2024-03-23 09:33:17
केजरीवाल की राजनैतिक महत्वाकांक्षा 2008-09 से ही हिलोरे मार रही थी लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए केजरीवाल ने 2 अक्तूबर 2012 को गांधी का चोला पहनकर, वैसी ही नौटंकी करके नन्द नगरी दलित झोपड़-पट्टियों से ‘आम आदमी पार्टी’ की घोषणा की थी। केजरीवाल का यह चरित्र गांधी के चरित्र ‘वाल्मीकि बस्ती’ मंदिर मार्ग में रहने और उनका हमदर्द बनकर दिखाने से पूर्णतया मेल खाता है। केजरीवाल का पैदायशी चरित्र संघी है चूंकि यह रहस्य केजरीवाल ने खुद जनता में उजागर किया कि वह और उनके माता-पिता संघी थे और मैं भी संघ की शाखाओं में जाया करता था। इसका अर्थ यह है कि मोदी-भाजपा और केजरीवाल आम जन की भाषा में एक ही गुरु के चेले होकर दोनों गुरु भाई हैं। केजरीवाल की मानसिकता में पूरा ब्राह्मणवाद गहराई तक निहित है और वह हिंदुत्व के प्रबल समर्थक हंै, अपने आपको वे जनता में हनुमान का भक्त भी बताते हैं। केजरीवाल अपने आपको बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर का प्रबल समर्थक बताते है लेकिन उनकी कार्यशैली इस और इशारा नहीं करती। उनके ये सब वक्तव्य गांधी की तरह उनकी नाटकबाजी का रणनीतिक हिस्सा है। चूंकि केजरीवाल जी वैश्य समाज से हैं जिनकी दिल्ली में जनसंख्या 5-7 प्रतिशत है। इस संख्याबल के आधार पर कोई भी वैश्य समाज का व्यक्ति राजनीति में श्रेष्ठ स्थान हासिल नहीं कर सकता। इसीलिए उनकी संघी मानसिकता ने उन्हें गांधी की तरह बहुजन समाज के साथ नौटंकी करने का रास्ता सुझाया। केजरीवाल ने भी अपना राजनैतिक आंदोलन सुंदर नगरी की झोपट-पट्टी में संतोष कोली को साथ लेकर शुरू किया। इस आंदोलन की गहराई में केजरीवाल का बहुत बड़ा षड्यंत्र छिपा था जिसमें उनका मानसिक उद्देश्य था कि नन्द नगरी व सुंदर नगरी में अधिकांश जनसंख्या बहुजन समाज के जातीय घटकों की है और उन्हें संघी मानसिकता के छलावों से जल्द ही वश में किया जा सकता है। केजरीवाल की यही रणनीति उनके राजनीतिक सफर में ऊपर चढ़ने की नीति थी।
नन्द नगरी व सुंदर नगरी पूर्वी दिल्ली के इलाके हैं जहाँ पर बहुजन समाज के विभिन्न जातीय घटकों की संख्या अधिक है और इस क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी व मान्यवर साहेब कांशीराम जी का आंदोलन भी सशक्त तरीके का रहा है। मान्यवर साहेब कांशीराम जी स्वयं इस क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव 1989 में लड़े थे और 82,000 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे। संघियों ने इस आँकड़े को भाँपकर अपने संघी चेले मनुवाद से ओत-प्रोत और राजनीति की प्रबल महत्वाकांक्षा रखने वाले वैश्य समाज के पढ़े-लिखे नौजवान केजरीवाल को दलितों का हमदर्द बनाकर इस क्षेत्र में उतारा था और शायद केजरीवाल को यह काम सौंपा गया था कि इस क्षेत्र की बहुजन जनता को कैसे बरगलाया जाए और उन्हें मनुवादी संघी जाल में कैसे फंसाया जाये? केजरीवाल ने संघियों द्वारा प्रायोजित कार्य को बखूबी निभाया। संघियों के दिशा निदेर्शों के अनुसार दिल्ली के शिक्षण संस्थानों में जगह-जगह जाकर आरक्षण विरोधी भाषण देकर संघियों के चहीते भी बने। वे इस उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बहुजन समाज