2024-01-13 09:22:28
ब्राह्मण अपने से नीच क्षत्रिय की पूजा कभी भी नहीं करेगा? ब्राह्मणों ने हमेशा ही लोगों को गुमराह किया है। वास्तव में ब्राह्मण जिस राम को पूजते है वह क्षत्रिय नहीं बल्कि ब्राह्मण था। जिसका वास्तविक नाम पुष्यमित्र शुंग था जो कि बौद्धों का कत्लेआम कराने वाला ब्राह्मण बौद्ध शासक बृहदत्त का सेनापति था। बुद्धमय भारत के अंतिम व दसवें सम्राट बृहदत मौर्य ने दया करके ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग को अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। धीर-धीरे पुष्यमित्र शुंग बृहदत मौर्य से नजदीकी बनाने की चाल चलने लगा और इसी साजिश के तहत पुष्यमित्र शुंग ने अपनी बहन का विवाह ‘बृहदत मौर्य’ से करके साला बन गया और बदले में बृहदत मौर्य ने पुष्यमित्र शुंग को सेनापति बना दिया।
मौर्य काल में ब्राह्मणों का जो वर्चस्व और उनका पाखण्ड खत्म हो गया था। ब्राह्मण उसी के बदले की आग में अंदर ही अंदर झुलस रहे थे। इसलिए ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र शुंग को बृहदत मौर्य के खिलाफ इतनी नफरत भर दी थी कि एक दिन सुबह दरवार आते समय पुष्यमित्र शुंग ने बृहदत मौर्य की पीठ में धोखे से तलवार घोंपकर हत्या कर दी थी। चूंकि सेनापति के कब्जे में थी इसलिए किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। इस तरह से पुष्यमित्र शुंग साकेत (अयोध्या) का जो कि उस समय बौद्धों का बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र था साकेत (अयोध्या) का राजा बन गया।
तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ तथा बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का प्रबल शत्रु कहा गया है। उनके अनुसार पुष्यमित्र ने अनेक बौद्ध स्तूपों को नष्ट कराया और भिक्षुओं की हत्या करा दी थी। दिव्यादान में कहा गया है कि पुष्यमित्र ने साकल (स्यालकोट) जाकर घोषणा की कि जो व्यक्ति एक श्रमण (भिक्षु) का सिर काटकार लायेगा उसे मैं 100 स्वर्ण मुद्रायें दूंगा (श्रमण शिरो दास्यति तस्याहं दीनार शत क्षस्यामि)। फिर क्या था, साकेत में कत्लेआम हुआ एक-एक बौद्ध भिक्षु और बुद्धिष्ट की दृढ़ कर हत्या कर दी गयी। जो बौद्ध या बौद्ध भिक्षु भाग सकते थे वे दूसरे देशों (चीन, नेपाल) में चले गए जिसके कारण दूसरे देशों में बुद्ध धम्म फैल गया। साकेत में एक भी योद्धा नहीं बचा, इसलिए ही साकेत का नाम अ+योद्धा=अयोद्धा अर्थात योद्धा रहित अयोध्या पुकारा जाने लगा। आज भी अयोध्या के साथ बहने वाली नदी का इतिहास का नाम घाघरा नदी है। बौद्धो का कत्लेआम इतना ज्यादा हुआ कि कुछ लोग सोने की मुद्रा के लालच में एक ही सिर को बार-बार दिखाकर ज्यादा से ज्यादा सोने की मुद्रा लेने लगे। पता लगने पर पुष्यमित्र शुंग ने सिर को फोड़ने का आदेश दे दिया था जिससे कि दुबारा सिर दिखाकर सोने की मुद्रा न लें सकें। आज किसी भी व्यक्ति के मृत्यु संस्कार में नारियल फोड़ने की कुप्रथा इसी का दूसरा रूप है।
सरयू नदी का भी कोई इतिहास नहीं है। कोई सरकारी रिकार्ड नहीं है। गोंडा और अम्बेडकर नगर के बीच अयोध्या के आस पास के लगभग 15 किलोमीटर की दूरी के घाघरा नदी के हिस्से को ही सरयू नदी कहते हैं क्योंकि बौद्धो के कटे हुए सिर को नदी में फेंक दिया गया। इसलिए ही नदी में जहां भी घुमते वहीं सिर्फ सिर ही सिर नजर आते थे इसलिए सर+युक्त=सर युक्त से नदी को ‘सरयू’ नाम पड गया और घाघरा नदी के 15 किलोमीटर के एरिया को सरयू नदी कहते हैं।
लामा तारानाथ ने भी लिखा है कि पुष्यमित्र धार्मिक मामलों में बड़ा असहिष्णु था। उसने बौद्धों पर भाँति-भाँति के अत्याचार किए, उनके मठों और संघाराम को जलवा दिया। इन्हीं आधारों पर महामहोपाध्याय यू हर प्रसाद शास्त्री ने यह निष्कर्ष निकाला कि पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों का उत्पीड़न किया। प्रो. एन.एन. घोष ने भी पं. हर प्रसाद शास्त्री के विचारों से सहमति जताई है।
इसीलिए ही ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र शुंग को राम बनाकर अग्नि शर्मा जिसका नाम वाल्मीकि पड़ा था वाल्मीकि ने काल्पनिक रामायण लिखा था और शूद्रों को ही भालू बंदर नाम दिया था। आज ब्राह्मण जिस राम को पूजते हैं वह क्षत्रिय वही ब्राह्मण (पुष्पमित्र शुंग) था और जिसका वास्तविक नाम पुष्यमित्र शुंग ही है ।
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