2022-11-18 09:37:52
कपिल देव
आज केजरीवाल राजनीति बदलने के बजाय खुद ही बदल गए है। ऐसा कहना भी पूर्णरूपेण सत्य नहीं लगता, शायद वह मूल रूप में वैसा ही था और असली रूप छुपाकर रखा हुआ था। पार्टी ने 2013 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में गर्व से कहा था कि जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग या भाषा के आधार पर उम्मीदवारों का चयन नहीं किया है। पार्टी ने कहा था कि उम्मीदवारों के चयन के लिए सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और अच्छा चरित्र ही एकमात्र गुण है। टिकट देने से पहले संभावित उम्मीदवार का बैकग्राउंड चेक किया जाता था और एक मामूली दोष भी अयोग्य घोषित करने के लिए काफी था।
आप ने 2014 के आम चुनाव में राजमोहन गांधी, आनंद कुमार और मेधा पाटेकर जैसे लोगों को उम्मीदवार बनाया था। तब पार्टी ने वोट के लिए धर्म या देवी-देवताओं की बात नहीं की। आप ने दलितों और हाशिये पर खड़े लोगों के लिए कल्याणकारी उपायों का एक कार्यक्रम सावधानीपूर्वक तैयार किया-शिक्षा, स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और रियायती दर पर स्वच्छ पानी की आपूर्ति शासन के उस मॉडल के केंद्र में था।
आज अरविंद केजरीवाल हिंदू वोटरों की धार्मिक संवेदनाओं को आगे कर उन्हें लुभाने का कोई मौका नहीं गँवा रहे। केजरीवाल की ताजा माँग है कि मोदी सरकार रुपए पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीरें लगाएं। क्या यह संवैधानिक है? क्या यह हिंदुओं के वोटरों को अपने पाले में लाने का प्रयास नहीं है? केजरीवाल और देश के अन्य घटिया राजनेताओं में क्या कोई फर्क है? क्या बाबा साहेब अम्बेडकर यही चाहते थे? 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान आप की विकृति की झलक तब दिखी, जब प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने कुछ ऐसे उम्मीदवारों का मुद्दा उठाया था, जिनका अतीत उतना साफ नहीं था जितना पार्टी ने तय किया था। आप के ऐतिहासिक जनादेश प्राप्त करने के तुरंत बाद दोनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद शुरू हुई गिरावट का सिलसिला अब चल निकला है।
2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में हार, उसके बाद एमसीडी चुनावों में हार, अंतिम टिपिंग पॉइंट थे। तब से आप ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आप ने उन धनी व्यक्तियों को टिकट दिया है जिनका पार्टी से कोई संबंध नहीं था और जिन पर राज्य सभा, लोकसभा और विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनाव के टिकट बेचने का आरोप था। पार्टी ने कभी भी इस बात का संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया कि वह अपने चुने हुए रास्ते से क्यों भटक गई?
एक बार जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए और हिंदुत्व चुनाव जीतने का प्रमुख फॉमूर्ला बन गया। केजरीवाल भी मोदी की तरह किसी भी कीमत पर जीतना चाहता है। जो संघी मानसिकता और बनिया गिरी की पुष्टि करता है।
2017 में पंजाब में हारने के बाद वह 2020 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में कौई चांस नहीं लेना चाहते थे। इसलिए उन्होंने खुद को हिंदुत्व के हवाले कर दिया। अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने न केवल प्रशांत किशोर की सर्विस ली बल्कि हनुमान चालीसा का पाठ भी किया। कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में पहुँचकर उन्होंने खुद को ‘हनुमान भक्त’ कहा। उनके इस दौरे को कवर करने लिए टीवी मीडिया की एक टीम को आमंत्रित किया गया था।
केजरीवाल और आप ने सीएए और शाहीन बाग के मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला। जब उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए तो उन्होंने उस इलाके का दौरा तक नहीं किया न ही उनकी सरकार ने दंगा पीड़ितों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम को ईमानदारी से चलाया क्योंकि वह अपने ऊपर ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ का आरोप नहीं लगने देना चाहते थे। 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की शानदार जीत ‘असली’ आप की ताबूत में आखिरी कील थी।
