2024-06-24 09:55:56
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवन में मुख्य रूप से तीन सामाजिक व राजनैतिक संगठनों की स्थापना की। समता सैनिक दल (1924), दि. बुद्धिस्ट सोसाइटी आॅफ इंडिया (1955), रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (1957)। इन तीनों संस्थाओं का निर्माण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवन काल में किया और इन्हें आगे बढ़ाने के लिए अपने अनुयायियों को सौंपा था। परंतु आज की विडंबना यह है कि ये तीनों संस्थायें अशक्त अवस्था में हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने समता सैनिक दल का निर्माण इसलिए किया था चूंकि उनको मनुवादी व्यवस्था में पले-बड़े सुरक्षा से जुड़े लोगों पर भरोसा नहीं था। बाबा साहेब जब समाज के बीच सामाजिक कार्यक्रमों के लिए जाते थे तो उनकी सुरक्षा की देखभाल का जिम्मा ‘समता सैनिक दल’ के जवानों पर ही होता था। ‘समता सैनिक दल’ उन दिनों एक सशक्त और अनुशासित संगठन था। इसके ज्यादातर सैनिक महार रैजिमेंट से सेवानिर्वत हुए जवान थे। बाबा साहेब के कार्यक्रमों में ‘समता सैनिक दल’ सुरक्षा व्यवस्था का पूरा काम करता था। इसके अलावा समता सैनिक दल का कार्य सामाजिक प्रताड़ना व शोषण की घटनाओं के खिलाफ खड़े होकर पीड़ितों का सहयोग और मनोबल बढ़ाना था। 24 सितम्बर 2024 को समता सैनिक दल के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। समता सैनिक दल के लिए 100 साल की यात्रा के इतिहास को लेकर एक गौरवशाली अनुभूति का क्षण होना चाहिए। बाबा साहेब के मिशन से जुड़े हुए लोगों को भी समता सैनिक दल के साथ इस ऐतिहासिक यात्रा में कदम से कदम मिलाकर मिशन को गति और शक्ति देनी चाहिए।
अम्बेडकरी संस्थाओं में भटकाव क्यों? किसी भी मनुष्य या संस्था में भटकाव की स्थिति तब पैदा होती है जब संस्थाओं के संचालक अपने निर्धारित लक्ष्य से भटक जाते हैं। यह भटकाव की स्थिति संस्थाओं में तब भी पैदा होती है जब संस्था से जुड़े लोग संस्था विशेष को बड़ा करने के बजाय व्यक्ति विशेष को अधिक महत्व देकर उसे आगे बढ़ाने लगते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति विशेष तो समाज में बड़ा लगने और चमकने लगता है परंतु संस्था छोटी होने लगती है और अंत में वह मृतप्राय हो जाती है। 1956 में बाबा साहेब के चले जाने के बाद अम्बेडकरी समाज में परस्पर बड़े बनने और दिखने की होड़ शुरू हुई और इसी अंधी दौड़ में फँसकर बाबा साहेब के अनुयायियों ने लालच की सभी पराकाष्ठायें पार कर दी। इसी प्रकार के सामाजिक द्वंद में बाबा साहेब के अनुयायी अपने उद्देश्यों से पूरी तरह भटके। व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि के लिए उन्होंने मनुवादी-संघियों से अनैतिक समझौते करने शुरू किये। परिणामस्वरूप बाबा साहेब द्वारा स्थापित संगठनों में व्यक्ति आधारित विघटन हुए। रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया में एक दर्जन से अधिक घटक बने। उदाहरण के तौर पर माननीय रामदास अठावले जो महाराष्ट्र के दलित पैंथर के आंदोलन में एक बहुत सक्रिय व बड़े नाम वाले फायर ब्रांड अम्बेडकरी नेता हुआ करते थे। अब वे मनुवादी-संघियों की शरण में जाकर महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद बनकर मोदी संघियों की दया पर पलकर मंत्री पद की मनुवादी मलाई चाटकर गुलामी कर रहे हैं। मनुवादी संस्कृति के हिंदुत्ववादी लोग उनके नाम से काँपते थे, आज वे अशक्त होकर मनुवादी संघियों के सामने अपने स्वार्थ में दुम हिला रहे है।
