2024-01-20 09:16:57
मुसहर, भुईयां, सदाई, मांझी व रजवार भारत के बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में पाया जाने वाला एक स्वदेशी समुदाय है। यह न केवल भौगोलिक रूप से भिन्न हैं बल्कि उनमें कई सांस्कृतिक विविधताएँ और उपसमूह भी हैं। इन्हें मुसहर, बनवासी, भुइयां, मांझी और रजवार के नाम से भी जाना जाता है। भूमि खोदने के काम के कारण इन्हें भुइयां कहा जाता है। कुछ मुसहर लोग खुद को भुईयां भी मानते हैं। हालांकि बिहार सरकार की नजर में अब यह एक अलग जाति है, जिसकी आबादी 11,74, 460 है। भुईयां यानी जमीन। मगही में जमीन को भुईयां ही कहते हैं। ये खुद को जमीन पर रहने वाले ही मानते हैं। झारखंड (छोटा नागपुर) में इन्हें भुइयां कहा जाता है। उत्तर बिहार में इन्हें मुसहर के नाम से जाना जाता है, जबकि मध्य बिहार में इन्हें भुइयां और मुसहर दोनों नामों से जाना जाता है। मुसहर समुदाय के लोग मजबूत शारीरिक बनावट के होते हैं। स्वभाव से ये ईमानदार, मेहनती, निष्कपट और सहनशील होते हैं। दक्षिणी बिहार से उतरी बिहार की ओर पलायन करने वाले मुसहरों का इतिहास रहा है कि वे गंगा में घड़ियाल पकड़ने का काम करते थे। मुसहर समाज के लोगों की शिकायत है कि सामंतवादी घृणा और जातीय वैमनस्यता के कारण चूहा पकड़ने वाली बात सबको समझ में आती है, लेकिन यह कोई नहीं कहता कि मुसहर इतनी बहादुर जाति रही है जो गंगा नदी में घड़ियाल भी पकड़ा करती थी। कई साहित्यकारों ने लिखा है कि भुईयां इस देश में सबसे पहले जंगलों को काट कर कृषि कार्य आरंभ करने वाला समाज है।
कैसे हुई मुसहर शब्द की उत्पत्ति?
पुराने समय में मुसहर की स्थिति बंधुआ मजदूर जैसी थी। जमींदार और किसान जब इनसे फसल कटवाते थे तो मजदूरी के बदले इनको अनाज देते थे। इसी से इनका गुजर-बसर चलता था। लेकिन मजदूरी में मिलने वाले अनाज से इनका पेट नहीं भर पाता था। अनाज की कमी होने की स्थिति में इन्होंने गेहूं और धान के बालों को इकट्ठा करना शुरू किया, जो चूहे अपनी मांद में ले जाते थे। फिर उससे अन्न निकालकर भोजन के रूप में प्रयोग करते थे। मांद से गेहूं और धान के बाल निकालने के दौरान इन्हें वहां चूहा मिला। साग-सब्जी के अभाव में यह चूहों को सब्जी के रूप में खाने लगे। इस तरह से अनाज के अभाव में पेट भरने के चूहा का शिकार करने वाले और उसे आहार के रूप में ग्रहण करने वाले ‘मुसहर’ कहलाए। मुसहर का शाब्दिक अर्थ है-चूहा खाने वाला। चूहा पकड़ने और खाने के कारण इनका नाम मुसहर पड़ा।
मुसहर जाति का इतिहास
