2025-10-04 15:50:29
भारतीय लोकतंत्र वर्तमान समय में खतरनाक और चिंताजनक स्थिति में है। हम भारत को संविधान सत्ता के हिसाब से चलाने के बजाय कट्टरता, असहिष्णुता और घृणा की तरफ बढ़ता देख रहे हैं। बाबा साहेब द्वारा निर्मित भारतीय संविधान में दिये गए अटूट विश्वास ‘हम भारत के लोग’ से भारतीय लोगों की यात्रा ‘हिन्दू राष्ट्र और फांसीवाद’ की तरफ मोड दी गई है। हिन्दू राष्ट्र के फांसीवादी प्रेरकों से संवैधानिक लोकतंत्र को सीधी चुनौती मिल रही है। सभी संवैधानिक संस्थाओं यहाँ तक की न्यायपालिका और शिक्षण संस्थानों में भी संघी मानसिकता के लोगों को स्थापित कर दिया गया है। वर्तमान सरकार का हर कदम जन विरोधी, राष्ट्र विरोधी, बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) विरोधी है। भारतीय संविधान में दिये गए सबसे मूल्यवान विचार- न्याय, स्वतन्त्रता, समता और बंधुता को हाशिये पर धकेल दिया गया है। भारत में बीते सौ वर्षों में डेमालॉक (दुर्जनों के नेताओं) को जनता के सामने नेता के रूप में पेश किया जा रहा है। उनकी पूरे देश में काल्पनिक और कृत्रिम छवि बनाकर भारत की जनता के सामने पेश किया जा रहा है।
धूर्त संघियों की पृष्ठभूमि: भारत में संघी मानसिकता का विकास इटली के तानाशाह मुसोलिनी की मूल सोच के आधार पर हुआ है। डॉ.बालाकृष्ण शिवराम मूंजे जो महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण थे, वे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता भी थे, लेकिन जब 1924 में गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष चुना लिया गया, अध्यक्ष बनने के बाद गांधी ने कांग्रेस के संविधान में दो महत्वपूर्ण बातें जोड़ी जिनमें एक थी ‘धर्मनिरपेक्षता’ और दूसरी ‘अहिंसा’। इन दोनों जोड़े गए प्रावधानों को लेकर डॉ. मूंजे ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद डॉ. मूंजे तानाशाह मुसोलिनी से इटली में जाकर मिले थे। उन्होंने इटली जाकर विश्व प्रसिद्ध तानाशाह मुसोलिनी से मुलाकात की और उनके साथ महान रोमन साम्राज्य के बारे में विस्तार से बात की। मूंजे द्वारा बातचीत के दौरान मुसोलिनी ने मूंजे को बताया की इटली के लोग बहुत सज्जन है, आपस में मिल-जुलकर रहते हैं और किसी से भी भेदभाव की भावना नहीं रखते है, मगर इटली के लोग अपने गौरवशाली रोमन साम्राज्य पर गर्व नहीं करते और न उसकी प्रशंसा में प्रचार करते हैं। डॉ. मूंजे के मस्तिष्क में तानाशाह मुसोलिनी की यही बात घर कर गई, और उन्होंने इटली से लौटकर डॉ. बलिराम हेडगवार को विस्तार से अपनी मुलाकात और मुसोलिनी से हुई चर्चा के विषय में बताया। डॉ. मूंजे की ये ही पंच लाइनें (मुख्य बिन्दु) डॉ. बलिराम हेडगवार के मस्तिष्क में बैठ गई और उन्होंने 27 सितम्बर 1925 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना इसी मूल मानसिकता के आधार की। तभी से आरएसएस निर्बाध तरीके से समाज को गुमराह करता व जातीय टुकड़ों में विभाजित करता हुआ चला आ रहा है।