समता सैनिक दल आज जो दर्जनों टुकड़ों में बिखरा हुआ लगता है उसकी दशा और दिशा भी व्यक्तिगत स्वार्थों में फंसी हुई है। दिल्ली के अम्बेडकर भवन के कार्यालय में आधा दर्जन के करीब लोग पूरे देश के नेतृत्व की बात करते हैं। जबकि 100 साल के इतिहास में आजतक उनके पास न तो अपने सदस्यों का पूरा ब्यौरा है, और न उसमें अपने आप चलने की क्षमता है, उसके कुछेक सदस्यों का समता सैनिक दल से जुड़ाव और लगाव इसलिए है ताकि वे समता सैनिक दल को अपनी चुनावी राजनीति के लिए सीढ़ी बनाकर चढ़ सके। समता सैनिक दल से जुड़े ऐसे लोग संगठन की संख्या (शक्ति) दिखाकर समाज विरोधी राजनैतिक पार्टियों से चुनाव लड़ने के लिए टिकट के दावेदार बन जाते हैं और फिर अपने समाज की वोट की ताकत का इस्तेमाल विरोधियों को जीताने, उन्हें सशक्त बनाने का काम करते हैं। समता सैनिक दल में ऐसे कई लोग है जिनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उनके अपने कद से बड़ी है। अपनी इन महत्वाकांक्षाओं के लिए ऐसे व्यक्ति कोई भी अम्बेडकरी मिशन विरोधी आचरण करने से परहेज नहीं करते हैं। ऐसे लोगों से निस्वार्थ भाव से अम्बेडकर मिशन में लगे लोगों को अधिक सावधान रहने की जरूरत हैं। चूंकि ऐसे लोग किसी भी संस्था या समाज में आस्तीन के साँप होते हैं।
अम्बेडकरी लोगों का नैतिक पतन क्यों? मनुष्य में नैतिकता का निर्माण व्यक्तिगत चरित्र, उसके आचरण और पारिवारिक परिवेश से होता है। परंतु बाबा साहेब द्वारा निर्मित सामाजिक व राजनैतिक संस्थाओं में अधिकतर लोग नेता बनने की ख्वायिस के कारण संस्थाओं से जुड़े हैं। शुरूआती दौर में ये वे लोग थे जो बाबा साहेब के अथक परिश्रम व आरक्षण की व्यवस्था के तहत नौकरी पाकर दफ़्तरों में कर्मचारी बने और वहाँ पर अपने जैसे अन्य कर्मचारियों के साथ मिलकर कर्मचारी यूनियन आदि में भाग लेने लगे। इनमें पढ़ाई-लिखाई का स्तर भी अधिकतर बाबू या चपरासी पद पाने लायक था। लेकिन कर्मचारी संगठनों से जुड़कर इन सभी में नेता बनने की महत्वाकांक्षा अधिक सक्रिय थी। अधिकतर ये लोग बाबू या चपरासी (मैट्रिक) स्तर तक के लोग थे। समाज के अन्य लोगों से ये अपने को श्रेष्ठ मानते थे जिन लोगों में अच्छी वाक-पटुता थी वे कर्मचारी संगठनों में नेता बने। नौकरी के माध्यम से इन लोगों में आर्थिक सम्पन्नता भी समाज के अन्य लोगों की अपेक्षा बेहतर हुई। इसी कारण ये ओग अपने आपको समाज में श्रेष्ठ मानने लगे। श्रेष्ठता का यही भाव इनको अपने समाज से अलग करने लगा और इनमें से कुछेक चालाक लोग समाज की ताकत के बल पर राजनैतिक नेता भी बन गए। लेकिन समाज को इन लोगों से धोखा ही मिला। समाज के जो लोग समय और दुनिया की दौड़ में पीछे छूट गए इन्होंने उन पीछे छूट गए लोगों के लिए कोई ठोस योजना बनाकर काम नहीं किया।
आगंतुक पीढ़ियों के लिए अम्बेडकरी शैक्षणिक संस्थाओं का निर्माण हो: बाबा साहेब के अथक परिश्रम व बौद्धिक बल से बहुजन समाज के लोगों को संविधान के मुताबिक नागरिक अधिकार मिले, उनकी योग्यतानुसार उनको सरकारी दफ़्तरों में नौकरियां भी मिली, आर्थिक दशा भी सुधरी, उन्होंने अपने मकान-दुकान, घरों आदि का निर्माण भी किया। परंतु उन्होने अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अम्बेडकरी शिक्षण संस्थानों का निर्माण नहीं किया। वर्तमान में अम्बेडकर समाज के लोगों में दर्जनों लोग अरबपति हो सकते हैं, परंतु उनमें अम्बेडकरी मिशन के लिए दान देकर शिक्षण संस्थानों का निर्माण करने की भावना नगण्य है। अम्बेडकरवादियों को इस मनुवादी उभार के दौर में उन श्रेष्ठ मानसिकता के अम्बेडकरवादियों की अधिक जरूरत है जो अपना हित छोड़कर समाज की आने वाली पीढ़ियों के हित में यथासंभव योगदान करे। समाज में पैदा हुए महापुरुषों जैसे महात्मा ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, संत गाडगे, ई.