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महात्मा फुले, शिक्षा तथा हंटर आयोग

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2022-10-13 09:26:15

राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिराव फुले इस देश के अग्रणी क्रांतिकारी समाज सुधारक तथा शिक्षा के क्रान्ति अग्रदूत माने जाते हैं। महात्मा फूले ही वह प्रथम शिक्षक थे जिन्होेंने अपनी पत्नि सावित्रीबाई फूले के साथ दलित, शूद्रों, महिलाओं तथा निर्धन वर्गों के लोगों में शिक्षा की क्रान्ति ज्योति जलाई तथा इनके लिए शिक्षा के द्वार खोले जो ब्राह्मणवादियों ने इनके लिए हमेशा-हमेशा के लिए बंद किये हुए थे। महिालाअ‍ों की शिक्षा पर तो सख्त पाबंदी थी यहां तक कि सवर्ण महिलाअ‍ों पर भी मनु व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति भी शूद्रों जैसी ही थी जैसा कि तुलसी जी की इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताडन के अधिकारी। जिस समय फूले ने सामाजिक सुधार तथा शिक्षा का आंदोलन चलाया, उस समय समाज पूर्णत: मनुवाद व ब्राह्मणवाद के मकडजाल में बुरी तरह फंसा हुआ था। समाज में घोर अंधविश्वास, पाखंड, जातिगत भेदभाव, अशिक्षा, कुरीतियां, गरीबी, छूआछूत व्याप्त थे, अर्थात चारों तरफ जीवन में अंधकार ही अंधकार। ऐसी ही घोर विषम परिस्थितियों में महात्मा फूले ने महाराष्ट्र में सामाजिक व शैक्षिक क्रान्ति का सूत्रपात किया।

ज्योतिराव फूले का जन्म पूणे में माली समाज में 11 अप्रैल 1827 को हुआ। इनके पिता का नाम गोविन्द तथा माता का नाम चिमणाबाई था। इनकी माता पूणे के निकट धनकवडी नामक गांव के निवासी श्री झगडे की पुत्री थी। ज्योतिराव दो भाई थे, इनके बडे भाई का नाम राजाराम था। मराठी भाषा में बा आदर और प्रीति का सूचक है। ज्योतिराव जब 21 वर्ष के थे तो उनके मित्र सम्मान और प्रेम से ज्योतिराव को ज्योतिबा नाम से पुकारने लगे। ज्योतिबा जब एक वर्ष के भी नहीं थे, ऐसे ही समय इनकी माता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अच्छे लालन पालन तथा भविष्य के लिए उनके पिता ने बच्चों के लिए सौतेली मां न लाने तथा जीवन पर्यन्त दूसरा विवाह न करने का फैसला किया। बच्चों की देखभाल उन्होंने ज्योतिबा की मौसेरी बहन श्रीमती सगुणाबाई क्षीरसागर को सौंपी जो कि बाल विधवा थी। उन्होंने दोनों बच्चों राजाराम तथा ज्योति का लालन पालन बडी निष्ठा तथा सर्मपण भावना से किया तथा बच्चों को मां की कमी कभी महसूस नहीं होने दी। ज्योतिबा के पूवर्जों का पैतृक व्यवसाय फूलों की खेती करना तथा उनकी बिक्री करना था। उनका यह व्यवसाय अच्छा फल फूल रहा था। इस लिये इनके परिवार को फुले कहा जाने लगा। लेकिन धीरे-धीरे परिवार के लोग अलग हो गये। तब अकेले गोविन्दराव ने पुणे के निकट एक गांव में ही खेत में सब्जी उगाने व बेचने का धंधा शुरु किया और उनकी अच्छी गुजर बसर होने लगी।