आरएसएस के तथ्य विहीन आधार: आरएसएस एक ऐसा संगठन है जिसका आजतक भारतीय कानून के मुताबिक न पंजीकरण है और न उसके सदस्यों का कोई रजिस्टर है, न ही उसके आय-व्यय की स्रोतों का पता है। कहने और दिखाने के लिए आरएसएस अपने आपको एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन बताता है लेकिन उसका यह कथन भारतीय समाज की आंतरिक संरचना से न मेल नहीं खाता है और न उनकी कार्यशैली में परिलक्षित होता है। भारतीय जनता बहु संप्रदायवाद, बहुभाषी, बहुक्षेत्रीयता के साथ भारत में बसती है। संघियों की कार्यशैली को देखकर साफतौर पर दिखता है कि संघ में काम करने वाले लोगों की मानसिकता में अल्पसंख्यक विरोधी, शूद्र समाज विरोधी नीतियाँ गहराई तक समाहित है और वे रात-दिन मानवता विरोधी ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ का सअक्षर गुणगान समाज में करते रहते हैं। मनुस्मृति को ही वे अपना संविधान मानते हैं और उसी आधार पर ये सभी संघी मानसिकता वाले लोग मनुवादी भी कहलाते हैं। मनुस्मृति ब्राह्मणों द्वारा निर्मित एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें सभी वर्गों की महिलाओं व शूद्र वर्ग में आने वाले संप्रदायों के बारे में अपमान जनक बातों का वर्णन किया गया है। विडम्बना यह है कि मनुस्मृति में जिन वर्गों, समुदायों, जातियों के बारे में अपमानजनक बातें लिखी हुई हंै, उन समुदायों की महिला व पुरुष ही इन घृणात्मक बातों का समाज में प्रचार-प्रसार करते नजर आते हैं और इन वर्गों की महिलाएं ही मनुवादियों के अपमानजनक प्रचार में अधिक बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। उदाहरण के तौर पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जो भारत की एक कोली जाति से संबंधित है और अनुसूचित जाति की श्रेणी (एससी) में आते हैं उनकी मानसिकता में मनुवादी और संघी तत्व गहराई तक व्याप्त है। उनको शर्म भी नहीं आती कि भगवान बुद्ध की माता जी खुद कोली समाज से संबंधित थी और जब सिद्धार्थ गौतम (भगवान बुद्ध) ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने गृहनगर कपिलवस्तु में अपने बीमार पिताजी (शुद्धोधन) को देखने के लिए गए तब उनके पिताजी ने भगवान बुद्ध को सन्यासी के रूप में देखकर आश्चर्य व्यक्त किया और उन्हें लौट आने के लिए भी आग्रह किया। इसी समय पर घर त्याग के बाद भगवान बुद्ध अपनी पत्नी यशोधरा से भी मिले। पत्नी यशोधरा ने भगवान बुद्ध से लिपटकर विलाप किया उनको घर लौटकर आने का आग्रह किया जब उनकी पत्नी यशोधरा उनके साथ लिपटकर विलाप कर रही थी तो भगवान बुद्ध के साथ चल रहे भिक्षुओं ने उन्हें अलग करने का प्रयास भी किया था, तब भगवान बुद्ध ने अपने साथ चल रहे भिक्षुओं से उन्हें रोकने के लिए मना किया और कहा कि उन्हें ऐसा करने दो। भगवान बुद्ध स्थिर अवस्था में थे और उन्होंने अपने सभी सगे-संबंधितों के आग्रह को मंजूर नहीं किया बल्कि ऐसे वक्त में अपने सगे-संबंधियों को भी उन्होंने दुनिया के लिए कल्याणकारी धम्म का उपदेश दिया जिसे सुनकर सभी निरउत्तर थे, अंतत: सभी ने भगवान बुद्ध से दीक्षा ग्रहण कर ली और उनके सभी सगे-संबंधित भिक्षुओं की श्रेणी में शामिल हो गए।
