2023-09-23 12:14:42
महिलाओं का विधान सभाओं व संसद में आरक्षण अवश्य ही एक सकारात्मक कदम है परंतु यहाँ पर सवाल सरकार की मानसिकता के खोट का है। सरकार में बैठे लोग तथाकथित मनुवादी सनातनी मानसिकता से ओत-प्रोत है। मनुवादी धर्मशास्त्र ‘मनुस्मृति’ के प्रावधानों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं है। सभी मनुवादी लोग मनुस्मृति को ही अपना धर्म ग्रंथ मानते हैं। कुछ दिन पूर्व जब सनातन धर्म को लेकर तमिलनाडू के मुख्यमंत्री के बेटे उदयनिधि ने सनातन धर्म पर टिप्पणी की थी तो देश के प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े जोश में भाजपाई गुंडों को आह्वान किया था कि सनातनी धर्म के मुद्दे को जनता में जोर-शोर से उठायें। प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान बहुत ही औछे किस्म का था चूंकि देश के प्रधानमंत्री को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए, उन्हें सोचना चाहिए कि वे अब देश के प्रधानमंत्री है किसी पार्टी विशेष के नहीं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जबसे मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं तभी से उनका आचरण प्रधानमंत्री के स्तर का लग ही नहीं रहा है। उनका आचरण हिंदुत्ववादी मानसिकता वाले गली के गुंडों जैसा ही लगता है। संसद में महिला आरक्षण बिल पेश करने मात्र से वे समझ रहे हैं कि अब देश की सारी महिलाएँ भाजपा संघ से निर्देशित होकर भाजपा के उम्मीदवारों को वोट देंगी। मोदी जी को यह पता होना चाहिए कि अब देश की महिलाएँ जागरूक हंै और उन्होंने हिंदुत्व का वह भी चेहरा देखा है कि जब बाबा साहेब अम्बेडकर संसद में ‘हिन्दू कोड बिल’ लेकर आए थे तो उसका विरोध करने वालों में ब्राह्मणी संस्कृति के सनातनी लोग ही अधिक थे। हिन्दू कोड बिल का विरोध भाजपा और संघ से जुड़े राजनेताओं के अलावा उनके साधु, तथाकथित संत, कथावाचकों द्वारा भी किया गया था। भाजपा संघी मानसिकता के लोग मनुस्मृति को अपना धार्मिक ग्रंथ मानते हैं और उसके सभी प्रावधानों में महिलाओं को प्रताड़ित व बेइज्जत किया गया है। हाल ही में कुछ पिछडेÞ वर्ग के नेताओं ने रामचरित मानस की ‘ढ़ोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़न के अधिकारी’ जैसी चौपाइयों का विरोध किया तो पूरे देश के तथाकथित सनातनी, ब्राह्मणवादी मानसिकता के लोग कुपित हो उठे और चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि ये राजनीतिक नेता हमारे देवी-देवताओं और भगवानों का अपमान कर रहे हैं और इनके बयानों से हमारी धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचती हैं। यहाँ पर प्रमुख प्रश्न यह उठता है कि क्या देश में रहने वाले दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिलाएँ जिनको हिंदुत्व के प्रचारक पिछले पाँच हजार वर्षों से तथाकथित भगवानों व देवताओं के नाम पर लगातार अपमानित करते आ रहे हैं क्या उनकी आस्था को कोई ठेस नहीं पहुँचती? और क्या उनकी आस्था आपकी हिंदुत्ववादी मानसिकता की गुलाम है? जैसा आप चाहेंगे वो वैसा ही समझ लेंगे। हिंदूवादी मानसिकता के कर्णवीरों को चेताया जाता है कि अब सभी पिछड़े, दलित, महिलाएँ व अल्पसंख्यक जागरूक व शिक्षित हैं और वे आपके मन की धारणाओं और अंदर भरे जहर को बखूबी समझते हैं और साथ-साथ वे अब आपके षड्यंत्रकारी छलावों को भी समझ चुके हैं। उनका अब आपके षड्यंत्रकारी जाल में फँसे रहना संभव नहीं होगा। मोदी-संघी सरकार जो महिला आरक्षण बिल लाई है उसमें मोदी-संघी शासन की मानसिकता में खोट नजर आ रहा है। चूंकि यह बिल कुछ शर्तों के साथ पास हुआ है। शर्तें है कि पहले देश में जनगणना कराई जाएगी उसके बाद निश्चित हुई लोक सभा और विधान सभा की