2023-11-04 08:27:10
=बहुजन संगठनों के संचालकों को समाज हित में सुधारना होगा उन्हें देश में एकता के साथ अम्बेडकरवाद को स्थापित करना होगा।
=सब मिलकर एक रहो, आपकी शक्ति तन, मन, धन के साथ एक बने रहने में ही है। एक रहोगे तभी मनुवादी शोषण और उत्पीड़न से बच सकोगे।
=बहुजन समाज के जातीय व धार्मिक घटकों को मनुवादियों से सवाल पूछने चाहिए कि मानव समाज को 6743 जातियों में क्यों बांटा गया? ऐसा करने के पीछे किसकी मानसिकता थी? देश जातियों में विभक्त करके स्वस्थ बनाया गया है या अस्वस्थ और इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
=शूद्र वर्ग की जातियों और सभी वर्णों की महिलाओं को हिंदू धर्म में नीच क्यों माना गया है?
=शूद्र वर्ग के लोग कमेरा व तकनीकी शोधकर्ता है जिनका देश के निर्माण व सम्पदा सर्जन में अहम योगदान है तो ऐसे ज्ञान सर्जनकर्ता और मेहनतकश लोग सवर्ण समाज कहे जाने वाले अवैज्ञानिक लोगों से नीच कैसे हो सकते हैं? पूरा शूद्र समाज देश की निर्माणकर्ता जमात है और सवर्ण कहे जाने वाला समाज शूद्रों के श्रम पर पलने वाले परजीवी हैं। परजीवी लोग समाज में तुलनात्मक आधार पर श्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं? इस तरह के अवैज्ञानिक चलन की व्यवस्था को शूद्र समाज के जागरूक लोगों को अब पूर्णतया पलटना होगा और सभी को कमेरा व सर्जनकर्ता समाज को ही श्रेष्ठ मानना होगा। सभी को समानता और वास्तविकता के आधार को ही सर्वमान्य करना होगा, काल्पनिकता का आधार पर किसी को श्रेष्ठ मानना बहुजन समाज के लोगों को अब मान्य नहीं करना होगा।
अचंभित करने वाली अनेकों असत्य बातों पर विश्वास करना शूद्रों की मूर्खता नहीं है तो क्या है?
= देश में 15 प्रतिशत आबादी तथाकथित सवर्ण समाज की है जिनकी अतार्किक, असंभावित, अवैज्ञानिक बातों को शूद्र समाज के 75 प्रतिशत लोग सत्य मान रहे हैं। अजागरूक शूद्रों क्या आप कभी इस मनुवादी भ्रामक जाल से निकल पाओगे? जिसे आप सत्य मानकर उसकी पूजा कर रहे हो?
=गणेश का आधा शरीर आदमी का और आधा हाथी का है और विशालकाय हाथी के सिर वाले गणेश की सवारी चूहा है। क्या यह आपको सत्य लगता है?
=हनुमान जी के पिता पवन है जो योनि द्वार से नहीं कान से पैदा हुए। ऐसा मनुवादी तथाकथित शास्त्रों में लिखा गया है। क्या यह सच हो सकता है? दिमाग की बत्ती जलाओ।
=नंपुसक तथा लिंगहीन राजा दशरथ की तीनों रानियों से चार पुत्र फलों की खीर खाकर पैदा हुए। क्या यह सत्य हो सकता है?
=मंदोदरी मेंढकी से और मकरध्वज मछली से पैदा हुए। क्या यह सत्य हो सकता है? दिमाग की बत्ती जलाओ।
=मनु सूर्य के पुत्र थे उनको छींक आने पर नाक से एक लड़का पैदा हुआ जो राजा इक्ष्वाकु नाम से जाना गया। क्या यह सत्य हो सकता है?
=देश में 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या पिछड़े वर्ग की जातियों की है फिर भी उनकी देश की सम्पदा और शिक्षण संस्थानों में भागीदारी नगण्य क्यों है? सत्य को जानकर और पहचानकर भी पिछड़ी जातियों के लोग मौन क्यों हैं? मौन रहना उनकी आत्म स्वीकृति को दर्शाता है या फिर वे इस भ्रम में हैं कि उनके लिए कोई और आकर संघर्ष या युद्ध करे। ऐसा नहीं होने वाला है, आपको अपने अधिकारों के लिए खुद ही खड़ा होकर संघर्ष करना होगा। कोई अन्य आपके लिए संघर्ष में भाग क्यों लेगा? बहुजन समाज विशेषकर दलित समाज के महापुरुषों ने जब-जब आपके अधिकारों को सत्ता के सामने उठाया है। पिछड़ी जातियों के दबंग घटकों ने उन्हें अपने से छोटा व नीच समझकर साथ नहीं दिया। देश में जब माननीय साहेब कांशीराम जी मंडल कमीशन को लेकर संघर्ष कर रहे थे पिछड़ी जाति के कुछेक लोग उनका विरोध कर रहे थे। इतना ही नहीं, राजीव गोस्वामी नाम के छात्र ने मंडल के विरोध में आत्मदाह किया था। शायद आपको पता हो कि राजीव गोस्वामी पिछड़े वर्ग की जाति से थे। ऐसे अनेकों उदाहरण है कि जब-जब बहुजन समाज के दलित लोगों ने साथ मिलकर संघर्ष की बात की है तो पिछड़े वर्ग की अधिकांश जातियाँ आगे नहीं आयी, बल्कि उनके इस आव्हान की उन्होंने उपेक्षा ही की है। ऐसा इसलिए होता है की मनुवादी व्यवस्था में जातियों के बीच क्रमिक ऊँच-नीच का काल्पनिक भाव है इसलिए पिछड़े वर्ग की जातियाँ अपनी जाति को दलितों की जाति से उच्च मानती है और यही भावना बहुजनों के जातीय घटकों को एक साथ नहीं आने देती। पिछड़ी जाति के घटकों के लोग अपने से नीच समझी जाने वाली जाति के साथ मिलकर बैठने व काम करने में अपना अपमान समझते हैं और ऐसा करना उन्हें धर्म विरुद्ध भी लगता हैं।
=अति पिछड़ी जातियाँ वास्तविकता में मानवता व समानता विरोधी है और वे सभी अपने आपको कट्टर हिन्दू मान रही है। वे इस बात पर चर्चा नहीं करती कि जिसको वे धर्म कह रहे हैं वास्तव में वह धर्म नहीं है, अधर्म है। धर्म का काम मनुष्यों को सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देना होता है। धर्म मनुष्य के कल्याण के लिए काम करता है। मगर यहाँ पर हिन्दू धर्म के ठेकेदार धर्म की रक्षा के लिए अपने अनुयायियों (अति पिछड़ी जातियों) की बलि देने की बात करते हैं। सोचो यह कैसा धर्म है?