गोविन्दराव ने अपने पुत्र ज्योतिराव को सात वर्ष की आयु में मराठी स्कूल में प्रवेश दिला दिया। लेकिन गोविन्दराव की दुकान पर ही काम करने वाले ब्राह्मण क्लर्क ने यह कहकर कि ज्योतिबा पढ लिखकर क्या करेगा? पढ लिखकर पैतृक काम तो नहीं करेगा तब तुम्हारा धंधा तो चौपट ही हो जायेगा। तुम्हारा धंधा कौन संभालेगा बोलकर बहका दिया। पिता ने ज्योतिबा का स्कूल जाना बंद कर दिया। ब्राह्मण शूद्रों को पढाने के विरूद्ध ऐसे ही भडकाते रहे हैं। तेरह वर्ष की आयु में ज्योतिबा का नायगांव जिला सतारा के श्री नेवसे पाटिल की बेटी सावित्री बाई (जन्म 3.01.1831) के साथ विवाह हो गया। उस समय सावित्री नो वर्ष की थी। लेकिन ज्योतिबा की पढने की इच्छा बलवती थी। वे स्कूली पढ़ाई छूटने के बावजूद भी घर पर दिये की रोशनी में पढते थे। उनकी यह लगन देखकर गोविन्दराव के पडोस में कोई अंगे्रज अधिकारी लिजिट साहब रहते थे। उन्होंने गोविन्द को ज्योतिबा की शिक्षा जारी रखने के लिए समझाया। अब गोविन्द को ब्राह्मण द्वारा बहकावे में आने की भूल समझ आई। उन्होंने ज्योतिबा को स्कॉटिश मिशन स्कूल में सन 1841 में भर्ती करा दिया। ज्योतिबा पढने में कुशाग्र बुद्धि वाले छात्र थे इसलिये उन्होंने अच्छी तरह शिक्ष ग्रहण की वे हर परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते चले गये। ज्योतिबा को मानवीयता तथा राजनीति शास्त्र का अच्छा ज्ञान हो गया और अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड। इस प्रकार ज्योतिबा का सन 1847 में अंगे्रजी स्कूल का अध्ययन पूरा हुआ। ज्योतिबा की दाई मां सगुणाबाई ने न केवल उनका लालन पालन किया बल्कि उन्हें सच्ची मानवता के संस्कार भी दिये। वे अपनी आजीविका के लिए एक जॉन नामक ईसाई धर्मोंपदेशक के घर पर उनके बच्चों की देखभाल करने का काम करने लगी। ज्योतिबा भी वहां कभी-कभी जाते थे, ईसाई पादरी की मानव सेवा का प्रभाव उनके मन पर पडा। सगुणाबाई भी इस सच्ची मानव सेवा से प्रभावित थी। वे भी चाहती थी कि ज्योतिबा भी मानव सेवा के काम में लगे और गरीब तथा निम्न जातियों जैसे महार तथा मांग आदि जातियों के लोगों की सेवा करने में लग जायें। इस प्रकार सगुणाबाई का उनका चरित्र संवारने में बडा योगदार रहा। इन बातों को देखकर उनके मन में गरीब, पीडित व दलितों की सेवा के अंकुर फूटने लगे। लेकिन सब अपमानजनक घटना उनकी जीवन धारा को इस ओर पूरी तरह मोडने में मील का पत्थर साबित हुई। ज्योतिबा को उनके एक ब्राह्मण मित्र के विवाह में जाने का निमंत्रण मिला। वे बारात में शामिल होकर सबसे साथ-साथ बारात में चलने लगे। यह देखकर कि शूद्र माली जाति का लडका ब्राह्मणों के साथ-साथ चल रहा है ब्राह्मण आग बबूला हो गये और ज्योतिबा को जाति सूचक गालियां दी तथा उनका बहुत अपमानित किया। इस पर ज्योतिबा विवाह छोडकर अपने घर आ गये। यह देखकर ज्योतिबा विचलित हो गये कि यदि एक शिक्षित का ब्राह्मणवाद में ऐसा अपमान है तो गरीब व अशिक्षितों का क्या होगा। यह सोचकर उनकी रातों की नींद उड गई। वे बार-बार यह सोचते रहते कि इस जाति व्यवस्था का तो कुछ करना पडेगा। उनका मन इस तरह ही कुछ करने को चल पडा। यदि व चाहते तो उस समय उनहें अच्छी सरकारी नौकरी मिल सकती थी। लेकिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे सरकारी नौकरी नहीं करेंगे व अपना जीवन दलित व शूद्रों को ऊपर उठाने में लगायेंगे।