को उनके जातीय टुकड़ों में बाँटने में भी सफल रहे। मान्यवर साहेब कांशीराम जी के सामाजिक जन-जागरण के दौरान जो बहुजन समाज के जातीय घटक एक डोर में बंध रहे थे वे सब अलग-अलग जातीय घटकों में बिखरने लगे। संघियों ने उसी का फायदा उठाकर केजरीवाल को 2012 में दिल्ली की राजनीति में अन्ना आंदोलन के सहारे उतार दिया। इस आंदोलन में अन्ना का तो सिर्फ नाम था उसमें शामिल होने वाले सभी लोग संघी थे, कांग्रेस सरकार पर जो भ्रष्टाचार के आरोप मढ़े जा रहे थे वे सभी तथ्यहीन और जनता को बरगलाने व भ्रामकता में फंसाने के लिए थे। कांग्रेस सरकार पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे आज 12 साल के बाद भी कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ है ईडी और सीबीआई व सरकारी संस्थायें अब जनता को बता रही हैं कि आरोपियों के खिलाफ कोई साक्ष्य नही मिले हैं। कैग के डायरेक्टर रहे विनोद राय संघियों के इशारे पर भ्रष्टाचार के जो आरोप कांग्रेस सरकार पर लगा रहे थे वे अब अपने द्वारा दिये गए झूठे वक्तव्यों पर देश की जनता से मांफी माँग चुके हैं। इसका मतलब साफ है कि यह पूरा का पूरा मामला संघियों द्वारा प्रायोजित था और आज देश की जनता इसकी भारी कीमत चुका रही है, इसी तथ्यहीन रिपोर्ट के कारण आज देश का जनतंत्र व संविधान मोदी-संघी सरकार के आने से गंभीर खतरे में हैं।
केजरीवाल की राजनीतिक रणनीति संघियों की मानसिकता में छिपे षड्यंत्र से मेल खाती है। वे संघियों की तरह ही दलित व अति पिछड़े समाज के जातीय घटकों के उन्हीं लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करते हैं जो सामाजिक स्तर पर कम जागरूक, कम समझ और अधिक राजनैतिक महत्वाकांक्षा पाले हुए है। इन्हीं लोगों से अपरिपक्व राजनैतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों को आप पार्टी में शामिल करके चुनाव लड़वाते हैं और उन्हें उनकी संख्या के हिसाब से सरकार में सम्मानजनक हिस्सेदारी भी नहीं देते। केजरीवाल को वोट देने वालों में 80 प्रतिशत से भी अधिक वोटर मुस्लिम समाज के होते हैं और करीब 75 प्रतिशत वोट देने वाले लोग दलित जातीय घटकों से होते हैं। केजरीवाल जी ने अपनी संघी रणनीति से बहुजन समाज के जातीय घटकों को मुफ्त की रेबडियों का स्वाद चखाकर मानसिक रूप से गुलाम बनाया है और आज उन जातीय घटकों के अधिसंख्यक लोग मुफ्त की रेबडियों का स्वाद चाटकर केजरीवाल के पाले में खड़े होकर बहुजन समाज की राजनीति को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। बहुजन समाज को आज इस देश में सबसे बड़ा खतरा संघी मानसिकता के राजनैतिकों से हैं। इसलिए बहुजन समाज को अपने जातीय घटकों को जागरूक करके संघी मानसिकता के लोगों से बचाना चाहिए और उन्हें सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए बहुजन समाज की राजनीति को ही मजबूत करना चाहिए।
