2023-08-26 09:46:56
परम पूज्य बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर (dr. bheemrao ambedkar) एक अति उच्च शिक्षित तथा शिखरीय व्यक्तित्व के धनी थे। उन्हें एम.ए., एम.एससी., पीएच.डी., डी.एससी., एलएल.डी.,डी.लिट. तथा बार.एट-लॉ जैसी डिग्रियाँ प्राप्त थी। डी.लिट को छोड़कर सभी डिग्रियाँ अमेरिका तथा इंग्लैण्ड के विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की गई। वे हिन्दी, इंग्लिश, मराठी, गुजराती, संस्कृत, फारसी, फ्रेंच, जर्मन तथा उर्दू भाषाओं के ज्ञाता थे। वे अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र, नृवंशशास्त्र, तर्कशास्त्र, इतिहास, विज्ञान सहित अनेक विषयों के विद्वान थे। साथ ही कई धर्मों के ज्ञाता, विश्व के अनेक देशों के संविधान के ज्ञाता तथा महान संविधानविद थे। इसलिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘सिम्बल आॅफ नालीज- ज्ञान का प्रतीक’ माना। डॉ. अम्बेडकर कहते थे कि वे अकेले 500 ग्रेजुऐटों के बराबर हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अपने एक श्रेष्ठ छात्र तथा करोड़ों लोगों का उद्धार करने वाले डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा अपने पुस्तकालय के सामने प्रांगण में स्थापित की है। यह गौरव प्राप्त करने वाले डॉ. अम्बेडकर अकेले भारतीय हैं। विश्व के अनेक देशों में भी उनकी प्रतिमाएं स्थापित की जा चुकी है।
डॉ. अम्बेडकर उच्च शिक्षा प्राप्त ऐसे उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री थे जो शिक्षा को सर्वाधिक महत्व देते थे तथा जिनकी सर्वाधिक महत्वाकांक्षा थी कि दलित समाज के हजारों साल से दबे, पिछड़े, गरीब, मजलूम, साधनहीन तथा अशिक्षित लोग शिक्षा को अपनाएं, लड़के तथा लड़कियां सभी को यथासंभव उच्च शिक्षा दिलायें, तभी समाज का विकास हो सकता है, लोगों के घर में खुशियां तथा रोशनी आ सकती है। उनका कहना था कि ‘ज्ञान ही शक्ति है’। ‘शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो उसे पियेगा, वही दहाड़ेगा’। उनका यह भी कहना था-‘‘ब्राह्मणवाद उनके ज्ञान पर नहीं बल्कि हमारी अज्ञानता पर टिका है’’। सारांश में यही कहा जा सकता है कि उच्च शिक्षा तथा उच्च कोटि के बुद्धि बल से ही अकेले डॉ. अम्बेडकर ने ब्राह्मणवादियों से जीवन पर्यंत लोहा लिया, बिना जेल जाये तथा बिना किसी हिंसा के करोड़ों-करोड़ों दलितों, अछूतों को आजादी दिलायी तथा सम्मान से जीने का अधिकार दिलाया। उनका यह काम विश्व में अद्वितीय है, ऐसा दूसरा कोई उदाहरण नहीं है।
दलितों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये डॉ.अम्बेडकर बहुत पहले से ही प्रयत्नशील थे। बाबा साहेब जब वायसराय की कार्यसमिति (सन 1942 से 1946) श्रम तथा कार्य मंत्री थे तब उन्होंने वायसराय से सिफारिश करके 16 अछूत छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भिजवाया था। उन्होंने देखा कि दलित वर्ग की अपनी कोई शिक्षण संस्था नही है। सरकारी तथा संस्थागत स्कूलों में दलितों के बच्चों को या तो प्रवेश ही नहीं मिलता या उनके साथ भेदभाव किया जाता है। उन्होंने महसूस किया कि दलित वर्गों की भी अपनी शिक्षण संस्थायें होनी चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये डॉ.अम्बेडकर ने 8 जुलाई सन 1945 को बम्बई में ‘पीपुल्स एजूकेशन सोसाइटी’ की स्थापना की। इस संस्था का संविधान भी स्वयं उन्होंने बनाया। इस संस्था के अंतर्गत कई स्कूल, कॉलेज तथा लड़के व लड़कियों के लिये छात्रावास खोलने की योजना बनाई। सर्वप्रथम बाबा साहब ने 20 जून 1946 को सिद्धार्थ कॉलेज, बम्बई की स्थापना की। यह विद्यालय आज महाविद्यालय का रूप ले चुका है। इसी संस्था के अंतर्गत डॉ. अम्बेडकर ने 19 जून 1950 को मिलिंद कॉलेज, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की स्थापना की। 1 सितंबर सन 1951 को इस कॉलेज की आधारशिला भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गई। यह ाविद्यालय भी धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण महाविद्यालय बन गया। महाराष्ट्र के लोगों के संघर्ष के कारण वर्तमान में इस विद्यालय का नाम डॉ. भीमराव अम्बेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय हो गया है। बाबा साहब द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा छात्रावासों की स्थापना का कार्यक्रम आगे भी अनवरत जारी रहा। वे इन संस्थाओं में समय-समय पर जाते थे। वहाँ छात्रों तथा अध्यापकों से बातचीत करके जानकारी लेते थे। वे हर विद्यालय के पुस्तकालय का निरीक्षण अवश्य करते थे। वे अपने व्याख्यान में छात्रों तथा अध्यापकों को अच्छी सारगर्भित सीख देते थे।
(लेखक आकाशवाणी से सेवानिर्वत पूर्व अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
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