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सामाजिक कार्यकर्ता

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2023-03-24 07:10:27

बहुजन समाज में आज सामाजिक कार्यकतार्ओं की बहुलता है लेकिन समझने के लिए इनको मोटेतौर पर वर्गीकृत करके समझा जा सकता है। इनके परिदर्शित लक्षणों के आधार पर सामाजिक कार्यकर्ता निम्न प्रकार के हो सकते हैं : (1) सम्यक सामाजिक; (2) आध्यात्मिक एवं सामाजिक; (3) सामाजिक-राजनीतिक; (4) प्रतिक्रियात्मक; (5) स्वार्थी; (6) सम्मान की चाहत में सामाजिक; (7) बिना किसी सामाजिक योगदान वाले; (8) अतिवादी मानसिकता वाले, आदि।

सम्यक सामाजिक कार्यकर्ता : बहुजन समाज में सम्यक सामाजिक कार्यकतार्ओं का अत्यंत अभाव है। अगर सम्यकता से सामाजिक कार्यकर्ता का आंकलन किया जाये तो तथागत बुद्ध के बाद फुले दंपत्ति, ई.वी. रामास्वामी पेरियार, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, मान्यवर कांशीराम व अन्य बहुजन नायकों व महापुरुषों का नाम ही सामने आते हैं और सम्यकता की कसौटी पर खरे उतरते हैं। जिन्होंने समाज के दुख-दर्द की अनुभूति के आधार पर संपूर्ण निष्ठा, समर्पण, त्याग से काम किया और समाज को परिवर्तित करके आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इस श्रेणी में ये सभी लोग श्रेष्ठतम है व सम्मान के पात्र है। आध्यात्मिक-सामाजिक कार्यकर्ता : बहुजन समाज में समाज के उद्धार के लिए अनेकों आध्यात्मिक संतों ने जन्म लिया, जिन्होंने उस समय के सामाजिक परिवेश के आधार पर समाज में फैली कुरीतियों का विरोध किया और उनके निवारण के रास्ते भी सुझाए। इस श्रेणी के सामाजिक कार्यकतार्ओं में संत रविदास, संत कबीरदास, गुरु नानक, संत गाडगे, संत दुर्लभ जी महराज, संत नारायण गुरु, संत नामदेव, संत चोखामेला व अन्य सैंकड़ों संतों ने बहुजनों को समाज में फैली कुरीतियों से अवगत कराया तथा उनसे छुटकारा पाने के लिए प्रेरित किया। इस श्रेणी के कार्यकतार्ओं ने अपने परिवेश व बौद्धिक क्षमता के अनुसार समाज में सुधार का काम निष्ठा व समर्पण के साथ किया।

राजनीतिक प्रवृति के कार्यकर्ता : आज समाज में ऐसे सामाजिक कार्यकतार्ओं की अधिक भीड़ है जो अपने को राजनीतिक स्तर पर स्थापित करने के उद्देश्य से अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता बताने से नहीं थक रहे हैं। इस तरह के लोग अपने को सामाजिक कार्यकर्ता बताकर पहले समाज में घुल मिल जाते हैं, समाज का भरोसा हासिल करते हैं तद्उपरांत सामाजिक संख्याबल को आधार बनाकर अपने आप को राजनीति में चमकाने का काम करते हैं। बहुजन समाज में ऐसे लोगों की बहुतायात है, वर्तमान में इसके अनेकों उदाहरण है-जैसे रामदास आठवले, रामविलास पासवान, उदित राज, चंद्रशेखर आजाद व अन्य हजारों लोग अपनी राजनीतिक पार्टियाँ बनाकर या बने बनाये संगठनों को तोड़कर अपने आप को राजनीति में स्थापित करने के प्रयास में रहते हैं। इस श्रेणी के सामाजिक कार्यकर्ता बहुजन समाज के लिए किसी भी काम के नहीं है। आज देश की संसद व विधान सभाओं में बहुजन समाज के चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या ढाई हजार से अधिक है परंतु इतनी बड़ी संख्या का प्रतिनिधित्व होकर भी बहुजन वर्ग की कोई आवाज नहीं है।