100 वर्षों में संघ के देश विरोधी कार्य: भारतीय जनता को ब्रह्मजाल में फँसाने के लिए मनुवादी मानसिकता के संघी प्रेरक दिन-रात झूठ आधारित अवास्तविक बातें करके जनता को फँसाने का काम करते रहते हैं। इनकी सभी बातें और प्रचार झूठ और पाखंड पर आधारित होते है, इनकी कुछेक बातें दुनिया के मशुहर तानाशाह हिटलर से भी मेल खाली है, जैसे ‘झूठ बोलो, बार-बार बोलो, जोर से बोलो और बार-बार बोलते रहो’ वास्तविकता के आधार पर यह कथन हिटलर का था लेकिन वर्तमान समय में नेट पर सर्च करने पर मोदी का ही नाम ही पहले आता है, जो मूल सत्यता से परे है। संघ ने कभी भी देश की एकता के लिए कोई काम नहीं किया। संघ की वास्तविकता खँगालने पर पता चलता है कि संघ की कार्यशैली हमेशा देश-विरोधी रही है, देश का धार्मिक आधार पर विभाजन भी संघियों के सबसे लाडले और उनके द्वारा सम्मानित बताए जाने वाले सावरकर की रणनीति ‘द्वि राष्ट्र’ की विचारधारा के आधार पर हुई। चूंकि शायद वे स्वयं और उनके जैसी मानसिकता वाले संघी लोग समझ रहे थे कि अगर देश का विभाजन धार्मिक आधार पर होता है तो देश का एक हिस्सा पाकिस्तान बनेगा और दूसरा हिस्सा स्वत: ही धार्मिक आधार पर हिंदु राष्ट्र बन जाएगा। बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने मनुवादी संघियों के इस प्रस्ताव से असहमति जताई थी और उन्होंने स्वयं कहा था कि देश का बंटवारा धार्मिक आधार पर नहीं होना चाहिए। आज मोदी-संघियों के मनुवादी साथी बाबा साहेब के कथन को जनता में तरोड-मरोड़ कर पेश करते रहते हैं। जनता को गुमराह करने के लिए बाबा साहेब के कथन को मुस्लिम विरोधी करार देकर झूठा प्रचार करते हैं। बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर का राष्ट्र हित में मन्तव्य था कि देश को संगठित रखकर ही देश को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। उसे धार्मिक आधार पर टुकड़ों में बांटकर शक्तिशाली नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए उन्होंने जिन्ना को भी अपने तर्कों के आधार पर समझाया था, जिन्ना बाबा साहेब के तर्कों के आधार पर सहमत भी होते नजर आ रहे थे मगर मनुवादी संघी मानसिकता के लोग बाबा साहेब की विचारधारा के विपरीत थे, इसलिए संघी लोग जो आज अपने आपको राष्ट्रवादी बताते हैं यह उनका दिखावा और छलावामयी बयानबाजी है, दरअसल इनकी मानसिकता में कभी भी राष्ट्रवाद था ही नहीं, ये सभी फांसीवादी संरचना वाले लोग हैं, जिनसे देश के लोकतंत्र को खतरा है।
देश के खिलाफ षड्यंत्रकारी रचनाओं में संघी आगे: देश में आजतक जितनी भी देश विरोधी गतिविधियां हुई है उनमें संघी मानसिकता के लोगों ने हमेशा ही बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। उदाहरण के तौर पर मालेगाँव रेल बम ब्लास्ट केस में प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित व अन्य पाँच नाम शामिल थे और ये सभी विवेकानन्द फाउंडेशन नाम की संस्था से जुड़े हुए थे जो संघी गतिविधियों के लिए काम कर रहे थे। इसी प्रकार की गतिविधि में भाजपा के साक्षी महाराज जो वर्तमान में उन्नाव से सांसद है, ये तो कुछेक नाम हैं लेकिन हम तथ्यों के आधार पर कह सकते हैं कि देशभर में आजतक जितनी भी देश विरोधी कार्यों को अंजाम दिया गया है उनमें संघी मानसिकता के लोग ही अग्रणीय भूमिका में रहे हैं। संघी मानसिकता की एक विशेषता यह भी है कि संघी मानसिकता के लोगों की कार्यप्रणाली जमीन की ऊपरी तरह पर दिखाई नहीं देती यह जमीन की सतह से नीचे रहकर ही कार्य करते हैं। जिससे जनता को पता चलता है कि संघी मानसिकता के लोग निडर व लड़ाकू नहीं है। ये डरपोक किस्म की प्रजाति के लोग हैं, डर के कारण ही ये जमीन की सतह के नीचे