2022-09-09 09:06:45
यह बड़े दुख का विषय है कि सवर्ण वर्ग के लोगों ने 6 सितम्बर 2018 को एससी/एसटी एक्ट व दलितों को मिले आरक्षण के विरोध में भारत बंद का आयोजन किया था। समाचारों के अनुसार भारत बंद का सबसे ज्यादा असर राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मध्य प्रदेश में प्रशासन ने 18 जिलों में धारा 144 लागू की। इन प्रदेशों के कई शहरों व कस्बों में आंदोलनकारियों ने तोड़-फोड़ आगजनी की तथा जनता तथा सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। लेकिन यह बहुत ही हैरानी व निराशा करने वाली बात है कि सवर्ण वर्ग के लोगों ने, एससी/एसटी एक्ट व आरक्षण के विरुद्ध अपने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन द्वारा, अमानवीयता तथा संविधान विरोधी घटिया मानसिकता का परिचय दिया। यह संविधान की अवमानना तथा आजादी के समय के देश के निमार्ताओं का खुला अपमान है। यद्यपि यह विस्तृत विषय है लेकिन यहाँ संक्षेप में ही कहना पड़ेगा। आरक्षण के इतिहास में थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। आरक्षण इस देश में हजारों सालों से चलता आ रहा है जिसे किसी भी राजकीय संस्था ने मान्यता नहीं दी। हिन्दू धर्म में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्ण व्यवस्था जबरदस्ती थोंपा हुआ आरक्षण है। इस वर्ण व्यवस्था में सभी वर्गों के व्यवसाय आरक्षित कर दिये गए। एक वर्ण दूसरे वर्ण के व्यवसाय नहीं कर सकता। मंदिर जो कि बिना किसी लागत और श्रम के, आय के सर्वोत्तम स्त्रोत है; उन पर हजारों वर्षों से केवल ब्राह्मणों का ही कब्जा चला आ रहा है लेकिन यह आरक्षण किसी राजकीय कानून द्वारा लागू नहीं। यह आरक्षण का सर्वोत्तम प्राचीन उदाहरण है। हिंदू शास्त्रों द्वारा तथा मनुस्मृति द्वारा इस आरक्षण को मान्यता प्राप्त है। इस वर्ण व्यवस्था में शूद्रों के हिस्से में केवल अन्य तीन वर्ण के लोगों की सेवा ही आयी। उन्हें तथा महिलाओं को शिक्षा का कोई अधिकार नहीं था। शूद्रों में भी एक निम्न वर्ग को तो अछूत ही बना दिया। इनकी तो कमर ही तोड दी गई। इनको पशुओं से भी बदत्तर जीवन यापन के लिए मजबूर कर दिया।
इन्हीं अछूतों को कुछ मानवीय अधिकार दिलाने की लड़ाई डॉ. अम्बेडकर ने लड़ी। गोलमेज सम्मेलनों के आधार पर डॉ. अम्बेडकर अछूत वर्गों के लिए अंगेज सरकार से दो वोटों के आधार पर पृथक निर्वाचन का अधिकार प्राप्त करने में सफल रहे। इसके विरुद्ध गांधी जी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। गहन सौदेबाजी के साथ गांधी जी व अन्य बड़े हिन्दू नेताओं तथा डॉ. अम्बेडकर के बीच 24 सितम्बर सन 1932 को पूना पैक्ट हुआ। पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने वाले गांधी जी के पुत्र हरी लाल, मदनमोहन मानवीय, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि महत्वपूर्ण नेता थे। गांधी जी के प्राण बचाने के बदले पूना पैक्ट में दलितों को संसद तथा विधान सभाओं में अधिक सीटें दी गई। इसके साथ ही सभी ने मिलकर एकसुर में वायदा किया था कि सब लोग मिलकर छुआछूत तथा जाति व्यवस्था को समाप्त कर सबके लिए समानता लाने के कार्यक्रम करेंगे। लेकिन इस अमानवीय व्यवस्था को समाप्त करने के वायदे को सवर्ण नेता भूल गए, आज तक भी भूले हैं। एक तरह पूना पैक्ट में गांधी सहित सभी सवर्ण नेताओं ने दलितों के साथ छल किया, अंग्रेज सरकार द्वारा दलित वर्ग (अछूत) के लोगों को मिले अधिकारों का गला ही घोट दिया। पूना पैक्ट में किये गए छल के दुष्परिणाम आज सामने है। आज दलित वर्ग अपनी पसंद का नेता नहीं चुन सकते। जो सांसद, विधायक बन रहे हैं, वे अपनी पार्टी व उसके आकाओं की इच्छा के अनुकूल चलने पर मजबूर है और अपने बहुजन समाज के हित की बात नहीं कर पा रहे हैं। यह एक भारी विडंबना है।