प्रतिक्रियात्मक सामाजिक कार्यकर्ता : बहुजन समाज अशिक्षित व गरीबी से त्रस्त रहा है इसलिए उसमें प्रतिक्रियात्मक क्षमता का हमेशा ही आभाव रहा है। प्रतिक्रियात्मक सामाजिक कार्यकतार्ओं के पास सम्मानपूर्वक जीने के लिए हौंसला व संसाधन होना जरूरी है। बहुजन समाज के लोग हमेशा ही ब्राह्मणी संस्कृति व सामंती सोच के द्वारा प्रताड़ित व शोषित रहे हैं। आजादी के बाद बाबा साहेब द्वारा बनाए गए संविधान में दिये गए शिक्षा, स्वतंत्रता व न्याय के अधिकारों से आयी कुछ जागृति व चेतना से बहुजनों का प्रतिक्रियात्मक संघर्ष शुरू हुआ है। इसके प्रमुख उदाहरण है वीरांगना फूलन देवी, जिसके साथ सामंती विचारधारा के ठाकुरों ने अमानवीय अत्याचार किया जिसका बदला लेने के लिए उसे डाकू बनना पड़ा। डाकू बनने के बाद जिन ठाकुरों ने फूलन देवी के साथ अमानवीय अत्याचार किया था उनको व उनके परिजनों को अपने उसी गाँव के कुंए पर लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया था। फूलन देवी के इस महानतम प्रतिक्रियात्मक कृत्य से ठाकुर समाज की महिलाओं व पुरुषों में इतना खौफ हो गया था कि फूलन देवी का नाम सुनने मात्र से ही उनका शरीर काँप उठता था। इसी प्रतिक्रियात्मक कड़ी में दूसरा नाम यू.पी. के हस्तिनापुर के इलाके में श्रीराम का आता है जहाँ पर सामंतवादी विचारधारा के गुर्जर समाज के लोगों ने जाटव समाज के चार लोगों का कत्ल कर दिया था। उसका बदला लेने के लिए माननीय श्रीराम व उसके साथियों ने घटना के दो-तीन दिन के अंतराल में गुर्जर समाज के 6 लोगों को गोलियों से भून दिया था। जिसका परिणाम यह था कि पूरे गाँव के गुर्जर समुदाय के लोग गाँव छोड़कर भाग गए थे और गुर्जर समुदाय के लोगों ने पूरे देश से अपने समाज के प्रभावशाली लोगों को बुलाकर फैसले की मुहिम चलाई थी। दोनों समाजों के बीच सम्मानपूर्वक फैसला हुआ था। आज भारत में सामंतवादी व ब्राह्मणी संस्कृति से बीमार लोगों का सटीक इलाज इस प्रकार की प्रतिक्रियात्मक क्रिया द्वारा ही हो सकता है। बहुजन समाज तथागत बुद्ध व बाबा साहेब की शिक्षाओं के आधार पर शांति व परस्परता में विश्वास रखता है, परंतु दुष्टों के साथ दुष्टता का व्यवहार ही बहुजनों की मुक्ति का मार्ग है। यह गलत मार्ग नहीं है हमारे महापुरुषों ने भी अपनी गुलामी व मुक्ति के लिए ऐसा ही किया था। अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के लिए शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शहीद-ए-आजम ऊधम सिंह व अन्य वीर क्रांतिकारियों के नाम इसी श्रेणी में शामिल है। भारत की सामाजिक व्यवस्था में जातिवाद, ब्राह्मणवाद, सामंतवाद गहराई तक व्याप्त है इससे मुक्ति पाने के लिए देश में हर ब्लॉक स्तर पर प्रतिक्रियात्मक कार्यकतार्ओं की अच्छी संख्या अवश्य होनी चाहिए। इस तरह की प्रतिक्रियात्मक कार्यकतार्ओं की ताकत बहुजन समाज की एकता में ही निहित है। इसलिए पूरे बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) में हजार मतभेद होने के बावजूद भी आपसी एकता व भाईचारा बनाए रखना संघर्ष की सफलता के लिए जरूरी है। स्वार्थी सामाजिक कार्यकर्ता : स्वार्थी सामाजिक कार्यकर्ता वे लोग है जो अपने स्वार्थ के बिना बहुजन समाज से अलगाव रखते हैं, अपनी पहचान छिपाकर रखते हैं, समाज के कार्यों में उनका योगदान शून्य रहता है, इस श्रेणी के सामाजिक कार्यकर्ता ब्राह्मणी व सामंतवादी संस्कृति वाले लोगों के साथ तालमेल रखकर समाज की मुकबरी करते हैं। ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता बहुजन समाज के लिए हानिकारक है और संपूर्ण बहुजन समाज को ऐसे लोगों की पहचान करके उनसे दूरी बनाकर रहना चाहिए। इस श्रेणी के सामाजिक कार्यकर्ता सामाजिक असहयोग व निंदा के पात्र होने चाहिए। आमतौर पर ये लोग ब्राह्मणी संस्कृति के टुकड़ों पर पलते है।

सम्मान की चाहत वाले कार्यकर्ता : बहुजन समाज में ऐसे लोग प्रमुखता से उपलब्ध हैं जो समाज से मुफ्त में सम्मान की छिपी चाहत रखते हैं परंतु सम्मान पाने के लिए ऐसा कोई कार्य नहीं करते जिसके कारण समाज के मन में उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव पैदा हो। यह सार्वभौमिक सत्य है कि व्यक्ति को अपना सामाजिक मान सम्मान मेहनत से अर्जित करना पड़ता है। बिना अर्जित किये मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। आज बहुजन समाज में सम्मान की चाह रखने वाले वाले अधिसंख्यक है और सम्मान को कमाने वाले अल्पसंख्यक है इसलिए आज समाज में ऐसे लोगों के प्रति मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा घट रही है, जिसके कुछेक अच्छे लोग भी शिकार हो रहे हैं।