रहकर काम करते हैं, ताकि ये किसी को दिखाई न दे और न किसी की नजर में आए और निरंतरता के साथ देश विरोधी कार्य करते रहे। अंग्रेजी शासन काल में भी इनके चरित्र का ऐसा ही प्रदर्शन था। संघी मानसिकता के लोग अंग्रेजों से बार-बार लिखित मांफी मांगकर जेल से छूटे। जिनमें मुख्य नाम सावरकर और अटलबिहारी वाजपेयी का भी आता है। इनके अलावा हजारों की तादाद में संघियों के पास इसी मानसिकता के लोग थे जिन्होंने देश विरोधी कार्यों को अंजाम दिया। राष्ट्रभक्ति का भाव इनकी मानसिकता में कभी था ही नहीं, इनकी सभी बातें तथ्यहीन तथा झूठी है।
आजादी के आंदोलन में संघियों का योगदान नगण्य: भारतीय स्वतंत्रता का आंदोलन देश की आजादी के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। भारतीय देशभक्त देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में जब जुटे हुए थे तब मनुवादी संघी लोग ऐसे देश के वीर सपूतों की मुकबरी अंग्रेजी सरकार से करके उन्हें गिरफ्तार करवाकर, मरवाने की साजिश रच रहे थे। किसी भी संघी मानसिकता के व्यक्ति ने तथ्यात्मक आधार पर देश की आजादी में कोई योगदान नहीं दिया है, बल्कि ये सभी मनुवादी उस वक्त के देशभक्तों के खिलाफ षड्यंत्रकारी चाले चल रहे थे। जलियांवाला बाग अमृतसर में हुई घटना के पीछे भी एक षड्यंत्रकारी संघी ब्राह्मण का ही हाथ था, वह संघी मानसिकता का व्यक्ति उस समय जलियांवाला बाग में मौजूद था। जब जलियांवाला बाग का मैदान देशभक्तों से भरा हुआ था, तब वह संघी मानसिकता का व्यक्ति पल-पल की खबर जनरल डायर को दे रहा था। जनरल डायर ने स्थिति को भाँपकर गोली चलाने के आदेश दिए जिसमें गैर मनुवादी असंख्य लोग मारे गए। इस घटना से पूरा देश आहत हुआ था और इस घटना के वक्त महान क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह उसी मैदान में मौजूद थे। सरदार उधम सिंह बहुजन समाज (एससी) के एक राष्ट्रवादी देशभक्त थे, उन्होंने इस जघन्य घटना को देखकर और वहीं बैठकर अपने मन में यह दृढ़ संकल्प किया था कि मैं इस अपराध के लिए जरनल डायर को कभी माफ नहीं करूंगा और उसे जरूर मरूँगा।
मनुवादी-संघियों की आँखों में क्यों चुभते हैं डॉ. अंबेडकर: बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर भारत के ही नहीं विश्वभर के विद्वानों में श्रेष्ठतम विद्वान थे और उनके अंदर अछूत (एससी) जातियों को ब्राह्मणी संस्कृति से मुक्ति दिलाने का प्रचंड जुनून था। वे समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुता के समर्थक थे। देश में फैली हुई मनुवादी संघी विचारधारा के वे प्रबल विरोधी भी थे। जिसे देखकर मनुवादी संघियों के लफरझंडिस प्रचारकों जैसे कृपात्री महाराज और अनेकों अन्य पाखंडी किस्म के भगवाधारी कथित साधु बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर को मनुवादी-संघियों का प्रबल शत्रु मानते थे।
तबके समाचार पत्र बताते हैं कि डॉ. अंबेडकर ने ‘हिंदू कोड बिल के पारित न होने की आशंका से आहत होकर 6 अक्टूबर के आसपास नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना तय कर लिया था। लेकिन उन्होंने पत्र लिखने के चार दिन बाद ही, यानी 27 सितंबर को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। निश्चित रूप से वे तनाव में थे और भारी दबाव महसूस कर रहे थे। वजह यह थी कि इस बिल को लेकर कांग्रेस के अंदर परंपरावादियों का एक बड़ा ब्राह्मणवादी धड़ा मुखर विरोध में था, जिनमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे कई बड़े कांग्रेसी नेता भी थे), तो आरएसएस और रामराज्य परिषद जैसे संगठन सड़कों पर हिन्दू कोड बिल को हिंदू विरोधी बताकर, डॉ. अंबेडकर का देशभर में पुतला फूँक रहे थे।
