2024-03-02 10:28:54
भारत की जनता से निकले राजनेताओं में नैतिक बल का घोर अभाव है; अमूमन देश के अधिकतर लोग मन से बेईमान हैं; हिंदुत्व की भावना यहाँ पर हर मनुष्य के अंदर गहराई तक व्याप्त है; जनता का चरित्र हिंदुत्व की भावना के कारण मानवता विरोधी है; यहाँ के हर मनुष्य की आंतरिक संरचना में जातिगत भेदभाव है; संविधान में निहित लोकतंत्र मोदी-संघी-भाजपा के शासन में कमजोर हुआ है; जनता में भय का माहौल है; दलित, पिछड़े व अल्पसंख्यक वर्ण की महिलाओं के साथ उत्पीड़न और शोषण की घटनाएँ मोदी के अमृत काल में बढ़ी हैं; राजनेताओं में आपसी विश्वास की कमी है; हर राजनीतिक दल अपने स्वार्थ को केंद्र में रखकर गठबंधन में दूसरे दलों से अधिक महत्व और स्थान चाहता है; सभी राजनैतिक दलों में परस्पर कॉडिनेशन का अभाव है; गठबंधन के घटकों में परस्पर संवादहीनता है; गठबंधन के राजनैतिक दलों के पास मोदी-भाजपा से लड़ने का कोई रणनीतिक योजना नहीं है। मोदी-संघी फासिस्टो से लड़ने के लिए सटीक व निर्णायक रणनीति की आवश्यकता होनी चाहिए; बहुजन समाज की संख्या के आधार पर हिस्सेदारी की भावना सभी दलों में कमजोर है।
राजनेताओं में नैतिक बल की कमी: देश की जनता में जातिवाद का भाव प्रबलता के साथ मौजूद है। यहाँ पर रहने वाले सभी लोग अपनी-अपनी जाति में रहकर सुरक्षित और सम्मानित महसूस करते हैं और अपनी जाति के नाम से अभिभूत होते हैं। हिंदुत्व के इस जातिवादी सिस्टम में क्रमिक ऊँच-नीच का पुख्ता इंतजाम है। क्रमिक ऊँच-नीच के कारण ही प्रत्येक जाति का व्यक्ति या तो अपने आपको अन्य के सापेक्ष ऊँचा या नीचा मानता है। यह अमानवीय व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ही जाति से निर्बाध बाँधे रखती है। जाति से बाहर जाने और अंदर आने का हिंदुत्व में कोई रास्ता न होने के कारण कोई भी मनुष्य दूसरी जाति में प्रवेश नहीं कर सकता। अभी कुछेक दिन पहले उत्तर प्रदेश में एक दलित युवक को अन्य तीन लड़कों ने बुरी तरह से पीटा और उस लड़के से अपने जूतों पर सिर रखने के लिए कहा। ऐसे अपराध आज संघी शासन में आम हो गये है, लेकिन इस झगड़े में खास बात यह थी कि पीटने वाले तीनों लड़कों में एक यादव, दूसरा केवट (मल्लाह), तीसरा भी ओबीसी समाज से ही था। पीटने वाले तीनों लड़के ब्राह्मण वर्गीकरण के अनुसार शूद्र वर्ण में ही आते हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि आज देश की ब्राह्मणी संस्कृति के लोग पहले के मुकाबले अधिक शातिर हो गए है। भारतीय समाज में यह कोई नई बात नहीं है, पहले भी ऐसी घटनाएँ ब्राह्मणवादियों के उकसाने पर शूद्रों के साथ शूद्रों से ही कराई जाती रही है। भारत की सामाजिक व्यवस्था में क्रमिक ऊँच-नीच के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको दूसरे से ऊँचा समझकर ऐसे अपराधों को अंजाम देता है और फिर फर्जी काल्पनिक जातिगत श्रेष्ठता के कारण उसे जनता में प्रचारित करके सही ठहराता है। ऐसे जघन्य अपराधों को जब तक गंभीर अपराध की श्रेणी में लाकर दंड संहिता में उचित बदलाव करके ऐसे अपराधों के लिए मौत की सजा का प्रावधान नहीं होगा, तब तक ऐसे अपराध करने वालों के मन में कानून के डर का भाव भी पैदा नहीं होगा।
