2024-05-17 11:31:27
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था, जो वर्तमान में अब नेपाल में है। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने पीहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। जिसका अर्थ है ‘जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो’। गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। क्षत्रिय राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। सिद्धार्थ की माता का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्धोधन की दूसरी पत्नी रानी महाप्रजावती (गौतमी) ने किया। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने घोषणा की-बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा। शुद्धोधन ने पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य देखने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने एक सी भविष्यवाणी की - बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पाथ प्रदर्शक बनेगा। सिद्धार्थ का मन बचपन से ही करुणा और दया का सागर था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है। घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुँह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देते और जीती हुई बाजी हार जाते। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दु:खी होना उनसे नहीं देखा जाता था। सिद्धार्थ ने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल किए गए हंस की सहायता की और उसके प्राणों की रक्षा की। सभी के प्रति मन में करुणा व अपार प्रेम लिए गौतम बहुत चिंतित रहते थे। वे हमेशा सत्य की खोज में रहते कि इसका क्या कारण है? यही सब बातें उनके मन को व्याकुल करती जिसके लिए उन्होंने गृह त्याग किया और इसी सत्य की खोज में वे घर से निकल गए।
कई वर्षों तक कठिन परिश्रम के बाद गौतम ने उस सत्य को खोज निकाला जो संसार में विराजमान है जिसको गौतम ने ‘आर्याष्टांगमार्ग’ नाम दिया और इसी दिन गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा गौतम, गौतम से बुद्ध बन गए। ‘आष्टांगिक मार्ग’ बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है जो दुखों से मुक्ति पाने एवं आत्म-ज्ञान के साधन के रूप में बताया गया है। अष्टांग मार्ग के सभी मार्ग, सम्यक शब्द से आरम्भ होते हैं (सम्यक=अच्छी या सही)। बौद्ध प्रतीकों में प्राय: अष्टांग मार्गों को धर्मचक्र के आठ ताड़ियों (स्पोक्स) द्वारा निरूपित किया जाता है।
<सम्यक दृष्टि: चार आर्य सत्य में विश्वास करना
<सम्यक संकल्प: मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
<सम्यक वाक: हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
<सम्यक कर्म: हानिकारक कर्म न करना
<सम्यक जीविका: कोई भी स्पष्टत: या अस्पष्टत: हानिकारक व्यापार न करना
<सम्यक प्रयास: अपने आप सुधरने की कोशिश करना
<सम्यक स्मृति: स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
<सम्यक समाधि: निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना
बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है -दु:ख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना आवश्यक है और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते हैं। मार्ग को तीन हिस्सों में वगीर्कृत किया जाता है: प्रज्ञा, शील और समाधि।
इस मार्ग के प्रथम दो अंग प्रज्ञा के और अंतिम दो समाधि के हैं। बीच के चार शील के हैं। इस तरह शील, समाधि और प्रज्ञा इन्हीं तीन में आठों अंगों का समावेश हो जाता है। शील शुद्ध होने पर ही आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश पा सकता है। शुद्ध शील के आधार पर मोक्ष का लाभ प्राप्त कर सकता है और समाधि अवस्था में ही उसे सत्य का साक्षात्कार होता है। इसे प्रज्ञा कहते हैं, जिसके उदय होते ही साधक को सत्ता मात्र के अस्थिर, अनाम और दु:ख स्वरूप का साक्षात्कार हो जाता है। प्रज्ञा के आलोक में इसका अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाता है। इससे संसार की सारे लालच नष्ट हो जाते हैं।
बुद्ध ने बताया कि लालच ही सभी दु:खों का मूल कारण है। लालच के कारण ही संसार की विभिन्न वस्तुओं की ओर मनुष्य का झुकाव होता है; और जब वह उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता अथवा जब वे प्राप्त होकर भी नष्ट हो जाती हैं तब उसे दु:ख होता है। बुद्ध ने इस मार्ग के आठ अंग बताए हैं:
सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। इन्ही पर पूरा मनुष्यत्व है।
आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है। बुद्ध ने इसे दु:ख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को मध्यमा प्रतिपद या मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है। अर्थात जीवन में संतुलन ही मध्यम मार्ग पर चलना है। बुद्ध का मार्ग पूरी तरह से वैज्ञानिक है, जिसमें पाखंड के लिए कोई स्थान नहीं है। भाग्य, भगवान, आत्मा, परमात्मा, ईश्वर आदि का बुद्ध धम्म में कोई स्थान नहीं है। मनुष्य खुद कर्म आधारित मध्यम मार्ग का अनुसरण करके सुख, शांति, समृद्धि प्राप्त कर सकता है। भगवान बुद्ध का धम्म बुद्धि और तर्क का रास्ता है जिस पर चलकर सभी को सफलता मिली है।
आज जितने भी बौद्धमय देश है, जहाँ बुद्ध को सर्वोपरि माना जाता है वे अपने आप में समृद्ध है। बुद्ध के विचारों को अपनाकर उन्होंने अपना जीवन खुशहाल बना लिया है। बुद्ध की प्रतिमा को अपना आदर्श मानकर उसकी वंदना करना और उनके द्वारा दिये गए उपदेशों को आपने जीवन में आत्मसात करना उनका प्रमुख लक्ष्य बन गया है। वैशाख पुर्णिमा को बुद्ध का जन्मोत्सव सभी देशों में बड़ी धूमधाम से मानते हैं क्योंकि संसार में बुद्ध ही ऐसे व्यक्ति हुए है जिनका जन्म, ज्ञान की प्राप्ति व परिनिर्वाण भी इसी वैशाख पुर्णिमा को हुआ। बुद्ध का महापरिनिर्वाण वैशाख पुर्णिमा 483 ई.पू. आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मानते हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पुर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किये जाते हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित किये जाते हैं। बिहार की राजधानी पटना के दक्षिण-पूर्व में लगभग 1000 किमी दूर बोधगया में एक महीने पहले इसी उत्सव के लिए मेला लगना शुरू हो जाता है। दूर-दूर से धर्मावलंबी इस स्थान पर आते है। बुद्ध पुर्णिमा के दिन बोधगया में बड़ी चहल-पहल रहती है।
बुद्ध का दर्शन आज भी प्रासंगिक है। आज विश्व में मानव अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है। रूस और यूक्रेन में युद्ध भी चल रहा है। यदि बुद्धभूमि भारत की बात करें तो वहां आज के परिवेश में चारों तरफ अशांति, साम्प्रदायिक्ता, शोषण और बढ़ती असमानता व्याप्त है। ऐसे समय में बुद्ध दर्शन का अनुसरण करते हुए इन समस्याओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। ऐसा करना सरकार तथा जनता, सभी का कर्तव्य है।
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