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संसद हमला: देश में व्याप्त बेरोजगारी व तानाशाही का नतीजा

News

2023-12-16 11:46:08

देश की शासन-व्यवस्था प्रजातांत्रिक है और प्रजातंत्र में प्रजा ही सर्वोपरि व सर्व शक्तिमान होती है। प्रजा की वोट से ही शासन सत्ता का निर्माण होता है। प्रजा में शामिल सभी मनुष्यों के वोट का मूल्य संवैधानिक रूप में समान है। भारत के संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग.....’ का आशय भी यही है कि भारत के सभी लोग इस संविधान के निर्माण में शामिल हुए और उसे अंगीकृत किया हैं। सरकारें सिर्फ देश की व्यवस्था को सुचारु और तार्किक आधार पर संचालित करने के लिए जिम्मेदार होती है और इस तरह जनता द्वारा निर्मित सरकारें परोक्ष रूप से जनता की नौकर ही होती है। क्योंकि देश के संचालन के लिए चुने गए जनता के प्रतिनिधि व उनमें से बनाए गए मंत्री व प्रधानमंत्री जनता के पैसे से ही वेतन पाते हैं और वेतन पाने वाला हर व्यक्ति जिससे वह वेतन पाता है तर्क और वास्तविकता के आधार पर वह उसका नौकर ही होता है।

13 दिसंबर 2023 को देश की संसद में कुछेक छात्र हमलावर तरीके से संसद में घुसे, जब ये छात्र संसद में घुसे तब लोकसभा का सत्र चल रहा था। उनके संसद में घुसने व घुसने के मकसद को लेकर किसी को भी कोई आभास नहीं था जो मोदी-संघी सरकारों के सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाता है। समाज में प्रचलित किंवदंती है कि ‘जनता की आवाज खुदा का नगाड़ा होती है’ परंतु वर्तमान मोदी सरकार के लिए जनता की आवाज का कोई भी मतलब नहीं है देश की जनता ने अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत 13 महीने तक किसान आंदोलन चलाया और 13 महीने लंबे आंदोलन के बाद तानाशाही मोदी सरकार अनमने मन से झुकी और कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर हुई। किसानों के आंदोलन की आवाज को 13 महीने की अवधी तक अनसुना किया। जब तीनों कानूनों को वापस लिया तब किसानों को आश्वासन दिया गया था कि हम मंडी व्यवस्था को और फसलों के समर्थन मूल्यों को भी किसानों को देंगे। परंतु किसानों का आंदोलन खत्म होते ही मोदी-संघी सरकार किसानों की फसलों के समर्थन मूल्य पर बात करके पीछे हट रही है।

दूसरा जनता का संवैधानिक आंदोलन देश की महिला पहलवानों ने जंतर-मंतर पर 36 दिनों तक चलाया। परंतु सरकार ने इस आंदोलन को अनदेखा व अनसुना लंबे समय तक किया। देश की महिला पहलवानों के ऊपर मोदी संघी सरकार ने लाठीचार्ज कराया और उनकी मांगों पर कोई भी तर्कसंगत ध्यान नहीं दिया। महिला पहलवानों का आंदोलन भाजपा के सांसद बृजभूषण सिंह जो कुश्ती संघ के अध्यक्ष थे उनपर महिलाओं के यौन शोषण का आरोप था लेकिन संघी मानसिकता के जहर में लिप्त मोदी सरकार महिलाओं के यौन शोषण के मुद्दे पर बृजभूषण सिंह पर कोई भी एक्शन लेने को लंबे समय तक तैयार नहीं हुई और मोदी संघी सरकार ने अपने तथाकथित धर्मग्रंथ मनुस्मृति में महिलाओं से जुड़े शोषणकारी प्रावधानों की जो रचना है उसके अनुसार ही मोदी सरकार की मानसिकता कार्य करती दिखी।

