2024-03-02 10:24:39
राजस्थान का एक गाँव जिसमें 26 जनवरी 2024 के दिन स्कूल के प्रांगण में ‘गणतंत्र दिवस’ का राष्ट्रीय पर्व मनाया जाना था। तीन कुर्सियों पर तीन चित्रों को रखा गया था, जिसमें एक चित्र डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, मोहनदास करमचंद गांधी और एक चित्र सावित्रीबाई फुले का था। बच्चे उन चित्रों के सामने बैठे थे। तभी कुछ लोग बाहर से आये और एक अध्यापिका जिसका नाम था हेमलता बैरवा से प्रश्न करने लगे।
मैडम इस आयोजन में सरस्वती का चित्र क्यों नहीं रखा? हेमलता मैडम ने उनसे कहा ह्यसरस्वती का शिक्षा के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं। इसलिए उसका चित्र नहीं रखा।
हेमलता बैरवा ने आगे कहा ‘सावित्रीबाई फुले का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए उनका चित्र है। ’
उन लोगों ने गणतंत्र दिवस के इस कार्यक्रम में मैडम अध्यापिका पर दबाव बनाया कि इस कार्यक्रम में ‘सरस्वती’ का चित्र रखो। ‘वह है हमारी शिक्षा की देवी’ मैडम अध्यापिका ने उनसे कहा,ह्यसावित्रीबाई फुले ने भारत में पहला स्कूल खोला। जिसमें लड़कियों को पढ़ाया जाता था, ये हैं सच्ची शिक्षा की देवी और सही मायने में इनकी पूजा होनी चाहिए। इस पर वे भड़क गए मैडम हेमलता बैरवा को कहा कि सरस्वती का फोटो रखो, यह है शिक्षा की देवी और उस की पूजा करो नहीं तो .....फिर गालियाँ देने लगे और जान से मारने की धमकी देने लगे, नौकरी करना भुला देंगे, इस तरह उन्होंने कार्यक्रम में विध्न डाला।
मैडम ने कहा-मैं सरस्वती की पूजा नहीं करवाऊंगी अपने स्कूल में।
मैडम हेमलता बैरवा ने इस मामले में राजस्थान के बारा जिले के किशन गंज पंचायत में एक सरकारी विद्यालय कायह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें सरस्वती की पूजा करवाने का एक दलित शिक्षिका पर कुछ शिक्षक और गाँव के लोगों ने दबाव बनाया। वो शिक्षिका अकेली ही उन सब पर भारी पड़ती हुई नजर आई। मैडम हेमलता बैरवा ने 6 नामजद और एक अज्ञान के नाम एफआईआर में एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज करवाया। इस मामले में कई सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित संगठनों ने मैडम हेमलता बैरवा के इस साहसी कार्य का समर्थन किया। उनका कहना है कि इस तरह के सरकारी कार्यक्रमों में स्कूल के लोगों का हस्तक्षेप होना चाहिए न कि बाहरी किसी का।
इस दौरान वर्तमान शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का यह बयान कि स्कूलों में सरस्वती पूजा को प्रमुख रूप से और सही रूप से लागू किया जाएगा। जबकि प्रशासन की ओर से अभी तक कोई भी आदेश जारी नहीं किया गया है।
प्रशासन ने उस शिक्षिका के खिलाफ जाँच बैठाई उस जाँच में कुछ भी नहीं निकला और शिक्षिका के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। इसी बीच शिक्षा मंत्री का बारा जिले में दौरा हुआ उन्होंने ने अपने भाषण में अपने आकाओं को खुश करने के लिए कहा-सरस्वती को अपमानित करने वाले शिक्षिका को मैं निलंबित करता हूँ। साथ ही उनको प्रताड़ित करने के लिए उनका ट्रासफर भी 700 किलोमीटर दूर कर दिया गया। उन्होंने बीकानेर मुख्यालय से अटैच भी कर दिया। मंत्री के भाषण के बाद जिला शिक्षा अधिकारी पीयूष कुमार शर्मा ने उस साहसी और वैज्ञानिक सोच रखने वाली दलित शिक्षिका को अनुशासनिक कार्यवाही की गई तथा उन्हें निलंबित कर दिया गया।
इस खेल को देखकर उस गाँव व आसपास के लोगों में इस अन्याय के खिलाफ रोष और गुस्सा भर गया। उन्होंने स्कूल के गेट पर ताला लगाकर बच्चों सहित सभी धरने पर बैठ गए। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। शिक्षा मंत्री ने अपनी किरकिरी होते देख तुरंत पुलिस भेजकर उन निहत्थे लोगों पर लाठियां बरसाई उस भीड़ को वहाँ से हटाने का प्रयास किया गया।
मंत्री की इस कायरता पूर्ण कार्य की हम निंदा करते हैं। यहाँ हेमलता बैरवा के सवाल आज भी शिक्षा मंत्री व सारे शिक्षा विभाग के सामने खड़े हुए है।
1. सरस्वती शिक्षा की देवी कैसे हुई, उसका शिक्षा के क्षेत्र में क्या योगदान है? इसका इतिहास क्या है?
2.‘गणतंत्र दिवस’ पर सरस्वती के चित्र को रखा जाना कहा तक जायज है? इसे नहीं रखा जाना कहाँ तक जायज है? इसे नहीं रखे जाने से सवर्णों की आस्था कैसे आहत होती है आदि?
3.स्कूली कार्यक्रमों में बाहरी लोगों के हस्तक्षेप और एक महिला से अभद्रतापूर्ण व्यवहार उनके द्वारा किये जाने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए?
4.मैडम हेमलता बैरवा का निलंबन तुरंत बहाल करने तथा ट्रांसफर को रद्द किया जाना चाहिए।
उपरोक्त सभी बातों को निसंकोच मानने में ही सरकार की भलाई है, यदि इन बातों में कोताही बरती गई तो फिर जनता का गुस्सा और भड़केगा इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी, जनता नहीं।
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