पंजाब जीतने के बाद केजरीवाल का अगला निशाना गुजरात है जो हिंदुत्व की असली प्रयोगशाला है। स्थानीय निकायों के चुनावों में विशेषकर सूरत और गांधीनगर में इस प्रयास से अच्छी सफलता मिली है। मीडिया के क्षेत्र में बहुत चालाकी से हेरफेर और विजुअल कैपेन के जरिये आप गुजरात में तीसरी ताकत के रूप में उभरी है। केजरीवाल हर हफ्ते राज्य का दौरा करने लगे। जमीन पर यह चर्चा शुरू हो गई थी कि क्या आप भाजपा के सामने मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की जगह ले सकती है। लेकिन अब कुछ हद तक आम जनता जो आप को अपना वोट देती रही है केजरीवाल को समझ चुकी है। गुजरात में लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है।
लेकिन दो घटनाओं ने उनके आत्मविश्वास को झकझोर कर रख दिया। सबसे पहले, आप के राज्य संयोजक गोपाल इटालिया ने मोदी के बारे में बुरा कहा और महिलाओं से कहा कि वे मंदिरों में न जाये क्योंकि यह असुरक्षित हो सकता है। दूसरा, आप मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम का एक बौद्ध संरोह में यह कहते हुए वीडियो क्लिप कि वह हिन्दू देवताओं की पूजा नहीं करेंगे। नुकसान को कम करने के लिए केजरीवाल ने लक्ष्मी-गणेश का रास्ता अपनाया है। अपनी एक रैलियों में उन्हें जय श्री राम का नारा लगते हुए देखा गया था। उन्होंने यह भी कहा कि उनका जन्म जन्माष्टमी (भगवान कृष्ण के जन्म के दिन) को कंस के पुत्रों का विनाश करने के लिए हुआ था।
नहीं पता कि हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर वोट मिलेगा या नहीं। लेकिन यह निश्चित रूप से साबित हो चुका है कि यह वही अरविंद केजरीवाल नहीं है। जो भारतीय राजनीति की सभी बुराइयों को साफ करने की बात करते थे। उनके इस रूप को कुछ लोग मोदी से जीत का फॉमूर्ला छीनने की कोशिश के रूप में देख सकते हैं। लेकिन सोचने की जरूयत है कि क्यों आप ने धर्म को राजनीति के साथ मिलाने का खतरनाक रास्ता अपनाया। चुनाव जीतना और हारना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है, लेकिन आप जिस उम्मीद का प्रतिनिधित्व करते है, उसका निधन दुखद है। केजरीवाल और उनकी पार्टी संवैधानिक लोकतंत्र पर जो चोट पहुँचा रहे हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी लोकतंत्र के लिए कलंक बनते जा रहे है। बहुजन समाज की जनता को इसका संज्ञान लेना चाहिए और भाजपा और आप को वोट न करने का संकल्प लेना चाहिए। भाजपा और आप में कोई अंतर नहीं, दोनों बहुजन समाज विरोधी है।
केजरीवाल भगत सिंह और बाबा साहेब अम्बेडकर को अपना आदर्श बताते है मगर अब सारे काम वे दोनों महापुरुषों की सोच और विचारधारा के विरुद्ध करते हैं। राजेन्द्र पाल गौतम के प्रकरण से यह सिद्ध हो गया कि संवैधानिक रूप से केजरीवाल संघियों हैं तो ये उनकी समझ की कमत्तरता ही है। राजेन्द्र पाल गौतम को मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए था, अगर आप को जरूरत थी तो केजरीवाल को खुद राजेन्द्र पाल गौतम को निकलने देते। ऐसा राजेन्द्र पाल गौतम ने क्यों नहीं किया? इसकी सटीक जानकारी जनता को नहीं है। राजेन्द्र पाल गौतम अभी तक भी केजरीवाल को निर्दोष समझते है। ये सोच अब बहुजन समाज के मन में संदेह को जन्म देता है। पहला संदेह यह है कि केजरीवाल के पास राजेन्द्र पाल गौतम की कोई कमजोर नब्ज है जो राजेन्द्र पाल गौतम को चुप रहने के लिए मजबूर किये हुए है। दूसरा संदेह ये हो सकता है कि राजेन्द्र पाल गौतम को गुजरात चुनाव तक चुप रहने के लिए किसी पद का लालच दिया हो। तीसरा संदेह हो सकता है कि केजरीवाल ने राजेन्द्र पाल गौतम को खाली बातों से चढ़ाकर उनसे पीछा छुड़ाया हो। खैर कुछ भी हो इस पूरे प्रकरण के नुकसान में तो सिर्फ राजेन्द्र पाल गौतम ही है। अगर वे इस्तीफा नहीं देते तो आज राजेन्द्र पाल गौतम बहुजन समाज में हीरो होते। मगर अब वे सिर्फ जीरो ही है, केजरीवाल सत्ता के मजे ले रहे है। अब यह भी साबित हो गया है कि केजरीवाल के जाति भाई सत्येन्द्र जैन पाँच महीने से जेल में है मगर उन्हें मंत्री पद से नहीं हटाया जा रहा है। भ्रष्टाचार की मलाई में हिस्सेदार मनीष सिसोदिया को 22 विभागों का मंत्री बनाकर भ्रष्टाचार की मलाई में हिस्सेदार रहे होंगे? ईडी और सीबीआई छापों के बाद भी ताकतवर मंत्री बनाए हुए हैं। दाल में कुछ तो काला है या पूरी दाल ही काली है? बहुजन समाज के मतदाताओं को केजरीवाल से परहेज की सशक्त जरूरत है। समाज के जागरूक लोगों को अपने इलाके में इसकी चर्चा और प्रचार करना चाहिए।
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