देश के अधिसंख्यक लोग मन से बेईमान: देश के अधिसंख्यक लोग मन से बेईमान है। आमतौर पर देखा जा रहा है कि भारत में प्रत्येक राजनैतिक व्यक्ति अपनी ईमानदारी का ढ़ोल पीटता है मगर वास्तविकता के आधार पर वह व्यक्ति अपने अंदर के मन में बेईमानी का भाव रखता है। आम जीवन में कोई भी सरल व्यक्ति अपने आपको न ईमानदार कहता है न बेईमान कहता है सिर्फ वे ही लोग अपने आपको कट्टर ईमानदार कहते हैं जिनके मन में गहराई तक बेईमानी का भाव छिपा है। जिसके कारण वे किसी भी मुद्दे पर दूसरे लोगों के साथ सहमत नहीं हो पाते हैं। यही बेईमानी का भाव इनको एक जगह स्थिर नहीं रहने देता। इस सबका श्रेय ब्राह्मणवादी व्यवस्था को जाता है। इन्हें पता है कि आम लोगों को बाँटकर रखो, तभी ब्राह्मणवादी संघी-मोदी-भाजपा सत्ता में रहेगी। समाज को जाति, वर्ण में बाँटने का श्रेय ब्राह्मण वर्ण को जाता है चूंकि इसका लाभ उसी को मिला है। आज भी वह इसे निरंतरता के साथ बनाए रखने का पक्षधर है।
हिंदुत्व की भावना प्रत्येक जातिवादी व्यक्ति में गहराई तक व्याप्त: राजनैतिक गठबंधनों में देखा जा रहा है कि भिन्न-भिन्न दलों के व्यक्तियों में कहने के लिए धर्मनिरपेक्षता है, सभी आपसी बातचीत में जातिवाद को नकारते हैं लेकिन वास्तविकता के आधार पर सभी राजनैतिक नेताओं की संरचना में हिंदुत्व का भाव अंदर तक समाहित है। जिसके कारण हर नेता के अंदर जातिवादी मानसिकता का भाव परिलक्षित होता है। जिसके कारण दूसरे दलों के भिन्न जाति वाले अपने से भिन्न जाति के नेता के साथ परस्पर मेल-मिलाप का भाव नहीं होता और यही जातिवादी भाव किसी को भी गठबंधन के मामले में एक नहीं होने देता। जातिगत दलों के नेता अपनी जाति के लोगों पर अधिक विश्वास और भरोसा रखते हैं। हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है, यह एक विचारधारा है जो मानवता विरोधी और जहरीली है। यह सभ्य समाज व उसके विकास के लिए घातक है। इसके चलते सभ्य और सरल लोगों में गठबंधन मुश्किल है।
हिंदुत्व के कारण देश का चरित्र मानवता विरोधी: देश की अधिकांश जनता में हिंदुत्व के भाव के जहर को 2000 हजार वर्षों से लगातार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से देश की जनता में घुसाया जा रहा है। जिसके कारण लोग 2000 वर्षों से जो सुनते आ रहे हैं, वे उसे ही सही मान रहे हैं वहीं भाव उनके चरित्र में वास करके बाहर परिलक्षित होने लगता है। यही जाति का भाव मनुष्य के जीवन में उसे एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करने देता। विश्वास की कमी के कारण ही इंडिया गठबंधन के घटक दल एक-दूसरे का विश्वास न करके गठबंधन से छिटक रहे हैं। हिंदुत्ववादी चरित्र गठबंधन को मजबूत नहीं होने देता। किसी भी गठबंधन के लिए एक जैसी मानसिकता रखने वालों के बीच एक निर्बाध और मजबूत गठबंधन संभव है। आज हिंदुत्व का श्रेष्ठता भाव दूसरे के मन में शंका पैदा करता है जो गठबंधन की भावना को कमजोर बनाता है।