जाति व्यवस्था से लडते हुए दलित शूद्रों अछूतों के उद्वार के लिए उन्होंने अपना ध्येय निश्चित किया। उन्होंने निर्णय किया कि इस ध्येय की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम इन वर्गों में शिक्षा का प्रसार करना आवश्यक है। जिस शिक्षा के अधिकार से ब्राह्मणों ने दलित व शूद्र वर्गों को वंचित कर दिया उस शिक्षा के बिना किसी भी वर्ण का उत्थान असंभव है। यह रास्ता ढूंढने के लिए ज्योतिबा ने तथागत गौतम बुद्ध, समानन्द, कबीर, गुरूनानक व सवेश्वर तथा दादू आदि का साहित्य पढा। साथ ही संत तुकाराम की बहती, ज्ञानेश्वरी आदि भागवत ग्रंथ, मार्टिन लूथर किंग की जीवन, प्रोफेसर विल्सन तथा सर विलियम जोन्स आदि की हिन्दू धर्म पर लिखी पुस्तकोंं का भी अध्ययन किया। पढकर यही निष्कर्ष उनके सामने आया कि इन वर्गों की गुलामी की बेडियां काटने के लिये इन वर्गों में शिक्षा का प्रसार करना ही सर्वप्रथम रास्ता है।

शिक्षा के प्रसार के लिए ज्योतिबा फूले ने 1 जनवरी सन 1848 को पूणे के बुधवार पेठ क्षेत्र में एक कन्या पाठशाला की स्थापना की। पाठशाला एक सुधारवादी ब्राह्मण तात्या साहेब भिडे के बडे मकान में खोल गई। बाद में इस पाठशाला की मुख्य अध्यापिका सावित्रीबाई फूले को बनाया गया। इस प्रकार सावित्रिबाई प्रथम महिला शिक्षिका बनीं। इस समय तक पेशवाई राज का अंंत हो चुका था। लेकिन समाज में छूआछूत महिलाओं, के प्रति गलत मानसिकता, पाखण्ड व ब्राह्मणवाद का बोलबाला था। कन्याओं को पढाना पाप समझा जाता था। ज्योतिबा द्वारा यह स्कूल खोलने की चारों तरफ भारी आलोचना हो रही थी। सावित्रीबाई पर स्कूल जाते आते समय लोग इन्हें अपमानित करते गालियां देते तथा उनपर कीचड व गोबर भी फेंकते थे। लेकिन दृढ़ निश्चय वाली सावित्रीबाई इस दुर्व्यवहार से तनिक भी विचलित नही हुई इस मिशन को और फैलाने का उन्होंने दृढ़ निश्चय किया। लोगों ने ज्योतिबा फूले द्वारा किये जा रहे सामाजिक सुधारों व शिक्षा कार्य के विरूद्ध उनके पिता श्री गोविन्दराव को भडका दिया। उन्होंने बहकावे में आकर ज्योतिबा को यह सब काम त्यागने अथवा घर छोडने की चुनौती दे दी। गोविन्दराव ने कहा तू यह पाप कर्म कर रहा है जो आज तक किसी ने नहीं किया इससे तो तू पाप में डूबेगा ही लेकिन इसके साथ तू अपने परिवार व पूर्वजों को लेकर पाप में डूबेगा। ज्योतिबा ने घर छोडने की चुनौती को स्वीकारा और अपने पैतृक घर को त्याग दिया। ऐसे कष्ट के समय फातिमा शेख नाम की महिला ने उनका साथ दिया। उस्मान शेख ने उनके रहने के लिए अपना घर दे दिया। फातिमा शेख ज्योतिबा के मित्र उस्मान शेख की बहन थी। फातिमा भी सावित्रीबाई के साथ मिलकर अछूतों के स्कूल का संचालन करती थी। फातिमा शेख पहली मुस्लिम अध्यापिका बनी। फूले दम्पत्ति ने 15 मई 1848 को पूणे शहर में ही अछूत बस्ती में अछूतों के बाल बालिकाओं के स्कूल की स्थापना की। यह पाठशाला अछत बच्चों के लिए देश की पहली पाठशाला थी। सगुणाबाई व बाद में सावित्रीबाई इस स्कूल में पढाती थी। फूले दम्पत्ति का शिक्षा प्रसार का यह कारवां दिनोंदिन बढता ही जा रहा था। फूले दम्पत्ति ने थोडे से ही वर्षों में 18 और स्कूलों की स्थापना कर दी। ज्योतिबा के स्कूलों का अध्यापन सरकार स्कूलों के अध्यापक से श्रेष्ठ है ऐसी रिपोर्ट सरकारी अधिकारियों ने अपने निरीक्षण में दी। इसलिए छात्रों की संख्या फूले दम्पत्ति स्कूलों में सरकारी स्कूलों के मुकाबले अधिक थी। उनके इस महान कार्य की सूचना महारानी विक्टोरिया तक भी पहुंची और उन्होंने ज्योतिबा के इस कार्य की बहुत प्रशंसा की। तब बम्बई सरकार ने 16 नवम्बर 1952 को गर्वनर की अध्यक्षता में पूणे के विश्राम बागवाडे में ज्योतिबा फुले का सार्वजनिक अभिनन्दन किया और दो सौ रु पये का कीमती सम्मान के रूप मेंं भेंट किया। ज्योतिबा ने अपने भाषण में अपने मित्रो, सहयोगियों और हितैषियों का धन्यवाद किया और भराई आवाज में मांग की मैने यह काम अपने विवेक व बुद्धि के आधार पर किया है। मै सरकार से यह मांग करता हूं कि नारी शिक्षा के कार्य को सरकार अपने हाथ में ले ले। सरकार ने यह मांग मंजूर की। सरकार ने और अधिक कनया पाठशालायें खोली तथा ज्योतिबा द्वारा खोली पाठशालाओं का संचालन भी सरकार ने अपने पास ले लिया। इस बीच सरकार ने ज्योतिबा फूले की पाठशालाओं को दक्षिणा प्राइज कमेटी का फंड से 75 रुपये महीना मासिक की सहायता स्वीकृत की।

