विहीन सरकार शायद चल सकती है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05