ब्रिटिश नृवंशविज्ञानशास्री हर्बट होप रिस्ले ने बंगाल प्रेसिडेंसी की जातियों और जनजातियों का व्यापक अध्ययन किया था। रिस्ले ने अपने 1881 के सर्वेक्षण में अनुमान लगाया था कि मुसहर छोटा नागपुर पठार के शिकारी-संग्रहकर्ता भुईयां की एक शाखा थे। यह 1881 के सर्वेक्षण से लगभग 6-7 पीढ़ी पहले यानी कि वर्तमान से लगभग 300-350 वर्ष पहले गंगा के मैदानों में चले गए थे। आधुनिक अनुवांशिक अध्ययनों में भी इस सिद्धांत को आमतौर पर सही पाया गया है। डीएनए गुणसूत्रों के अध्ययन में मुसहर समुदाय को मुंडा समुदाय जैसे संथाल और होस के करीब पाया गया है। मातृ और पितृ वंश दोनों में समान हैपलोग्रुप आवृत्तियों से पता चलता है कि इन सब के पूर्वज एक थे। हैपलोग्रुप या वंश समूह जीन के ऐसे समूह होते हैं जिससे यह पता चलता है कि उस दिन समूह को धारण करने वाले सभी प्राणियों के पूर्वज एक थे। मुसहर इस बात का दावा करते हैं कि कभी उनकी अपनी भाषा थी, जो स्थानांतरगमन के कारण विलुप्त हो गई।
मुसहर और भुइयां
‘भुइयां’ नाम संस्कृत के शब्द ‘भूमि’ से आया है, जिसका अर्थ है भूमि। वे मजबूत पारिवारिक संबंधों वाले पितृसत्तात्मक बहिर्विवाही समूह हैं। भुइयां शब्द का प्रयोग कई अलग-अलग संदर्भों में किया जाता है और यह हमेशा जनजाति को संदर्भित नहीं करता है। कुछ अन्य जनजातियाँ और गैर-आदिवासी भूमिधारक भी भुइयां को शीर्षक के रूप में उपयोग करते हैं। जनजाति का प्रारंभिक इतिहास अनिश्चित है, लेकिन भुइया औपनिवेशिक भारत में सबसे अधिक आबादी वाली और व्यापक जनजातियों में से एक थी। उड़ीसा के उत्तरी सहायक राज्य भुइयां का प्रमुख गढ़ थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि वे क्योंझर, बोनाई, गंगापुर, बामरा, संथाल परगना, हजारीबाग, मानभूम और सिंहभूम राज्यों के साथ-साथ पूर्वी भारत और निचले असम के अधिकांश क्षेत्रों के सबसे पुराने निवासी थे। वे उड़ीसा, बंगाल, बिहार, छोटानागपुर, असम, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, मध्य भारत और मद्रास प्रेसीडेंसी के अन्य मैदानी इलाकों में भी पाए गए। बाद में उन्होंने केवट, कैबर्टा, या खंडायत और अन्य संबंधित जातीय समूहों जैसे हिंदूकृत समूहों के रूप में हिंदू सामग्री में प्रवेश करने के लिए संस्कृतिकरण किया। क्योंझर और बोनाई के सामंती राज्य में, जनजाति शक्तिशाली थी। उनके पास राज्य के राजा को स्थापित करने का पारंपरिक अधिकार था। मोटे तौर पर, भुइयां को उनके निवास के सामान्य क्षेत्र के अनुसार दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है। पावरी या पौरी भुइयां के नाम से जाने जाने वाले, वे आम तौर पर पहाड़ी और दुर्गम वन क्षेत्रों में रहते हैं। उनके पास जीवन का एक अधिक आदिम तरीका है और वे पोडु खेती में संलग्न होने के कारण आर्थिक रूप से अधिक वंचित हैं। हालाँकि, वे राजनीतिक रूप से शक्तिशाली थे और क्योंझर राज्य के शासक उनके समर्थन पर निर्भर थे।
मुसहर किस कैटेगरी में आते हैं?