ज्योतिबा फूले की स्पष्ट सोच थी कि सरकार को सब जगह शिक्षा का प्रबंध करने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाने चाहिए चंूकि शिक्षा के अभाव में समाज की स्थिति में सुधार संभव नहीं ज्योतिबा के शिक्षा प्रसार के कारण अब दलित वर्ग व शूद्र वर्ग के लोग भी जाग्रत हो गये थे, उनमें भी अपने बच्चों को शिक्षा देने की चेतना आ गई थी। आमतौर पर लोग देशी नौकरों की अपेक्षा अंग्रेज अफसरों को अधिक अच्छा मानते थे। दलित वर्ग के लोग भी अब सरकार से सभी स्थानों पर स्कूल खोलने की मांग करने लगे। सरकार ने इसे मानकर सन 1882 में प्राथमिक शिक्षा के ािये हंटर कमीशन की नियुक्ति की। हंटर कमीशन ने सभी वर्ग के लोगों को अपना प्रस्ताव व पक्ष रखने के लिये बुलाया। यह जानकर आश्चर्य होगा कि राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारक ने हंटर कमीशन के सामने उपस्थित होने पर दलित व शूद्र वर्गों में शिक्षा प्रसार के प्रस्ताव का विरोध किया तथा मांग की कि पहले शिखा का प्रस्तर सवर्ण जातियों में किया जाये, दलित वर्गों में तो शिक्षा का प्रसार अपने आप चला जायेगा। अन्य ब्राह्मण विद्वानों ने भी इसी सुर में सुर मिलाया। ज्योतिबा फूले ने 19 अक्टूबर 1882 को हंटर कमीशन को अपना ज्ञापन दिया। उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए इस बात पर बल दिया कि पहले गांव व देहात में रहने वाले दलित वर्ग, किसान और मजदूरों को ही शिक्षा में प्राथमिकता दी जाये। सरकार ने इस मांग को सकारात्मक संकेद दिया।

ज्योतिबा फू ले का यहां तक का जीवन संघर्ष यह स्पष्ट करता है कि उन्होंने दलित अछूत व शूद्र वर्गों की दुर्दशा का गहराई से अध्ययन किया और उसके कारण भी जानने का हर प्रयास किया। वे यही निष्कर्ष पर पहुंचे कि हर उन्नति व विकास का मार्ग शिक्षा द्वारा ही संभव है। इसलिये ज्योतिबा फुले ने अपना यह प्रसिद्ध उदगार कविता के रूप में प्रकट किया,विद्या बिन मति गई, मति बिन नीति गई, नीति बिन गति गई, गति बिन वित्त गया, वित्त बिना शूद्रों का पतन हुआ। इतना घोर अनर्थ केवल अविया के कारण ही हुआ।

