2023-08-19 10:57:10
इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी भारतीयों के लिए हमारा संविधान ही सबसे बड़ा ग्रंथ है, सबसे बड़ा पथ प्रदर्शक है और यहां तक कि जीवन जीने का आधार भी है। भारत के संविधान में हर भारतीय की गहरी आस्था और सम्मान है। देखा जाये तो, हमारे पड़ोसी देशों में लोकतंत्र मखौल बनकर रह गया और दुनिया के बड़े से बड़े देशों का भी लोकतंत्र खतरे में पड़ गया, लेकिन यह हमारे संविधान की ताकत ही है कि भारतीय लोकतंत्र का कोई बाल भी बांका नहीं कर सका। धुर विरोधी पार्टी के जीतने पर भी हमारे यहां सत्ता हस्तांतरण में पांच मिनट की भी देरी कभी नहीं हुई। हालांकि आपातकाल में संविधान को ताक पर रखा गया लेकिन जनता ने कांग्रेस को उसकी सजा भी तत्काल ही दे दी थी।
संघीयों का संविधान विरोधी रवैया शुरु से रहा है। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ जिसके तुरंत बाद ही संघी दीनदयाल उपाध्याय ने संविधान के विरोध स्वरूप दिए अपने वक्तव्य में यह कहा था कि हम इस संविधान को नहीं मानते इसमें हमारा कुछ भी नहीं है और तभी से सारे संघी संविधान के विरोध में बोलते रहे हैं। आलोचना करते रहें है कि इस संविधान में हिन्दुओं के देवी-देवता आदि का कोई स्थान नहीं है इसलिए यह संविधान हमारे लिए निर्थक है और हम इसको नहीं मानते। देश के किसी राष्ट्र पर्व के अवसर पर संघियों ने कभी भी राष्ट्र ध्वज को अपने कार्यालयों में न तो फहराया और न उसे माना है। मोदी के आने के बाद संघियों ने अपने चरित्र में कुछ दिखावटी परिर्वतन करके कहा कि संविधान देश का एकमात्र ग्रंथ है। मोदी ने यह भी कहा था कि आज में जो प्रधानमंत्री बना हूं वह इस संविधान की ही देन है। मोदी ने कह तो दिया मगर उनका यह कहना एक नाटक ही लग रहा है चूंकि हर दिन वह संविधान के प्रावधानों का खुला उल्लघंन करते हैं और लोगों को संविधान के नाम पर अच्छी-अच्छी बातें करके संविधान विरूद्ध काम करते हैं। 2024 के संसदीय चुनावों में बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों से निवेदन है कि सामूहिकता के आधार पर संघी भाजपा को वोट न देकर सत्ता से मुक्त करें।
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