2022-12-03 07:51:16
डॉ भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक निर्धन महार परिवार में हुआ। इनके पिताजी का नाम राम जी सकपाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। भीमराव अपने माता-पिता की चौहदवीं संतान थे। बड़ा परिवार होने के नाते घर का खर्च मुश्किल से ही चलता था। बचपन में ही भीमराव की माता जी का देहांत हो गया। हम देखेंगे कि अम्बेडकर ने बचपन से लेकर अंतिम समय तक अनेक कष्ट झेले तथा जीवन भर संघर्ष ही संघर्ष किया। उनका जीवन भर 18 घंटे काम करने का रिकॉर्ड था। अंग्रेज अफसर की सिफारिश से ही भीमराव को प्राइमरी स्कूल में प्रवेश मिल सका। महाराजा बड़ौदा संयाजीराव गायकवाड की सहायता से भीमराव ने कोलम्बिया यूनिवर्सिटी न्यूयार्क से उच्च शिक्षा ग्रहण की। वहां से वे 1917 में एम.ए. तथा पी. एच-डी की डिग्री हासिल करके लौटे। बाद में कोल्हापुर के राजा साहूजी महाराज की सहायता से आगे शिक्षा ग्रहण करने के लिए लंदन गये। वहां से उन्होंने लंदन स्कूल आॅफ इकॉनामिक्स एण्ड पोलीटिकल साइंस से एम.एस-सी तथा डी.एस-सी की उपाधि प्राप्त की। गे्रज इन लंदन से बार एट-लॉ (बैरिस्टर)की डिग्री प्राप्त कर 1923 में भारत लौटे। अब वह बहुत बडेÞ विद्वान व अतियोग्य व्यक्ति बन गये थे।
कदम-कदम पर डॉ. अम्बेडकर ने जातिवाद व छूआछूत का दंश झेला तथा अपमान सहा। इसी से तृस्त होकर डॉ. अम्बेडकर ने संकल्प लिया, ‘‘मंै जब तक अपने अछूत भाईयों को गुलामी से नहीं निकाल दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूगां’’ उन्होंने अपना आंदोलन आगे बढ़ाना शुरु कर दिया। वे 1927 में बम्बई विधानसभा के सदस्य मनोनीत किये गये। 20 मार्च 1927 को उन्होंने महाड़ में चावदार तालाब से पानी लेने का सत्याग्रह किया। 25 दिसंबर 1927 को महाड़ में ही अपने साथियों के साथ मनुस्मृति का दहन किया। इस प्रकार मनुविधान समाप्त करने का संकेत दिया। बंबई से वे 1928 में साईमन कमीशन के सदस्य बने। डॉ. अम्बेडकर ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की ओर से अछूतों के अधिकारों के लिए साईमन कमीशन को मांगपत्र प्रस्तुत किया। साईमन कमीशन को बहुत लंबा साक्षात्कार दिया और कमीशन को अछूतों की समस्याओं और अधिकारों के बारे में कमीशन को समझाने में सफल हुए। सन 1930, 1931 तथा 1932 में प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। गोलमेज सम्मलनों में डॉ. अम्बेडकर ने अछूत/दलित वर्ग की समस्याओं, उनके शोषण तथा उनके अधिकारों व उनके लिए आरक्षण की मांग ब्रिटिश सरकार के सामने बहुत ही जोरदार तरीके से रखी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने डॉ. अम्बेडकर की बात से सहमत होते हुए अगस्त 1932 में ‘कम्युनल अवॉर्ड ’ की घोषणा की जिसमें दलितों को आरक्षण तथा प्रथक निर्वाचन का अधिकार मिला । किन्तु गांधी जी ने इसके विरूद्ध आमरण अनशन आरंभ कर दिया। गांधी जी के प्राण बचाने के लिए डॉ. अम्बेडकर को प्रथक निर्वाचन के अधिकार की बलि देनी पड़ी तथा 24 सितंबर 1932 को पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने पडेÞ। डॉ. अम्बेडकर बम्बई लॉ कॉलेज के प्रिसिपल भी रहे। लेकिन समाज सेवा के लिए पूर्णत: समर्पित होने के लिए उन्होंने प्रिंसिपल पद से त्यागपत्र दे दिया तथा हाईकोर्ट का जज बनने से भी इनकार कर दिया। मई 1935 में उनकी पत्नी रमाबाई का देहांत हो गया।