ज्योतिबा फूले ने इस प्रकार सबसे अधिक जोर शिक्षा पर ही दिया। बाद में डॉ. अम्बेडकर ने भी दलित व अछूत वर्गों के उत्थान के लिये सबसे पहला मंत्र दिया शिक्षा। डॉ. अम्बेडकर महात्मा फूले को अपना गुरु मानते थे। डॉ अम्बेडकर ने शिक्षा के बारे में कहा शिक्षा वह शेरनी का दूध है जिसे पीकर कोई भी दहाड सकता है। डॉ. अम्बेडकर ने स्वयं उच्च शिक्षित होने का उदाहरण प्रस्तुत किया। इसी उच्च शिक्षा व ज्ञान के बल पर बाबा साहेब ने इन दलित वर्गों व अछूतों की गुलामी की बेडियां काट दी।

महात्मा ज्योतिबा फूले का जीवन संघर्ष भी बहुत विस्तृत है। उन्होंने समाज सुधार व दलित, शूद्रों के उत्थान के लिये हर क्षेत्र में काम किया, हर क्षेत्र में अपनी छाप छोडी। उनके जीवन संघर्ष को किसी एक लेख में नहीं समेटा जा सकता, उसके लिये तो कई ग्रन्थ लगेंगे। लेकिन शिक्षा प्रसार की ही कडी में एक घटना का उल्लेख करना भी अति आवश्यक है। घटना मार्च 1888 की है। इंग्लैण्ड की महारानी विकटोरिया के पुत्र ड्यूक आॅफ कनॉट उस समय पूणे विभाग के सेनापति थे। जब वे लंदन लौटने लगे तब पूणे के नागरिकों ने उनके सम्मान में एक विदाई समारोह का आयोजन किया। इस समारोह में ज्योतिबा फूले भी आमंत्रित थे। समारोह में देशी रियासतों के राजा, गणमान्य नागरिक, धनी लोग तथा अधिकारी सुसज्जित गहनरे व वेशभूषा में सम्मिलित हुए। लेकिन ज्योतिबा इसके विपरीत फटे पुराने कपडे पहने, फटी पुरानी पगडी बांधे व कंधे पर कम्बल रखे शामिल हो गये। ऐसी वेशभूषा होने पर सुरक्षा कर्मचारियों ने उनको रोकने का प्रयास किया लेकिन आमन्त्रण पत्र देखकर समारोह में जाने दिया। जब ज्योतिबा फूले की बोलने की बारी आई तो उन्होंने धारा प्रवाह अंगे्रजी में अपना भाषण दिया और यह कहा, ड्यूक महोदय आप मुझे ऐसी वेशभूषा में देखकर हैरान होंगे। लेकिन में ऐसी वेशभूषा पहनकर आपको यह जताना चाहता हूं कि इस देश के किसान व गरीब कैसे रहते हैं। उन्हें न तो भरपेट खाना मिलता है और न तन ढकने के लिये पूरे कपडे। उनका कोई जीवन नहीं है। मेरा आपसे नम्र निवेदन है कि इंग्लैण्ड जाकर आप अपनी माता जी महारानी विक्टोरिया को इन लोगों का यह संदेश दे दें कि वे हमें इस दुर्दशा से निकालने के लिए कदम उठायें। वे कुछ करें या न करें लेकिन कम से कम हह लोगों को शिक्षा अवश्य दें। हम लोगों के लिए शिक्षा का अच्छा प्रबंध हो जाये तो हमें इस दुर्दशा से छुटकारा अवश्य मिल जायेगा। यहां जमा हुए लोगों को देखकर यह न समझो कि भारत के सभी लोगों की दशा ऐसी ही है। यहां जमा हुए लोग किसानों और गरीबों के प्रतिनिध नहीं है। यदि आप गांवों देहातों में जायेंगे तो भारत का सच्चा रूप पायेंगे। आज्ञा है आप ऐसा करेंगे।

अंत में यही निवेदन है कि महात्मा ज्योतिबा फूले और उन जैसे इस देश के अन्य महानायकों व राष्ट्र निर्माताओं की शिक्षाओं पर सरकार व जनता सभी अमल करें तो यह देश बहुत आगे बढ़ जायेगा।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05