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हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था, शूद्र व दलित

बाबूराम केन
News

2023-09-09 09:43:33

हिन्दू धर्म की वर्ण-व्यवस्था के कारण दहस को बहुत हानि, अपमान तथा गुलामी सहन करनी पड़ी है। वर्ण-व्यवस्था के अनुसार पूरे हिन्दू समाज को चार वर्णों में बाँट दिया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।

इन चारों वर्णों के कार्य भी बड़ी चालाकी के साथ धर्म के नाम पर बाँट दिये गए हैं। ब्राह्मण के कार्य पढ़ना, पढ़ाना अथा धार्मिक कर्म-कांड करके बिना किसी मेहनत या परिश्रम के दक्षिणा के नाम पर मोटी रकम ऐठ कर ऐशों आराम के साथ जीवन जीना। नं-2 क्षत्रिय अवर्ण के लोगों का कार्य राज्य की रक्षा-सुरक्षा करना तथा शासन-प्रशासन चलाना। नं.-3 वैश्य वर्ण का कार्य व्यापार तथा कृषि आदि करना। नं. 4 शूद्र वर्ण के लोगों का कार्य ऊपर के तीनों वर्णों के लोगों की सेवा करना तथा उस सेवा के बदले में कुछ भी माँगने का अधियाकर नहीं था। ऊपर के तीनों वर्णों के लोग स्वेच्छा से जो भी दें उसी को अपना भाग्य और भगवान का प्रसाद मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए।

इन कार्यों का बँटवारा इतना कठोरता से किया गया था कि कोई भी व्यक्ति केवल अपने वर्ण का कार्य ही कर सकता था। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे वर्ण का कार्य करता था तो उसे दंडित किया जाता था। धर्म के अनुसार राज्य या देश की रक्षा का कार्य केवल क्षत्रिय वर्ण के लोगों का था। परंतु उनकी स्नाख्या बहुत कम थी। जब विदेशी आक्रमणकारियों ने देश पर हमला किया तो क्षत्रिय वर्ण के लोग उन्हें रॉन न पाये। महमूद गजन्वी ने सोमनाथ केप्रसिद्ध मंदिर तथा अन्य मंदिरों को लूटा तथा तोड़ा भी। मोहम्मद गौरी ने भी अपने कुछ सैनिकों के साथ आया और सन 1192 ई. में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हराकर दिल्ली पर अपना शासन स्थापित किया तथा पृथ्वी राज चौहान को बंदी बनाकर गौरी अपने गृह राज्य ले गया और वहाँ पर उसकी हत्या करा दी। इसके बाद भारत सदियों तक विदेशियों का गुलाम रहा। वर्ण व्यवस्था न होती तो देश कभी गुलाम न होता। यदि आज की तरह सभी लोगों को सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा करने का अधिकार होता।

इसी वर्ण व्यवस्था के कारण ऊँच-नीच का भेद भाव बना, ब्राह्मण सबसे ऊँचा, क्षत्रिय उससे नीचा, वैश्य उससे नीचा तथा शूद्र सबसे नीचा।

शूद्र जो स्नाख्या में सबसे अधिक बड़ा वर्ण था, बड़ी चालाकी के साथ उसे जातियों में बाँट दिया गया। तथा उनके आपस में रोटी-बेटी के व्यवहार पर भी रोक लगा दी गई। ताकि वे भविष्य में कभी मिलकर इस वर्ण व्यवस्था के दोषों को जानने के बाद इस व्यवस्था को ही नष्ट न कर दें। इन जातियों को भी छोटी जाति, बड़ी जाति तथा ऊँची जाति, नीची जाति बनाकर छुआछूत के भेदभाव को पैदा किया गया।

शूद्रों में भी अति-शूद्र बनाए गए दलितों को ‘भारतीय संविधान’ के द्वारा नागरिक अधिकार दिये गए जो वर्ण व्यवस्था में उनसे छीन लिए गए थे तथा उन्हें पशुओं से भी गया-गुजरा जीवन जीना पड़ता था। भारतीय संविधान के द्वारा मिले अधिकारों से एक दलित या आदिवासी भारत के राष्ट्रपति के पद पर आसीन हो सकता है। लेकिन वहीं राष्ट्रपति यदि जगन्नाथ पुरी के मंदिर में पूजा पाठ करने जाते हैं तो मंदिर के लोग उन्हें धक्के मारते हैं और मंदिर के प्रधानमंत्री तथा भारत सरकार की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। क्या यह भी हिन्दू धर्म की विशेषता ही हैं।

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2024-01-13 11:08:05