वी. रामासामी पेरियार, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, मान्यवर साहेब कांशीराम व अन्य उन जैसे अपने महापुरुषों के संघर्ष और कार्यों से प्रेरित हो। शिक्षण संस्थाओं का निर्माण ही अम्बेडकरवादियों के मिशन को अपेक्षित मंजिल दे सकता है और जब शिक्षण संस्थान मजबूत होंगे तब समाज में अम्बेडकरी मिशन के योद्धा भी पैदा होंगे। सामाजिक संघर्षों को उनकी मंजिल तक पहुँचाने के लिए अम्बेडकरी सामाजिक संगठनों के नेताओं में निस्वार्थ कार्य करने की इच्छा, कर्मठता, समर्पण व त्याग की भावना आदि होना आवश्यक तत्व है। इन आवश्यक तत्वों के अभाव में सामाजिक संगठन अपेक्षित ऊर्जा के साथ गतिमान नहीं हो पा रहे हैं।
अम्बेडकरी संस्थानों के संचालकों में मौलिक परिवर्तन की जरूरत: परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार हर मिशन को अपेक्षित गति प्रदान करने के लिए परिवर्तन आवश्यक है चूंकि जिन वस्तुओं का निर्माण समय की परिस्थितियों के अनुसार निर्मित किया गया था समय अंतराल के बाद अपेक्षित परिणाम पाने के लिए उन तकनीकों में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। परिवर्तन करके ही उपयोग की जा रही तकनीकों को कारगर बनाकर अपेक्षित परिणाम पाया जा सकता है। आज देश में अम्बेडकरी मिशन से जुड़े जितने भी लोग हैं वे संस्थाओं के उद्देश्यों के अनुरूप परिणाम नहीं दे पा रहे हैं। समाज से जुड़े अधिकतर राजनैतिक नेता मनुवादियों के मानसिक गुलाम बन चुके हैं, उनका लालच उनके कद से अधिक ज्यादा बड़ा हो गया है। उनके अंदर की भावना समाज के लोगों की समस्याओं के लिए नहीं है। उनका सारा सामर्थ्य अपने चारों तरफ स्वयं का साम्राज्य निर्माण करने की रहती है। उनके कार्यों से समाज की वर्तमान पीढ़ियों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
आज के तथाकथित अम्बेडकरवादी पूरी तरह से स्वार्थी लोग है कुछेक लोग अपने लालच को उजागर करते हैं, कुछेक लोग अपने लालच को अपने अंदर ही छिपाकर रखते है। सामाजिक व राजनैतिक नेताओं में लालच के बढ़ने का मूल कारक भ्रष्टाचार की प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है। समाज का प्रत्येक सक्षम व्यक्ति अपने लिए इतना धन और संसाधन इकट्ठा करने की लालसा में है कि उस लालच के दल-दल में उसे कोई स्वस्थ व समृद्ध रास्ता आज नजर नहीं आ रहा है। दलित समाज से जुड़े राजनैतिक नेता बाबू जगजीवन राम जी अपने समय के एक बहुत ही योग्य, बुद्धिमान और हिन्दूवादी विचार के राजनेता थे, उनके समकालीन लोग आमतौर पर यह बात करते पाये जाते थे कि बाबू जगजीवन राम जी के पास अथाह धन-संपत्ति है; और उनके स्विस बैंक में अकाउंट है। बाबू जगजीवन राम जी के पास एक बेटी (मीरा कुमार) और एक बेटा (सुरेश) थे। मीरा कुमार सुशिक्षित होकर भारतीय प्रशासनिक सेवा में गयीं और उनकी शादी एक कायस्थ परिवार में हुई। सुरेश भी जगजीवन राम जी के सनिध्य में