हिंदू कोड बिल’ के जरिए नेहरू और अंबेडकर की जोड़ी ने हिंदू महिलाओं को अधिकार देने की समाज में ऐसी पहल की थी जो इतिहास में दुर्लभ थी। एकल विवाह, महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हक, जाति से परे जीवन साथी के चयन का अधिकार, तलाक का अधिकार और विधवाओं के पूर्नविवाह आदि का अधिकार देने वाला यह कानून परंपरावादियों और तमाम धर्मरक्षकों के लिए वज्र गिरने जैसा था। रामराज्य परिषद के करपात्री महाराज तमाम धर्मसंहिताओं का हवाला देते हुए इस कानून को हिंदू विरोधी साबित कर रहे थे तो भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यह विधेयक ‘हिंदू संस्कृति की शानदार संरचना को चकनाचूर कर देगा।’
हिंदू कोड बिल को लेकर डॉ. अंबेडकर पर होने वाले निजी हमलों के बारे में इतिहासकार रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि ‘हिंदू कोड बिल विरोधी समिति ने पूरे भारत में सैकड़ों बैठकें कीं, जहां विभिन्न स्वामियों ने प्रस्तावित कानून की निंदा की। इस आंदोलन में भाग लेने वालों ने खुद को धार्मिक युद्ध (धर्मयुद्ध) लड़ने वाले धार्मिक योद्धाओं (धर्मवीर) के रूप में प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आंदोलन के पीछे अपना पूरा जोर लगा दिया। 11 दिसंबर, 1949 को आरएसएस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सार्वजनिक बैठक आयोजित की, जहां एक के बाद एक वक्ताओं ने इस विधेयक की निंदा की थी। एक ने इसे ‘हिंदू समाज पर एटम बम से प्रहार’ कहा, अगले दिन आरएसएस कार्यकर्ताओं के एक समूह ने ‘हिंदू कोड बिल मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए सभी विधानसभा भवनों पर मार्च किया। प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री और डॉ. अंबेडकर के पुतले जलाए और फिर शेख अब्दुल्ला की कार में तोड़फोड़ की। (पेज 288, इंडिया आफ्टर गाँधी, लेखक-रामचंद्र गुहा)
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर मनुवादी संघियों को न देशभक्त माना जा सकता है और न राष्ट्रवादी। इनका मुख्य उद्देश्य होता है देश में बसे अल्पसंख्यक, एससी/एसटी के ऊपर ज्यादा से ज्यादा अत्याचार व उत्पीड़न बढ़ाए जाए उनको डराकर या फिर उनकी वोट को खरीदकर उनकी वोटों पर कब्जे किये जाएं, फर्जी वोटों के आधार पर सरकारें बनाई जायें, किसी भी कीमत पर देश की सत्ता पर कब्जा किया जाए। देश का बहुजन समाज भोला-भाला व सीधा सादा समाज है वह इनके छलावे में फँसता है इसलिए इनके छलावों और षडयंत्रों से अवगत कराने के लिए बहुजन समाज में अपने लठधारी प्रेरक व फूलन देवी जैसी संस्कृति से ओत-प्रोत बनाने होंगे और अपने समाज की बहन-बेटियों और वोटों की भी रक्षा करनी होगी। तभी देश में एक सम्पन्न व स्वतंत्र लोकतंत्र स्थापित होकर देश प्रगति पथ पर अग्रसर हो सकेगा।
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