सन 1936 में डॉ. अम्बेडकर ने ‘स्वतंत्र मजदूर दल’ की स्थापना की। सन 1937 के बंबई विधानसभा चुनावों में इस दल के 17 उम्मीदवार विजयी हुए। 1942 से 1946 तक डॉ. अम्बेडकर ब्रिटिश सरकार में वायसराय की एक्जीक्यूटिव कांसिल में श्रम और कार्यमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने 16 अछूत छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए सरकारी खर्चे से विदेश भिजवाया। जुलाई 1942 में नागपुर में डॉ. अम्बेडकर ने ‘आॅल इंडिया शैड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन’ की स्थापना की। इसी दौरान उन्होंने बाढ़ नियंत्रण की नीति बनाई, इसके लिए नर्मदा नदी तथा महानदी पर बांध बनाने की योजना बनाई। सैन्ट्रल वाटर एण्ड पॉवर कमिशन की स्थापना की। बेरोजगारों के लिए रोजगार कार्यालय खुलवाये। महिलाआें को समान वेतन तथा प्रसुती अवकाश, साप्ताहिक अवकाश तथा काम के फिक्स घंटे निर्धारित किये। भूमि खरीद कर नई दिल्ली में अम्बेडकर भवन की स्थापना की। रिजर्व बैंक की स्थापना भी उनके सिद्धांत के आधार पर हुई है। सन 1946 जुलाई में डॉ. अम्बेडकर बंगाल विधानसभा से संविधान सभा के लिए सांसद चुने गये।
सन 1947 में वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री बने। वे संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। भारत का नया संविधान बनाने का दायित्व उनके ऊपर आ गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। अनेक कष्टों को झेलते हुऐ खराब स्वास्थ्य की परवाह किये बिना 2 साल 11 महीने 18 दिन में बाबासाहेब ने नया संविधान तैयार कर दिया जिसकी प्रक्रिया 26 नवंबर 1949 को पूरी हुई। 26 जनवरी 1950 को देश का नया संविधान लागू हुआ।
हिन्दू कोड बिल तथा विदेश नीति पर मतभेद के कारण डॉ. अम्बेडकर ने सितंबर 1951 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। डॉ. अम्बेडकर ने ‘पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी’ की स्थापना की। इसके अंतर्गत मिलिन्द कॉलिज औरंगाबाद तथा सिद्धार्थ कॉलेज बम्बई जैसे शिक्षा संस्थानों के साथ अनेक स्कूलों और क्षात्रावासों की स्थापना की। जून 1952 में डॉ. अम्बेडकर को कोलम्बिया यूनिवर्सिटी ने एल.एल-डी. की डिग्री से सम्मानित किया। डॉ. अम्बेडकर ने 1954 में ‘भारतीय बौद्ध महासभा’ की स्थापना की। अपने संकल्प के अनुसार बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने पांच लाख अनुयाईयों के साथ 14 अक्टूबर 1956 को बुद्ध धम्म ग्रहण कर लिया। प्रथम विश्व बौद्ध सम्मेलन जून 1950 में उन्हें बोधिसत्व घोषित किया गया। बाबासाहेब ने रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया की स्थापना की। उन्होंने अब पूरा समय कुछ बुद्ध धम्म के प्रचार के लिये लगाने का संकल्प लिया। लोगों को भारतीय परिवेश में बुद्ध दर्शन समझाने के लये वे ‘बुद्ध एण्ड हिज धम्मा’ लिख रहे थे। 5 दिसंबर 1956 की रात को बाबासाहेब ने इस पुस्तक का लेखन पूरा किया और आमुख लिखा।
6 दिसंबर 1956 को प्रात: डॉ. अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण हो गया। प्रात: जब माईसाहेब लक्ष्मी अम्बेडकर (बाबासाहेब की दूसरी पत्नि) उनके कमरे में आई तो देखा कि बाबासाहेब चिरनिद्रा में सो गये हैं। वे रोने लगी। अपने नौकर सुदामा को बुलाया। उनके विश्वासपात्र प्राईवेट सेक्रेटरी नानक चन्द रत्तू को टेलीफोन से सूचना दी। वे भी आकर फूट-फूट कर रोने लगे। प्रधानमंत्री नेहरू जी को सूचना दी गई, बम्बई उनके परिवार को सूचना दी गई। उनकी मृत्यु का समाचार आग की तरह चारों तरफ फैल गया। प्रधानमंत्री श्री नेहरू उनके निवास स्थान 26 अलीपुर रोड, दिल्ली उनके अंतिम दर्शन के लिये पहुंचे। सोहनलाल शस्त्री, अनेक मंत्री, सांसद आये। जैसे भी जिसको पता लगा, जनसमूह का बहुत बड़ा सैलाब अपने प्यारे बाबा के अंतिम दर्शन के लिये उमड़ पड़ा। अनेकों लोग फूट-फूट कर रो रहे थे। शाम सात बजे तक उनके दर्शन के लिये लोगों का अंतहीन जमावडा लगा रहा। उनका शव बम्बई ले जाने के लिये बाबू जगजीवन राम ने एक डकोटा हवाई जहाज का प्रबंध कराया। उनके पार्थिव शरीर को एक खुली गाड़ी में रखा गया और फूलों से लाद दिया। उनके शव का जुलूस उनके निवास स्थान से निकलकर चांदनी चौक से पुरानी दिल्ली होते हुए अजमेरी गेट, आसफ अली रोड से सफदरजंग हवाई अड्डे के लिए निकला। सारे रास्ते में सडक के दोनों तरफ गलियों में, दुकानों पर, छतों पर हजारो-हजारों लोग बाबासाहेब के अंतिम दर्शन के लिये ठंड में शाम तक प्रतीक्षा में खड़े रहे। गाड़ी के पीछ-पीछे लोगों का बहुत बड़ा हुजूम चल रहा था, शाम को बढती ठण्ड के बावजूद लोग वापिस होने का नाम नहीं ले रहे थे। मजबूर होकर गाड़ी की स्पीड तेज कर दी गई, तब जाकर लोग वापिस हुए। जहाज में माई साहेब, नानक चन्द रत्तू, सोहनलाल शास्त्री, राय सिंह, तुलादास, भगत पूरन चंद, श्री भोंसले, सुदामा (रसोईया), शंकरानन्द शास्त्री, मुंशीराम भारद्वाज, भदन्त आनन्द कौसत्यायन आदि बाबासाहेब के शव के साथ सफदरजंग हवाई अड्डे से विमान द्वारा बम्बई के लिये रवाना हुए।