सीटों का परिसीमन होगा। उसके बाद कहीं जाकर 2029 के बाद ही महिला आरक्षण बिल संसद व विधान सभाओं में लागू हो सकेगा? यहाँ पर यह सवाल उठता है कि अगर यह बिल 2029 के बाद लागू होगा तो मोदी संघियों को इस वक्त यह बिल लाने की क्या जरूरत थी? मोदी-संघी सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल को देखते हुए जनता को यह साफ दिखता है कि मोदी-संघी शासन पहले सपने दिखाता है और फिर जनता के बल (वोट) से शासन में आने पर अपने किये हुए वायदों को भूल जाते हैं। मोदी ने 2014 में जनता से जो वायदे किये थे वे एक-दो नहीं थे बल्कि वे वायदे सैंकड़ों की तादाद में थे। जनता ने मोदी के वायदों पर भरोसा करके भरपूर वोट दिया और उसे देश की सत्ता सौंपी मगर मोदी के कार्य वायदों और अपेक्षाओं के विपरीत ही रहे हैं। मोदी ने जनता से किया एक भी अपना वायदा पूरा नहीं किया है। महिला आरक्षण बिल भी मोदी-संघी सरकार का महिलाओं के लिए फेंका हुआ धोखा व एक सगूफा मात्र है।
आज देश की महिलाएँ जागरूक, तर्कशील व बुद्धिमान हैं। अब महिलाएँ धर्म व हिंदुत्व के पाखंडी जाल में शायद नहीं फंस पाएँगी। वर्तमान में मोदी-संघी शासन का एकमात्र लक्ष्य यह है कि किसी तरह देश की महिलाओं का 2024 में भरपूर वोट मिल जाये और मोदी संघी शासन सत्ता में दोबारा लौट आए। सभी देशवासियों को अब मोदी के दस साल के शासन ने यह पक्का कर दिया है कि दुनिया चाहे उन्हें कुछ भी कहे वे (मनुवादी भाजपा) अपने मनुस्मृति वाले मूल सिद्धांतों से विचलित नहीं होंगे। उन्होंने ऐसा करने का नाटक देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को नए संसद के उद्घाटन के मौके पर न बुलाकर अपनी मनुवादी मानसिकता का प्रदर्शन कर दिया है। इससे समझने वाले समझ चुके हैं और जो ना समझे वे अनाड़ी ही है। राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू को न बुलाने के पीछे उदयनिधि स्टालिन का बयान तर्कसंगत नजर आता है। उदयनिधि जी ने अपने बयान में कहा है कि हिंदुत्व की मानसिकता में सनातनी दोष है। श्रीमती मुर्मू जी महिला हैं जिसके कारण मनुस्मृति के प्रावधानों के अनुसार उन्हें निमंत्रण नहीं दिया जा सकता; दूसरा कारण ये हैं कि वे आदिवासी महिला हैं मनुस्मृति के अनुसार उन्हें भी निमंत्रण नहीं दिया जा सकता; तीसरा न बुलाने का कारण है कि वे एक विधवा महिला है, मनुस्मृति के प्रावधानों के मुताबिक उन्हें शुभ नहीं माना जाता है।
उदयनिधि जी के द्वारा दिये गए तीनों कारण मनुवादी मानसिकता व मनुस्मृति के अनुसार बिल्कुल सही है और पूरे हिंदुत्व की मानसिकता इसी मनुवादी रोग से संक्रमित है। महिलाओं के आरक्षण का बिल प्रत्यक्ष रूप से कोई भी विरोध नहीं कर रहा है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में महिला आरक्षण बिल मनुवादी मानसिकता के मनुस्मृति प्रावधान महिलाओं को आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं परंतु भाजपा व संघियों की अंतरआत्मा आरक्षण बिल का अप्रदर्शित विरोध कर रही है। इस बिल में संघी भाजपाईयों ने बहुजन समाज की एससी, एसटी, ओबीसी समाज की महिलाओं के लिए भी कोई प्रावधान नहीं रखा है। जिसके कारण उनकी अंतरआत्मा में एससी, एसटी, ओबीसी की महिलाओं के प्रति नफरत प्रदर्शित होती है। बहुजन समाज का महिलाओं से आग्रह है कि ऐसे तथाकथित धार्मिक ग्रंथों को जो उनमें गैर बराबरी का प्रावधान रखते हैं, उनका तुरंत त्याग करें और देश में समता, स्वतंत्रता, भाईचारे की नीति अपनाएँ।
हिंदुत्व के छलावे में न फँसे, हिंदुत्व के लोगों की मानसिकता इतनी मानवता विरोधी है कि वे किसी भी सभ्य समुदाय में रहने योग्य नहीं है। इनका त्याग ही सर्व जनहित में है।
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