गठबंधन में जाति व वर्ण का भाव: देश का हर आदमी अंदर से जातिवादी है और दिखावे में वह अपने आपको जाति विरोधी कहता है। जातिवादी मानसिकता के कारण ही केजरीवाल जैसे नेता जो गहराई तक जातिवादी है। मगर अपने दिखावे में वह जातिवादी होने को नकारते हैं। उनका यह ढोंग दलितों और मुस्लिमों की वोट को अपने पाले में लाने के लिए होता है। वे जानते हैं कि दिल्ली में वैश्य समाज का वोट सिर्फ 6-7 प्रतिशत है जिनकी संख्या के आधार पर वे दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। दलितों और मुस्लिमों को झांसे में रखने के लिए उन्होंने बाह्य आवरण ओढ़ा हुआ है जो पूर्णतया दिखवी है। उनका यह नीति इंडिया गठबंधन में दूसरे दलों के मुकाबले अपने लिए अधिक हिस्सा माँगने का दबाव बनाती है जो किसी भी तरह से तार्किक और न्यायिक नहीं है। कांग्रेस को ईमानदारी से बहुजन समाज के लिए उनकी संख्या के हिसाब से भागीदारी देनी चाहिए और मजबूत अम्बेडकरवादियों को गठबंधन में लाना चाहिए। कांग्रेस को अपने ब्राह्मणी चरित्र को बदलना होगा। हिंदुत्व को पालना और उसे बढ़ावा देना छोड़ना होगा।
लोकतंत्र मोदी-संघी-भाजपा ने किया कमजोर: मोदी केंद्र की सत्ता में पिछले 10 वर्षों से है। इन 10 सालों के दौरान मोदी ने अपने संघी साथियों के साथ मिलकर संविधान की धज्जियाँ उड़ाई है और साथ ही अपने ऐसे कृत्यों को जनता से छिपाया भी है, जो जनता और संविधान विरोधी है। संसद के शीलकालीन सत्र के दौरान 145 संसद सदस्यों को निलंबित किया गया। जो संसद के दोनों सदनों के सभापतियों का मनमाना व असंवैधानिक कार्य था संसद के सदस्यों के निलंबन को सत्ता पक्ष ने सही ठहराया जिसके कारण देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को खतरा बढ़ गया है। चूंकि संघी मानसिकता की सरकारें 1950 से लेकर आजतक संविधान विरोधी ही रही है। ऐसे असंवैधानिक कार्य करके ये गर्व महसूस करते हैं और संविधान को न मानने का खुला प्रदर्शन भी करते हैं। आज जनता महसूस कर रही है और कह रही है कि मोदी-संघियों का आचरण यह इंगित कर रहा है कि 2024 का चुनाव भारत का आखिरी चुनाव होगा। अगर ऐसा हो गया तो वह मनुस्मृति काल होगा जिससे बहुजन समाज का अकल्पनीय नुकसान होगा। बहुजनों को इसे रोकना होगा अपने सर्वाधिक वोट की ताकत से।
जनता में भय का माहौल: आज पूरे देश में मोदी के अंधभक्तों ने आतंकी भय पैदा किया हुआ है जो लोग तार्किक और व्यवहारिक बात करते हैं मोदी के अंधभक्त उनको विभिन्न माध्यमों से ट्रोल करते हैं और किसी-किसी को फोन करके धमकियाँ देकर डराते भी हैं। विरोधी राजनैतिक दलों के राजनेताओं के पीछे ईडी, सीबीआई, इन्कमटैक्स आदि को लगाकर उनको डर दिखाकर मोदी के गठबंधन में आने के लिए मजबूर करते हैं। इंडिया गठबंधन के बहुत सारे घटक दल सरकारी एजेंसियों की प्रताड़ना से बचने के लिए आज मोदी गठबंधन की शरण में जा रहे हैं और इसी प्रक्रिया के चलते इंडिया गठबंधन शंका ग्रस्त नजर आ रहा है और गोदी मीडिया उसे मोदी से कमजोर दिखा रहा है, लोगों के मन में मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा किया जा रहा है।
दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ी है: 10 साल के मोदी शासन में दलितों, मुस्लिमों और सभी वर्गों की महिलाओं पर अत्याचार और उत्पीड़न की घटनाएँ अपेक्षाकृत अधिक बढ़ी है। इन सबको जनता से ओझल करने के लिए मोदी-संघी लोग झूठ का सहारा ले रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री आज झूठ बोलने के मामले में विश्व के प्रथम स्थान पर खड़े हैं। झूठ बोलने में संघियों का चरित्र सबसे उत्तम है। हर बात पर झूठ बोलकर लिपा-पोती करके दिखाया जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मोदी-योगी ने कोरोना काल में इतने बड़े-बड़े झूठ बोले जो देश की जनता को ही नहीं बल्कि विश्व की अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं को भी सही नहीं लगे। मोदी-योगी को अपने झूठों पर न कोई शर्म आई और न सच बोंलने का साहस दिखाया। अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के आँकड़ों के मुताबिक कोरोना महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या 4-5 लाख के बीच बताई गई है लेकिन मोदी-योगी के साथ मिलकर झूठ बोलते रहे और अपने अंधभक्तों के द्वारा देश की जनता को गुमराह करते रहे देश को ऐसी सरकार नहीं चाहिए जो हर कदम पर झूठ और फरेब का सहारा लेती है। मोदी भगाओ और देश बचाओ। आज देश की जनता के सामने मोदी संघी सरकार को चुनाव के माध्यम से हराकर सत्ता से भगाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।
राजनेताओं में आपसी विश्वास की कमी: गठबंधन के नेताओं में आपसी विश्वास की कमी है। हर नेता अपने आपको गठबंधन के केंद्र में रखकर सीट बटवारे में अधिक सीटें चाह रहा है। सभी नेताओं में अपना-अपना स्वार्थ है, देश की जनता के लिए किसी भी दल के पास कोई सर्वमान्य जनहित का एजेंडा नहीं है। सभी दल सिर्फ अपने-अपने बारे में सोचते हैं जिससे गठबंधन का भाव अस्थिर होता हैं। गठबंधन के घटक दलों में आमतौर पर देखा गया है कि किसी भी घटक में समता व समानता का भाव नहीं है। बुनियादी तौर पर सभी की मानसिकता विषमतावादी है। इसलिए घटक दल का मुखिया अपने को श्रेष्ठ मानकर दूसरे दलों के साथ बैठकर गठबंधन करने की इच्छा नहीं रख रहा है। सभी घटकों में अन्तरविरोध है, दूसरे घटक दलों को कोई राजनैतिक स्पेस नहीं देना चाहता है। सभी दलों में न्यायिक चरित्र का घोर अभाव है। इंडिया गठबंधन के घटक दल स्वार्थ की भावना के चलते दिन-प्रतिदिन दबाव बनाने के लिए मौका देखकर गठबंधन से छिटकने का नाटक कर रहे हैं। जनहित के नेताओं को बहुजन समाज व देशहित को सर्वोपरि मानते हुए सार्वजनिक घोषणा करनी चाहिए कि जिन दलों के नेताओं में मनुवाद और सामंतवाद की भावना है और वे उसी आधार पर गठबंधन में रहने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें गठबंधन में नहीं आने देना चाहिए।
राजनैतिक दलों में परस्पर कॉडिनेशन का अभाव: इंडिया गठबंधन के नेताओं का शुरू में ही प्रस्ताव था कि गठबंधन के संयोजक की नियुक्ति की जाये और यह संयोजक सभी घटक दलों को जोड़कर बात को आगे बढ़ाए लेकिन संयोजक की नियुक्ति नहीं हो पायी। नीतीश कुमार शायद इस पद के लिए इच्छुक थे लेकिन ममता बनर्जी के विरोध और कांग्रेस की सुस्ती के कारण यह पद उन्हें नहीं मिला जिसके कारण नीतीश कुमार अपने चरित्र के अनुसार पलटी मारकर मोदी-भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए। उनके इस कृत्य ने नीतीश कुमार को देश में सबसे अधिक अविश्वसनीय बना दिया है। जनता के मन में भी नीतीश कुमार के लिए बहुत ही घृणा का भाव पैदा हो गया है और उनके मुकाबले तेजस्वी यादव का कद बढ़ा है। बिहार की जनता उनको बिहार का भावी नेता मान रही है। मेंढकों को तराजू में रखकर तोलना असंभव कार्य होता है। स्वार्थी मेंढक प्रवृति के राजनैतिक दलों को अलग-अलग रखना ही बेहतर होगा आने वाले चुनाव और उसके परिणाम सबको उनकी औकात का पता बता देगा।