डकोटा जहाज बम्बई के शान्ताक्रूज हवाई अड्डे पर 7 दिसंबर को सुबह करीब तीन बजे पहुंचा। वहां भी बहुत भारी संख्या में श्रद्धालु बाबासाहेब के अंतिम दर्शन के मौजूद थे। शव को जहाज से उतार कर गाड़ी में रखा गया। शव यात्रा हवाई अड्डे से उनके निवास स्थान राजग्रह, हिन्दू कॉलोनी, दादर, बम्बई के लिये चली। उनके निवास की दूरी लगभग 13 किलोमीटर है। यहांं भी सड़क के दोनों ओर छज्जों तथा छतों पर खड़े थे। उनमें बहुत सारे लोग तो 6 दिसंबर दोपहर बाद से ही भूखे प्यासे खड़े थे। उनकी कोठी पर अपने हृदय सम्राट के अंतिम दर्शन करने के लिए अपार भीड़ का अंदाजा लगाना असम्भव था। नासिक, नागपुर, शोलापुर, औरंगाबाद, मन्माड, आदि से लोगों को बम्बई लाने के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई गई थी। लाखों-लाखों लोग उन्हें श्रद्धाजंलि दे रहे थे। उनके शव को फूलमालाओं से लाद दिया गया। हजारों-हजारों लोग दहाड़ मारकर फूट-फूट कर रो रहे थे, कोई-कोई तो दीवार में अपना सिर मार रहे थे। बहुत ही ह्ृदय विदारक दृश्य था। शाम चार बजे तक कई लाख लोगों ने अपने प्यारे बाबा, हृदय सम्राट के अंतिम दर्शन किये। कई लोग तो उनके वियोग में पागल से हो रहे थे, बद हवास हो रहे थे।
चार बजे अंतिम शव यात्रा शमशान घाट, शिवाजी पार्क समुद्र तट के लिये निकली। पुलिस का बहुत भारी प्रबंध था। कई लाख लोग इस जुलूस में चल रहे थे। बम्बई में मिल, कारखानें, स्कूल, कॉलिज, कार्यालय सभी बंद थे। बाबासाहेब के इस जुलूस में शामिल भीड़ का रिकॉर्ड अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। आधे से अधिक बम्बई लगभग ठप्प हो गई थी। उनके शव को चंदन की चिता में रखा गया। बाबासाहेब के शव को संबोधित करते हुए दादासाहेब भाऊराव गायकवाड़ एम.पी ने मराठी में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि आप लोगों ने धर्मान्तरण के लिये बाबासाहेब को बौद्ध धम्म में दीक्षा के लिये बम्बई बुलाया था। वह जीते जी न आ सके। अब उनकी चिता के सामने प्रतिज्ञा करो कि उनके साथ की गई प्रतिज्ञा को सच्चे मन से पूरा करोगे। लोगों ने रूंधे हुये गले से दादा गायकवाड़ को हां में उत्तर दिया। इसके बाद उनके अनन्य ब्राह्मण मित्र आचार्य अत्रे ने मराठी में बहुत ही मार्मिक तथा हृदय स्पर्शी भाषण दिया जिसका एक-एक वाक्य सुनकर लोग दहाड़ मारकर रो रहे थे। वातावरण बहुत ही गमगीन था, लोग इस वियोग को नहीं संभाल पा रहे थे। अंत में बाबासाहेब के एक मात्र पुत्र यशवन्त राव भीमराव अम्बेडकर ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी। भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने पूर्णत: बुद्ध रीति से अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया कराई। इस प्रकार दुनिया की एक महानतम....हस्ती का सफर समाप्त हो गया। उनका अंतिम सफर भी ऐतिहासिक व बेमिशाल रहा। ऐसे प्यारे बाबा अब कभी नहीं आयेंगें।
बाबासाहेब यद्यपि सशरीर इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा दिये गये विचार तथा उनका दर्शन हमेशा रोशनी देता रहेगा। जब-जब देश में कहीं भी दलितों, पिछड़ों , गरीबों पर अत्याचार, भेदभाव होगा बाबा साहेब की याद आयेगी ही। इन से छुटकारा भी बाबासाहेब के बताये हुए रास्ते पर चलने से ही मिलेगा। इन प्यारे बाबा का देश-विदेश में हजारों-हजारों साल तक स्मरण किया जाता रहेगा।
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