2024-08-30 12:17:41
एण्ड टी.वी. पर एक नया धारावाहिक ‘भीमा’ शुरू हुआ है जो सोमवार से शुक्रवार को रात 8:30 से 9:00 बजे दिखाया जाता है। इसी टी.वी. चैनल पर पिछले काफी समय से एक धारावाहिक ‘महानायक’ नाम से बाबा साहब की जीवनी पर आधारित था, वह दिखाया गया था।
वर्तमान में जो ‘भीमा’ धारावाहिक चल रहा है इसमें भी बाबा साहब की विचारधारा को उनके माध्यम से ही पेश किया गया है। इस धारावाहिक के दूसरे एपिसोड में एक जमीदारिन को प्रस्तुत किया गया। लेकिन इसका भी तेवर पुरुषों के जातिवादी, छुआछूत और शोषण से कहीं बढ़कर ही दिखाया गया। उस जमीदारिन ने छुआछूत के कारण एक दलित जाति की लड़की को थप्पड़ मारा तो अपने दायें हाथ में एक नीला कपड़ा बांधकर थप्पड़ मारना पड़ा। जिससे वह अपवित्र होने से बच गई। दलित लड़की को थप्पड़ क्यों मारा क्योंकि उसने डी.एम. के सामने उस जमीदारिन के द्वारा कहे गए झूठ को उजागर कर दिया था। उस इलाके की डी.एम. साहिबा भी एक महिला है और उसी की जाति की हैं अर्थात वह भी दलितों को समझाने-बुझाने में लगी और उस जमीदारिन व उसके परिवार पर कोई कार्यवाई नहीं की। दूसरे दिन वह जमीदारिन उन दलितों के मौहल्ले में आई और उस लड़की पर अपने घर के कचरे के टोकरे से उस लड़की तथा उसकी माँ पर उस कचरें को डाल दिया और उसकी माँ को ललकारते हुए कहा ‘इस लड़की को हमारे घर-द्वारे भेज देना, घर की सफाई के लिए। यह बात सुनकर वह लड़की अपनी माँ से कहती है ‘हम विद्यालय पढ़ने जाएँगे, क्योंकि हमारे बाबा साहब ने हमें पढ़ने के लिए और अन्याय से लड़ने के लिए कहा है’ क्योंकि इस धारावाहिक में उस लड़की को डॉ. अम्बेडकर मूर्त रूप में दिखाई देते है और लड़की से बातें करते हैं। उस लड़की में साहस और प्रेरणा बढ़ाते हैं।
इस धारावाहिक में एक बात खासतौर पर दिखाई गई है कि सवर्ण महिलाओं पात्रों के माध्यम से ही जिनती क्रूर, हिंसक, नफरती सवर्ण समाज पुरुषों का है उससे कम महिलाओं का भी नहीं है। यहाँ स्त्री समाज में भी पूरी तरह से वर्ण व्यवस्था, जातिवाद, छुआछूत, शोषण और नफरत कायम हैं। वह चाहे दलित समाज की छोटी बच्ची हो, चाहे सारा महिला समाज हों उस महिला में उसके प्रति ना कोई दया है ना इंसानियत का भाव पैदा होता है। बल्कि सवर्ण महिला का उसे समाज में क्या हैसियत है? क्या स्थान है वर्णव्यवस्था के अनुसार, वह सवर्ण पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर साथ देती है।
अगले एपिसोड में जब लड़की, जिसका नाम ‘भीमा’ है वह अपनी माँ से विशेष आग्रह करके गाँव के स्कूल में ले जाती है तो वहाँ उन दोनों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जो किसी भी दृष्टि में थीं नहीं हैं। मानवता के अनुसार हर बच्चे को पढ़ने का हक है। भारतीय संविधान के अनुसार भारत के हर बच्चे को पढ़ने का अधिकार है किन्तु आज भी एक कुत्सित मानसिकता और जातिवाद से ग्रस्त सवर्ण समाज अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े तथा अल्पसंख्यक समाज के बच्चों से इस अधिकार से वंचित करने का भरसक प्रयास किया जाता है।