परस्पर संवादहीनता: इसके लिए अधिकतर घटक दल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मुंबई में गठबंधन की मीटिंग होने के बाद कांग्रेस ने लगातार बैठकों की तारीख टाली थी की उनके नेता पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव में व्यस्त होने का बहाना कर रहे थे। शायद कांग्रेस विधान सभा चुनाव में बेहतर परिणाम मिलने के बाद अन्य दलों पर सीटों की अधिक हिस्सेदारी के लिए दबाव बनाना चाहती थी। लेकिन चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में खराब रहे। शीर्ष नेतृत्व के बीच संवादहीनता बनी रही। कांग्रेस अपनी पूरी ताकत और ऊर्जा न्याय यात्रा में लगाती रही।
राजनीति में बहुजन समाज का भविष्य: गठबंधन सबको साथ लेकर प्रत्येक घटक को उसकी अपेक्षा से अधिक देने से मजबूत बनता है। गठबंधन के दलों का एक के बाद एक का छिटकना घटक दलों में स्वार्थ की प्रबलता को दर्शाता है। बहुजन समाज को गठबंधनों के आंतरिक स्वार्थ को भाँपकर समाज हित में फैसला लेना होगा। देरी करने पर नुकसान ही होगा, खुलकर मैदान में उतरकर सामने से फ्रंट फुट से खेलना होगा। बहुजन समाज के नेताओं को दो महीने के समय में अपने-अपने समाज के लोगों का वोट, वोटर लिस्टों में दर्ज कराकर, चेक कर लेना चाहिए। याद रखना चाहिए कि मनुवादी-संघी लोगों ने वोटर लिस्टों में बड़े पैमाने पर हेरा-फेरी और गड़बड़ियाँ कराई हुई है। चुनाव की घोषणा के बाद कुछ नहीं हो पाएगा। इसलिए हर व्यक्ति वोटर लिस्टों में अपना नाम, पता चेक करके सुनिश्चित करें। वोट करने का फैसला चुनाव की घोषणा के बाद लें।
प्रजातंत्र में नेताओं को प्रजा की भावना को भाँपकर अपने रणनीतिक फैसले करने चाहिए। अगर कोई नेता जनभावना को दरकिनार करते हुए अपने फैसले जनता को सुनाता है तो जनता पहली बार में उनके फैसले का कोई खास विरोध नहीं करती। वहीं दूसरी बार भी अगर नेता ऐसा ही मनमाना व्यवहार करता है तो नेता के फैसलों पर अमल करने वालों की संख्या घटकर आधी रह जाती है। तीसरी बार भी अगर नेता अपना मनमाना फैसला समर्थकों पर थौंपता है तो समर्थकों की 90 प्रतिशत जनता अपना अलग रास्ता तलाशने का फैसला कर लेगी। बहुजन समाज पार्टी आज इसी चौराहे पर खड़ी नजर आ रही है। बहन जी की अक्रियशीलता और अपने समर्थकों की भावना के अनुरूप फैसला लेने में देरी, समाज को चौहराहे पर खड़ा कर रही है। इसलिए बहुजन समाज की जागरूक जनता अब अपना फैसला समाज के हित में खुद ले लेगी, अब और इंतजार नहीं करेगी। आज बहुजन समाज का हित गैर भाजपा-संघी दलों के साथ जाने का बन चुका है। बहुजन समाज संघियों के पिछले दस वर्षों के शासन को देखकर कह रहा है कि ‘मोदी भगाओ संविधान बचाओ’। देश का हित संविधान और मानवतावाद के साथ है।
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