तीसरा संवैधानिक आंदोलन शाहीन बाग में छात्रों द्वारा सीएए, एनआरसी को लेकर हुआ था जो 55 दिनों तक चला। यह आंदोलन भी मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में हुआ था। जो पूर्णत: शांति व्यवस्था के साथ संवैधानिक था। वहाँ पर भी मोदी-संघी शासन ने विषमतावादी मनुवादी व्यवहार को आंदोलन में प्रदर्शित किया। मोदी संघी शासन में सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने नफरती अंदाज में विषमतावादी बातें की और उस समय जब दिल्ली विधान सभा के चुनाव चल रहे थे तो मोदी और शाह जनता को अपना वक्तव्य दे रहे थे कि ईवीएम का बटन इतने जोर से दबाना कि उसका निशान शाहीन बाग के आंदोलन तक जाएँ। इतना ही नहीं मनुवादी मोदी भाजपा की सरकार ने अपना एक लमपट व्यक्ति जो शायद दूध का काम करता बताया गया था उससे आंदोलन स्थल पर गोली चलवाई थी। हालांकि गोली किसी भी आन्दोलनकारी को नहीं लगी थी लेकिन फिर भी गोली चलने के भय से आंदोलन को समाप्त करने का षड्यंत्र मोदी-संघी सरकार ने रचा था। जिसमें मनुवादियों की फूट डालो, राज करो की कार्यशैली विफल रही थी लेकिन संघी आलम्बरदारों ने इन मुस्लिम महिलाओं के आंदोलन पर नफरती सोच के तहत कोई भी मानवतावादी, संविधानवादी सोच न रखकर आंदोलन को समाप्त कर दिया था। इस तरह के अन्य सामाजिक घटकों की आवाजों को दबाने के लिए मोदी-संघी शासन का दमनकारी रवैया ही रहा है। मोदी-संघी शासन जनता की परेशानी, जनता की आवाज सुनने के लिए व उस पर गौर करने लिए कभी भी दस वर्षों के शासन में तैयार नहीं दिखा। देश के छात्रों द्वारा शिक्षण संस्थाओं में शासन व प्रबंधन के विरुद्ध अपनी मांगों को उठाने पर मोदी-संघी शासन की बर्बरता छात्रों पर भारी पड़ी। छात्रों को तितर-बितर करने के लिए व आंदोलन को तोड़ने के लिए लाठीचार्ज किया गया था। इस तरह मोदी संघी सरकार असंवैधानिक रास्ते अपनाकर जनता की आवाज को दबा रही है। संवैधानिक आंदोलनों को असंवैधानिक तरीकों से कुचल रही है। मोदी सरकार देश की दुखी व त्रस्त जनता से विचार-विमर्श करने व उनकी समस्याओं को सुनने के लिए तैयार नहीं है। मोदी-संघी सरकार ने देश में अवैज्ञानिकता फैलाकर मोदी अंधभक्तों की भीड़ बढ़ाई है और ये सभी अन्धभक्त मोदी-शासन में पैड व्यवस्था के तहत काम कर रहे हैं इन्हीं पैड अंधभक्तों के द्वारा देश में असत्य बातों का प्रचार-प्रसार दिन-रात कराया जा रहा है। ताकि जनता गुमराह रहे और इनके बहकावे में फँसती रहे। मोदी ने अपने दस साल के शासन के दौरान जनता के असल मुद्दों पर कभी ध्यान नहीं दिया उसने सिर्फ अपने कुछेक मित्रों के लिए ही काम किया है बाकी देश की जनता को अनदेखा और अनसुना किया है। इसलिए जो संसद पर छात्रों द्वारा घुसपैठ का हमला हुआ, सरकार को यह बताने के लिए पर्याप्त होना चाहिए कि मोदी संघी शासन त्रस्त जनता की बातें सुने और उनका समाधान भी करें। सरकार सिर्फ कुछेक लोगों के लिए नहीं होती वह पूरे देश की जनता के लिए होती है। जनता की बातों को सुनना, जनता की तकलीफों को सुनना और उनकी समस्याओं का समाधान करना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य होता है। छात्रों के इस हमले को मोदी-संघी शासन की निरंकुशता के संकेत को समझा जाये। ये कुछेक छात्र तो सिर्फ एक नमूना है सारे देश की बहुजन जनता (एससी/ एसटी/ ओबोसी/ अल्पसंख्यक) मोदी संघी निरंकुश शासन कार्यशैली व सोच के विरुद्ध है और मोदी शासन से देश की मुक्ति चाहती है। मोदी संघी शासन को याद करना चाहिए कि जनता की आवाज खुदा का नगाड़ा होती है। इसको समझकर सरकार को अब ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के सिद्धांत पर कार्य करना चाहिए, अन्यथा जनता मोदी-संघी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार रहेगी। अकलमंदों को इशारा ही काफी होता है। जागो बहुजनों जागो और देश में अपनी सत्ता स्थापित करो। मोदी भगाओ देश बचाओ।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05