संविधान बनाने के दौरान संविधान निमार्ता डॉ. अम्बेडकर ने इन वर्गों के कल्याण के लिए तथा इन्हें देश की मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया, जिसे संविधान सभा ने पारित किया। लेकिन फिर बेईमानी, इन संवैधानिक प्रावधानों को कभी भी मन से लागू नहीं किया। इसके कारण आजादी के 75 साल बाद भी इन वर्ग की दशा में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ। हर समय इनके साथ छल किया गया। आरक्षण समाप्त करने के एक के बाद दूसरा अनेक तरह के षड्यंत्र होते आ रहे हैं। संविधान की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है। अपने नेताओं द्वारा किये गए वायदे को भूल गए है। आरक्षण का मूल कारण था, जातिगत भेदभाव जो इतिहास में दर्ज है। वायदा किया गया था कि जातिगत भेदभाव समाप्त किया जाएगा। लेकिन हैरानी की बात है कि ब्राह्मणवादी जाति व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं, उसका आनंद ले रहे हैं, लाभ उठा रहे है लेकिन आरक्षण समाप्त करना चाहते हैं। यह अमानवीयता की हद है। आरक्षण ऐसे ही समाप्त नहीं किया जा सकता। जब तक जातिगत भेदभाव रहेगा, आरक्षण को रहना होगा। यदि मनुवादी लोग आरक्षण समाप्त करेंगे तो उनका विरोध होगा, उसका डटकर मुकाबला किया जाएगा।
शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण है। सरकारी भर्तियाँ लगभग बंद है, सब कुछ निजीकरण के हवाले किया जा रहा है। जो भी भर्ती होती है, अधिकतर ठेके पर न की नियमित पदों पर। इसलिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का अस्तित्व खतरे में जा चुका है। शिक्षा में आरक्षण समाप्त करने के लिए नई शिक्षा नीति आ चुकी है। इसमें आरक्षण नदारद है। इस प्रकार मनुवादियों ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा जीवन पर्यंत अनेक कष्ट उठाकर तथा संविधान में आरक्षण की व्यवस्था द्वारा शूद्र (एससी/एसटी/ओबीसी) वर्ग के लिए जो संरक्षण, मान-सम्मान उपलब्ध कराया था, उस पर मनुवादियों ने पानी फेर दिया है। मनुवादियों ने कर दिखाया है कि- ‘‘न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी अर्थात न रहेगी सरकारी नौकरियाँ न रहेगा आरक्षण। अस्तित्व विहीन हो जायेंगे सरकारी शिक्षण संस्थायें और अस्तित्वहीन हो जाएगा शिक्षा में आरक्षण।’’ प्राइवेट में आरक्षण का कोई प्रावधान आज तक नहीं किया गया है। नई शिक्षा नीति जो दलितों के हितों के विरुद्ध है, लागू हो चुकी है। लेकिन आश्चर्य, इसके विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठ रही। मनुवादियों ने अपने कुकर्मों व षड्यंत्रों से सिद्ध कर दिया है कि मनुवाद में समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता के लिए कोई स्थान न कल था, न आज है और न कल रहने देंगे। आज तक किसी ने भी जातियों तथा जातिगत भेदभाव समाप्त करने के लिए कोई आंदोलन नहीं चलाया। हिन्दूवादियों/मनुवादियों की किसी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता चूंकि इसकी हर योजना दोगली होती है, उसके पीछे दलितों व गरीबों के विरुद्ध षड्यंत्र छुपा होता है जिसे सरलता से नहीं समझा जा सकता। ब्राह्मणवाद झूठ, फरेब, पाखंड और अमानवीयता पर आधारित है। इनके किसी भी वायदे पर भरोसा नहीं करना चाहिए तथा अपनी आँखे तथा मस्तिष्क खुला रखना चाहिए।
यद्यपि दलित वर्ग के उत्थान के लिए संविधान में कुछ लिखित प्रावधान है लेकिन संविधान की तो धज्जियाँ उड़ाई जाती है। क्या ये अच्छा है, इन्हें सदबुद्धि आये और सवर्ण लोग जातियों व जातिगत भेदभाव समाप्त करने के लिए दिल से मुहिम चलाए। जाति व जातिगत भेदभाव खत्म तो आरक्षण अपने आप खत्म। अन्यथा जिस जाति की जितनी जनसंख्या उसी अनुपात में उस जाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए। यह आरक्षण सभी क्षेत्रों व देश के सभी संसाधनों में लागू होना चाहिए। इसके लिए समूचे शूद्र वर्ग (एससी/एसटी/ओबीसी) के लोगों को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा। इन्हें हिंदूवाद में फँसने के बजाय हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम पर करारी चोट करनी होगी तभी मनुवादी हिलेंगे चूंकि मनुवाद, हिंदूवाद उन्हें जान से प्यारा है और इस पर वे चोट सहन नहीं कर सकते। तब इस स्थिति में इनसे सीधे-सीधे अपने हक-अधिकार की बात की जा सकती है। अन्य विकल्प सामने नजर नहीं आता। याद रहे बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर हिन्दू राष्ट्रवाद से सहमत नहीं थे। हिन्दू राष्ट्र बनने पर देश का संविधान मनुविधान ही होगा जिसमें समता, स्वतंत्रता, बंधुता, न्याय, तर्क तथा वैज्ञानिकता के लिए कोई जगह नहीं है।
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