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मुसहर जाति को अनुसूचित जाति के रूप में वगीर्कृत किया गया है।
मुसहर उपजातियां
मुसहर जाति में तीन अंतर्विवाही कुल शामिल हैं। भगत, सताकिया और तुर्ककहिया। मांझी, सदा और मंडल इनके प्रचलित सरनेम हैं। ज्यादातर मुसहर हिंदू धर्म को मानते हैं। कुछ मुसहर बौद्ध भी हैं।
मुसहर जाति की जनसंख्या
2011 की जनगणना में उत्तर प्रदेश में मुंह शहर की जनसंख्या लगभग 2,50,000 लाख थी। इसी जनगणना में बिहार में मुसहरों की आबादी 2,50,000 के करीब बताई गई थी। लेकिन मुसहर कार्यकर्ता इस आंकड़े को सही नहीं मानते। उनका दावा है कि बिहार में मुसहर की आबादी 40 लाख से अधिक है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी दावा करते हैं कि पूरे देश में इस समाज के लोगों की आबादी 80 लाख के करीब है।
बिहार में गया, रोहतास, अररिया, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया, गया, दरभंगा, सारण, चंपारण, भोजपुर, बेगूसराय और खगड़िया में इनकी घनी आबादी है। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज जिलों में मुसहर समाज समुदाय की बड़ी आबादी निवास करती है।
मुसहर भारत, नेपाल और बांग्लादेश में पाए जाते हैं। लगभग सारे मुसहर ग्रामीण इलाकों में निवास करते हैं, केवल 3% शहरी इलाकों में रहते हैं। यह भोजपुरी, मगही, मैथिली और हिंदी बोलते हैं। भारत में यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में रहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी नेपाल में इनकी बहुतायत आबादी है। नेपाल में 2,30,000 से ज्यादा मुसहर नेपाल में निवास करते हैं।
नेपाल में मुसहर
2011 की नेपाल जनगणना मुसहर को मधेशी दलित के व्यापक सामाजिक समूह में वगीर्कृत करती है। 2011 की नेपाली जनगणना के समय, 234,490 लोग (नेपाल की जनसंख्या का 0.9%) मुसहर थे। प्रांत के अनुसार मुसहर की आवृत्ति इस प्रकार थी:
मधेश प्रांत (3.0%)
कोशी प्रांत (1.4%)
लुंबिनी प्रांत (0.1%)
बागमती प्रांत (0.0%)
गंडकी प्रांत (0.0%)
करनाली प्रांत (0.0%)
सुदुरपश्चिम प्रांत (0.0%)
निम्नलिखित जिलों में मुसहर की आवृत्ति राष्ट्रीय औसत (0.9%) से अधिक थी
सिराहा (6.3%)
सप्तरी (6.1%)
महोत्तरी (3.7%)
सुनसारी (3.4%)
मोरंग (3.0%)
धनुषा (2.6%)
सरलाही (1.8%)
परसा (1.6%)
बारा (1.4%)
उदयपुर (1.2%)
परासी (1.1%)
रौतहट (1.1%)
यह फलसफा वाजिब नहीं है कि लोकतांत्रिक राजनीति में संख्या का महत्व होता है। यह इसके बावजूद कि एक आदमी-एक वोट का सिद्धांत हमारे देश में है। प्रमाण यह कि बिहार में 40,35,787 लोग रहते हैं, जो खुद को मुसहर बताते हैं। यह आंकड़ा बिहार सरकार द्वारा हाल में जारी जाति आधारित गणना रिपोर्ट-2022 का है। यह आंकड़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी रिपोर्ट में उन जातियों का भी आंकड़ा है, जिनकी संख्या मुसहर जाति से बहुत कम है, लेकिन शासन-प्रशासन में उनकी भागीदारी उनकी आबादी के अनुपात में कई गुना अधिक है। मुसहर जाति के लोगों की आबादी के अनुपात में भागीदारी न्यूनतम रही है। एक जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बनाए भी गए तो इस तरह कि नीतीश कुमार की कृपा के पात्र माने गए। सरकारी आंकड़ों से इतर 90 फीसदी लोगों के पास अपने नाम पर एक धुर भी जमीन नहीं है। ये गैरमजरूआ जमीन पर, नहर किनारे, गांव के दक्खिन टोले में रहते हैं। गैर-मजरूआ जमीन पर झोपड़ी डालकर रहना और अपनी रैयत अथवा पट्टेवाली जमीन पर घर बनाकर रहने में बहुत फर्क होता है। एक फर्क तो पते का ही है। अधिकांश मुसहरों के आवासीय पते में मुसहर टोली के अलावा मुसहरी का उल्लेख अवश्य रहता है।
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