2022-10-07 06:10:40
सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध में विजयी होने के दसवें दिन मनाये जाने के कारण इसे अशोक विजयदशमी कहते हैं। विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है तथा बौद्ध जगत में इसका विशेष महत्व है। इसी दिन विजय दिवस को सम्राट अशोक ने 262 ई.पू.को बौद्ध धम्म दीक्षा ग्रहण की थी। कलिंग युद्ध में सम्राट अशोक ने यद्यपि विजय प्राप्त की थी लेकिन इस युद्ध मं बहुत बड़ी संख्या में कलिंग वासी मारे गये थे। इस विजय से अशोक को घृणा हो गयी और उन्होंने युद्ध व अस्त्र-शस्त्र का त्याग करने का मन बनाया। बौद्ध बन जाने पर वह बौद्ध स्थलों की यात्राओ पर गए। वे शांति का रास्ता खोजने में लग गये। अशोक को बौद्ध धम्म गुरु ने बुद्ध की शरण में जाने के लिए प्रेरित किया। सम्राट अशोक ने केवल इस दिन बौद्ध धम्म की दीक्षा ली बल्कि बौद्ध धम्म को राजकीय धर्म भी घोषित किया। भगवान बुद्ध के जीवन को चरितार्थ करने तथा अपने जीवन को कृतार्थ करने के निमित्त हजारों स्तूपों, शिलालेखोंंं, धम्म स्तम्भों का निर्माण कराया। अशोक के इस धार्मिक परिवर्तन से खुश होकर देश की जनता ने उन सभी स्मारकों को सजाया-संवारा तथा उस पर दीपोत्सव किया। यह आयोजन हर्षोउल्लास के साथ 10 दिनों तक चलता रहा, दसवें दिन महाराजा ने राज परिवार के साथ पूज्य भंते मोग्गिलिपुत्त तिष्य से धम्म दीक्षा ग्रहण की।
बौद्ध धम्म के प्रचार प्रसार के लिये अशोक ने अनेक कदम उठाये यहां तक कि उन्होंने अपने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धम्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा। सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धम्म पूरे भारत में फैल गया तथा दुनिया के अनेक देशों ने भी बौद्ध धम्म को अपनाया। सम्राट अशोक का शासन काल ही वह समय है जिसे स्वर्ण काल कहा जाता है। इसी काल में देश में चारों ओर जनता में सुख, शांति, समृद्धि थी। समानता, स्वतन्त्रता, बंधुता तथा सबको न्याय अपने चरम पर था। किसी भी देश के राजा ने भारत पर आक्रमण करने के बारे में नहीं सोचा। सभी देशों के साथ मैत्री तथा सौहार्दपूर्ण संबंध थे।
इसीलिए सम्पूर्ण बौद्ध जगत इसे अशोक विजय दशमी के रूप में मनाता है। लेकिन ब्राह्मणों ने इसे काल्पनिक राम की रावण पर विजय बता कर हमारे इस महत्त्वपूर्ण त्यौहार पर कब्जा कर लिया है। जहां तक दशहरे की बात है तो इससे जुड़ा तथ्य यह है कि चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य तक कुल दस सम्राट हुए। अंतिम सम्राट बृहद्रथ मौर्य की उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर दी और ‘शुंग वंश’ की स्थापना की। पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था। इस समाज ने इस दिन बहुत बड़ा उत्सव मनाया। उस साल यह अशोक विजयदशमी का ही दिन था। उन्होंने ‘अशोक’ शब्द को हटा दिया और जश्न मनाया। इस जश्न में मौर्य वंश के 10 सम्राटों के अलग-अलग पुतले न बनाकर एक ही पुतला बनाया और उसके 10 सर बना दिए और उसका दहन किया।
इसी अशोक विजय दशमी को बुद्ध जयंती के 2500वें वर्ष में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख अनुयाईयों के साथ नागपुर की दीक्षा भूमि में बुद्ध धम्म की दीक्षा ली। बाबा साहेब ने 13 अक्टूबर 1935 को येवला (महाराष्ट्र) में हिन्दू धर्म त्यागने की घोषणा की थी। बाबासाहेब ने बुद्ध धम्म में दीक्षा के साथ-साथ बाइस प्रतिज्ञायें भी बताई। इसलिए इस दिन को धम्म दिवस के नाम से भी जाना जाता है। इस अवसर पर नागपुर में एक सप्ताह के मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों लोग सहर्ष भाग लेते हैं। इस अवसर पर देश के अनेक शहरों, कस्बों तथा गांवों में धम्म दीक्षा व विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है।
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