इसमें ऐसा ही है। उस स्कूल का प्रधानाचार्य तथा एक को छोड़कर सारा स्टाफ सवर्ण समाज का है तथा स्कूल के छात्र भी उसी समाज के हैं इसलिए भीमा और उसको इस स्कूल में प्रताड़ना ही मिलती है स्कूल में प्रवेश से साफतौर पर माना कर दिया जाता है। एक शिक्षक तो यहाँ तक आ जाता है कि और वह कहता है एक लाठी उठाते हुए कि शिक्षक की सीमा छोड़कर अपने जातिवादी दृष्टिकोण से इन दोनों को समझाता हूँ कि तुम्हें दाखिला नहीं मिलेगा इस स्कूल में।
इस साल 31 जुलाई 24 को देशभर में मुंशी प्रेमचंद जी सौवीं जयंती मनाई गई। समाज का हर वर्ग तथा समाज का हर उम्र के बच्चे, महिला-पुरुषों में आज तक जितनी इनकी लोकप्रियता है उतनी किसी की नहीं है इनकी कहानियों-उपन्यासों में समाज के बारें में जो चित्रण किया गया है। इनकी कहानियां में सामाजिक बुराइयों को छोड़ने की बात कहीं गई है। तथा अपने लेखों के द्वारा समय-समय पर समाज को दिशा दिखाने का काम किया है इनके बारें में वरिष्ठ साहित्यकार नासिरा शर्मा कहती है कि ‘बात चाहे आज की हो या सौ साल बाद की, जब तक लिटरेचर लिखा जाएगा और पढ़ा जाएगा, तब तक प्रेमचंद हमारे बीच जिंदा रहेंगे। जब तक इंसान की कहानी गहराई से लिखी जाएगी, औरतों की समस्याएँ बनी रहेगी, घरेलू युद्ध होते रहेंगे, भ्रष्टाचार होता रहेगा, प्रेमचंद की अहमियत बनी रहेगी और कौन सा हमारा समाज सौ साल में बदलने वाला है। वह तो पीछे की तरफ इतनी तेजी से जा रहा है।’
नासिरा शर्मा जी की यह बात बहुत महत्व रखती है कि और कौनसा हमारा समाज सौ साल में बदलने वाला है वह तो पीछे की तरफ इतनी तेजी से जा रहा है। इसी सोच को दिखती हुई एक खबर 7 अगस्त 24 को नवोदय दैनिक हिन्दी समाचार पत्र, दिल्ली में छपी दिखती है। खबर मुजफ्फर नगर, 7 अगस्त को जिले के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में छह वर्षीय एक दलित बच्चे को कुछ शिक्षकों ने शौचालय साफ कराने के लिए मजबूर किया और उस छात्र को एक कक्षा में बंद पाया गया। शिक्षक के पेशे को शर्मसार करने वाली यह घटना हुई। पुलिस ने बताया कि जानसाठ क्षेत्र के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पहली कक्षा के छात्र को कक्षा में बंद पाया गया और ऐसा प्रधानाध्यापिका संध्या जैन और क्लास टीचर रविता रानी के कारण हुआ। पुलिस ने जाँच में पाया स्कूल बंद था और बच्चा रो रहा था।
बच्चे के माँ ने पुलिस में शिकायत की तब पुलिस विद्यालय पहुँची तो विद्यालय बंद था और बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। प्रधानाध्यापिका को बुलवाया उसके बाद क्लास टीचर रविता रानी के पति चाबी लेकर पहुँचे और स्कूल का दरवाजा खुलवाया गया। बच्चे की माँ ने आरोप लगाया है कि दोनों अध्यापक उसके बेटे को शौचालय साफ करने को मजबूर करते थे।
इस घटना में सवर्ण महिला समाज की क्रूरता और घृणा के साथ ही साथ वर्णव्यवस्था का पालन करने को आज भी आतुर है। इस मामले में वो कानून को कुछ नहीं समझते! ये बड़ी गंभीर और शर्मनाक बात है। क्या इसी तरह से शिक्षक वर्ण अपनी खिल्ली उड़वाता रहेगा और वह अपनी जिम्मेदारियों से भागता रहेगा क्योंकि शिक्षकों के कंधों पर ही देश के भविष्य का निर्माण होगा यह केवल वाक्य नहीं एक नसीहत है सभ्य समाज के निर्माण की?
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