केजरीवाल का संघी मानसिकता का चरित्र इस बात को देखकर भी समझना चाहिए कि जब केजरीवाल को विधान सभाओं में विधायक संख्या में बढ़ोत्तरी करनी हो तो उन्हें मुस्लिम व दलित समुदायों का वोट चाहिए और जब उन्हें विधायकों के संख्याबल से सांसद बनाकर राज्यसभा में भेजना हो तो उन्हें मुस्लिम व दलित समुदाय के लोग याद नहीं आते। साक्ष्य के तौर पर दिल्ली और पंजाब विधान सभाओं से भेजे गए राज्यसभा में सांसदों को देख सकते हैं। दिल्ली व पंजाब विधानसभा से राज्य सभा में भेजे गए सभी वैश्य, ठाकुर व अन्य सवर्ण जातियों के लोग ही हैं, दलित-मुस्लिम समुदायों से एक भी नहीं। केजरीवाल जी अपनी संघी मानसिकता के कारण सामाजिक न्याय के घोर विरोधी है। मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने इस देश के बहुजन समाज को जाग्रत करने के लिए नारा दिया था कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी’ केजरीवाल जी अपनी संघी मानसिकता के कारण सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर उनकी हिस्सेदारी को रणनीतिक तरीके से खत्म कर रहे हैं। जिसका संज्ञान बहुजन समाज से चुने गए प्रतिनिधियों को लेकर उसका प्रतिकार करना चाहिए।
केजरीवाल जी की सरकार के द्वारा किये जा रहे कार्यों के आंकलन से पता चलता है कि दिल्ली में सभी प्रकार के सरकारी ठेके वैश्य व अन्य सवर्ण समाज के लोगों को दिये जा रहे हैं। सभी सरकारी संस्थानों में भारी संख्या में पद संघी मानसिकता के अनुरूप खाली रखे जा रहे हैं। सरकारी कार्यों के लिए सभी संस्थानों में कर्मचारी, अधिकारी, शिक्षक भारी संख्या में ठेके पर रखे जा रहे हैं। ठेके पर रखकर उनके भविष्य के रास्ते बर्बाद किये जा रहे हैं। ठेके पर काम करते हुए बहुत सारे नौजवानों का समय 10 साल से भी अधिक बीत रहा है जिसके कारण ऐसे कर्मचारियों का भविष्य आर्थिक रूप से कमजोर, जीवन में तरक्की पाने से दूर हो चुका है।
केजरीवाल की कार्यशैली को समझकर बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को केजरीवाल के हिरासत में जाने पर कोई हमदर्दी व अफसोस नहीं होना चाहिए बल्कि इससे एक अवसर का मौका देखकर बहुजन समाज की सामाजिक व राजनैतिक जड़ों को मजबूत करना चाहिए। जो केजरीवाल के अपने 10-12 साल के राजनैतिक समय में ध्वस्त की गयी है। बहुजन समाज के विशेषकर दलित समाज को जो लोग आरक्षित सीटों पर विधायक व कोटे से मंत्री आदि बने हुए हैं उन सभी की कार्यशैली और केजरीवाल के प्रति प्रेम को देखकर लगता है कि वे पूर्णतया मनुवादी-संघी मानसिकता के जाल में फँसकर मानसिक गुलाम बन चुके हैं। बहुजन समाज की जनता से निवेदन है कि वे मनुवादी व संघियों के खेल को समझें, अपने दिमाग की बत्ती जलाएं और सम्मान व स्वाभिमान के लिए अपने समाज का वोट बहुजन समाज पार्टी को ही दें। इस बात की अपेक्षा न रखें कि बहुजन समाज पार्टी का कोई व्यक्ति उनके पास वोट माँगने नहीं आया है। अगर बहुजन समाज पार्टी का कोई प्रत्याशी आपके चुनाव क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ रहा है तो उस स्थिति में ‘इंडिया गठबंधन’ के प्रत्याशी (आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को छोड़कर) कमेरा जातियों के घटकों से आने वाले ईमानदार व आंबेडकरवादी विचार धारा के प्रत्याशी को अपना वोट देने का संकल्प लेना चाहिए। किसी भी हालत में किसी भी मनुवादी छलावे में फँसकर अपना कीमती वोट मोदी-भाजपा और संघी केजरीवाल की आप पार्टी को न देने का प्रण लें। बहुजन समाज अपनी वोट से सिर्फ अपने आपको और अपने समाज को मजबूत करें।
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