बिना सामाजिक योगदान कार्यकर्ता : बहुजन समाज में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो छोटा-मोटा कार्य करके अपने आपको बड़ा सामाजिक कार्यकर्ता समझते हैं, तथा बहुजन समाज में ऐसे लोग भी अधिसंख्यक है जिनका समाज में आर्थिक सहयोग नगण्य है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने बहुजन समाज को सतत जीवंत व संघर्षशील रखने के लिए निर्देशित किया था कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी आमदनी का 5 प्रतिशत हिस्सा सामाजिक कार्य के लिए दान दें जिसका नाम उन्होंने ‘पे बेक टू सोसाइटी’ रखा था। परंतु आज अम्बेडकरवादी व बुद्धवादी लोग, स्वत: आंकलन करें कि सामाजिक कार्यों के लिए वे कितना आर्थिक सहयोग कर रहे हैं? आज आर्थिक सहयोग करने वाले की संख्या नगण्य है, और इसके उलट ऐसा भी देखा जा रहा है कि इस तरह के अम्बेडकरवादी व बुद्धवादी लोग आर्थिक सहयोग देने से बचने के लिए दूसरे अम्बेडकरवादी संगठनों के ऊपर तथ्यहीन आरोप लगाते रहते हैं। इस तरह के अम्बेडकरवादी व बुद्धवादी लोगों को सिख समाज के लोगों को देखकर प्रेरित होना चाहिए। आमतौर पर संपूर्ण सिख समाज के लोगों का देश व विदेश में भी सामाजिक कार्य सबसे व्यापक व उत्तम है। उनके सामाजिक कार्य व बड़े-बड़े संस्थान व विश्वविद्यालय समाज के योगदान के बल पर ही जीवंतता के साथ चल रहे हैं। बहुजन समाज के सभी लोगों को सिख समाज के लोगों से प्रेरणा लेकर बाबा साहब के कारवाँ को आगे बढ़ाना चाहिए।

अतिवादी धार्मिक कार्यकर्ता : ये कार्यकर्ता किसी धर्म विशेष की मानसिकता के आधर पर काम करते हैं। मूलरूप से इनकी धार्मिक प्रवृति कट्टरवादी होती है, कार्यप्रणाली में तर्कशक्ति का अभाव होता है, मुख्य विषयवस्तु कट्टर विचारधारा पर टिकी होती है। भारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, हिन्दूवाहिनी, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, श्रीराम सेना, आदि ऐसे ही अतिवादी संगठन है। मुस्लिम समुदाय में भी कुछेक कट्टरवादी तत्व व संगठन हैं। ये आतंकवादी प्रवृति के लोग होते हैं। इनमें सम्यक सोच नहीं होती, धर्म विशेष के लिए काम करके अपने आपको राष्ट्रवादी कहते हैं। इस तरह की भावना रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता समाज व देश के लिए खतरा ही पैदा करते हैं। सही मायने में ये एक किस्म के जेहादी या आतंकवादी ही होते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता के लिए मनुष्य की संरचना में निम्न गुणों का होना आवश्यक है-श्रद्धा, सहानुभूति, हमदर्दी पर्याप्त रूप से होनी चाहिए; संगठित रहने की भावना; सामाजिक समग्र गहन-सोच; सक्रियता व दूसरों को सुनने की क्षमता; धैर्य, सब्र आवश्यक तत्व है; वाक्पटुता; त्याग व समर्पण भाव; स्वार्थहीनता; समाज के दुख-दर्द को समझने की क्षमता; दूसरों के प्रति समता व सम्मान का भाव; श्रेष्ठता के भाव का नहीं होना; सम्मान की चाह का नहीं होना; कंजूसी के भाव का नहीं होना; दान देने व अपनी जेब से खर्च करने की आदत का होना; झूठी शान के लिए काम नहीं करना; अपने महापुरुषों के संघर्ष व दर्शन का ज्ञान का होना; समाज के लोगों के ऊपर हो रहे अत्याचारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए; समाज के सभी घटकों के प्रति समानता व श्रद्धा का भाव का होना; धरना-प्रदर्शन, आदि में भाग लेने का साहस।

सामाजिक कार्यकर्ता बनना आसान काम नहीं है सामाजिक कार्यकर्ता को उच्च कोटि का समर्पण, त्याग करना पड़ता है। सामाजिक कार्यकर्ता बनने में पारिवारिक परिवेश व अनुवांशिक लक्षणों का भी भारी योगदान रहता है। बहुजन समाज के लोगों में हजारों साल की गुलामी व प्रताड़ना झेलने के कारण ये सभी गुण इनमें कमतरता के साथ मिल रहे हैं इसलिए बहुजन समाज में सामाजिक कार्यकतार्ओं की फौज खड़ी करने के लिए इन सभी गुणों का संवर्धन करना आवश्यक है।

जय भीम, नमो बुद्धाय!

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05