कुछ कारोबार कर रहे थे इनकी पहली शादी कमलजीत कौर नामक सरदारनी से हुई और दूसरी शादी सुषमा रानी जाट समुदाय की लड़की से हुई। अब मूलत: प्रश्न यह है कि बाबू जगजीवन जी की तथाकथित अथाह धन सम्पति आज कहाँ है? बाबू जगजीवन राम जी के समाज को उससे क्या मिला? शायद कुछ नही मिला! आज हम सिर्फ कयास ही लगा सकते हैं कि बाबू जगजीवन राम जी की तथाकथित धन सम्पति मीरा कुमार के कायस्थ परिवार के पास चली गई होगी और बची-कुची धन सम्पति सुरेश की पहली पत्नी कमलजीत कौर और दूसरी पत्नी सुषमा रानी जाटनी के पास चली गई होगी! देश के दलितों को बाबू जगजीवन राम जी की तथाकथित अथाह धन संपत्ति से क्या फायदा हुआ? अच्छा होता अगर बाबू जगजीवन राम जी अपनी तथाकथित धन सम्पति से देश में अपने समाज के लिए कुछेक विश्वविद्यालय स्तर के उच्च शिक्षण संस्थाओं का निर्माण करा देते तो वे आज समाज के बीच शिक्षा के प्रचार-प्रसार और समाज में पैदा हुए महापुरुषों के संघर्ष व उनकी शिक्षाओं को फैलाने में काम आते।
इसी तरह का बेमानी चलन समाज में आज भी जारी है, समाज के कुछेक लोगों के लड़के-लड़कियाँ अपने माता-पिता के संघर्ष से आईएस, आईपीएस या पीसीएस आदि बन जाते हैं तो उनमें से कुछेक ऐसे लोग अपने समाज में शादी न करके ब्राह्मण या वैश्यों (बनिया) में शादी कर रहे हैं जिसके कारण समाज की सक्षम बौद्धिक शक्ति, संपन्नता मनुवादी-ब्राह्मणवादियों के पास जा रही है। यह समाज का दीर्घकालीन नुकसान है। समाज के प्रबुद्ध लोगों से आशा की जाती है कि वे बाबा साहेब के बताए रास्ते पर चलें और उनके जैसा ही आचरण करके समाज को बदलने का काम करें।
संस्था के संचालक मंडल में राजनैतिक व्यक्तियों को न रखा जाये: राजनैतिक टेस्ट का व्यक्ति अपनी पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाने, उसका प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से कार्य करता है। ऐसा व्यक्ति संगठन से जुड़कर संगठन के लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में प्रभावित करता है। संगठन की जनशक्ति से ऐसा व्यक्ति अपनी राजनीतिक संस्था को अपने हित के लिए प्रभावित करता है। अगर ऐसे व्यक्ति के हित के बीच और उसके राजनैतिक हित में टकराव की स्थिति बनती है तो वह अपने राजनैतिक हित के साथ ही खड़ा होगा। जिसका ताजा और प्रत्यक्ष उदाहरण (आप पार्टी) के पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम का है जो केजरीवाल (संघी) द्वारा मंत्री पद से हटाये जाने के बाद भी केजरीवाल को अपना नेता मान रहे हैं और जनता को बता भी रहे हैं। दूसरा उदाहरण उदित राज (कांग्रेस) का है जो बाबा साहेब की प्रतिमा हटाये जाने के विरोध में आंदोलन की बात कर रहे हैं। समाज इनको सामाजिक आंदोलनों के लिए भरोसेमंद नहीं माने। इन दोनों नेताओं को बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा हटाये जाने के विरोध में होने जा रहे आंदोलन की बागडोर इनके हाथ में नहीं होनी चाहिए। समाज और आंदोलन के हित में इन जैसे राजनैतिक नेताओं को ऐसे आंदोलन से दूर ही रखा जाये। 2018 के सामाजिक आंदोलन की सफलता का कारण था कि वह सामाजिक संस्थाओं की शक्ति पर संचालित था और उसमें राजनैतिक नेताओं की भागीदारी नहीं थी। बाबा साहेब की प्रतिमा को संसद भवन के प्रांगण में उसी स्थान पर पुन: स्थापित कराने के लिए समाज को ऐसे ही आंदोलन की आवश्यकता है।
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