=ऐसा करने पर अगर कोई मनुवाद विरोधी संघर्ष में असमय मारा भी जाता है तो सवर्ण समाज का कोई नुकसान नहीं होता है। मनुवादियों का दोनों तरफ से फायदा ही फायदा है। मनुवादी अतीत से आज तक इसी रणनीति से काम करके विजयी हो रहे हैं और पिछड़ी जाति उनका यह खेल समझ नहीं पा रही है।
=पिछड़ी जातियों के लोगों को अपनी बुद्धि से सोचना चाहिए कि पानी का बहाव प्राकृतिक रूप में ऊपर से नीचे की तरफ बहता है। अगर भारत की ये अति पिछड़ी जातियाँ मनुवादियों के अवैज्ञानिक भ्रम की शिकार हैं तो प्राकृतिक नियम के अनुसार उन्हें दूसरों का साथ लेने के लिए अपने कृत्रिम मनुवादी उच्च पायदान से नीचे उतरना होगा और मनुवादियों पर विजय प्राप्ति के लिए सबको साथ लेकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा। भगवान बुद्ध ने अपने एक उपदेश में कहा गया है कि ‘अपना दीपक सबको स्वयं ही बनना होगा’।
=पिछड़े जातीय घटकों को एक होकर अपनी हिस्सेदारी के लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ना होगा, हम सभी को मनुवादी जाल में फँसना नहीं है। मनुवादियों का बहुजनों के लिए पुराना मंत्र है कि बहुजन जातीय घटकों के विरुद्ध उन्हीं के जातीय घटक से उनके विरोधी चुनो, उसे खूब खाद पानी देकर बलबती बनाओ और उसे ही उनसे लड़ने के लिए भेजो। अगर ऐसा करने में वह मारा भी जाता है तो मनुवादियों का कोई नुकसान नहीं होगा।
शिक्षण व शोध संस्थानों में हिस्सेदारी
=भारत जब आजाद हुआ उस वक्त अविभाजित देश में कुल 20-21 विश्वविद्यालय थे जिनकी संख्या 2023 तक बढ़कर 1000 से अधिक हो गयी है। और कॉलेजों की संख्या 500 से बढ़कर 50,000 तक पहुँच चुकी है। मनुवादी संस्कृति के संघी प्रधान मंत्री 10 वर्षों से जोर-शोर से विभिन्न माध्यमों से देश व विदेश में प्रचार करके बता रहे हैं कि पिछले 70 वर्षों में देश में कुछ नहीं हुआ और अब संघी मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर ही देश का उदय हुआ है। देश अब विकास पथ पर है। मोदी जी से देश की जनता को पूछना चाहिए कि यदि पूर्ववर्ती सरकारों ने कुछ नहीं किया है तो देश में शिक्षा तंत्र का इतना फैलाव कैसे हुआ? और वह किसने किया? इन कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के साथ-साथ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी ने देश में कई हजार उत्कृष्ट श्रेणी के शोध संस्थानों जैसे आई.आई.टी., एम्स, व कृषि और औद्योगिक विकास के लिए हजारों शोध परिषदों की भी स्थापना की, अंतरिक्ष के क्षेत्र में शोध संस्थान निर्मित किये। मोदी जी पूर्ववर्ती सरकारों के कामों को न देखना चाहते है और न उनका नाम लेना चाहते हैं। यह उनके निम्नतम स्तर और सोच को दर्शाता है। ऐसा सोचने और बोलने वाले व्यक्ति वास्तविकता के आधार पर मनुष्य कहलाने लायक भी नहीं हैं।
=मोदी व उसके अन्धभक्त और गोदी मीडिया को देश की जनता को यह भी बताना चाहिए कि अगर पूर्ववर्ती सरकारों ने देश में तकनीकी व शोध संस्थानों का निर्माण नहीं किया होता तो मोदी-संघियों का शासन अपने व्यापारी मित्रों को आज क्या बेच लेते? आज मोदी जी देश में पब्लिक सेक्टर के जो संस्थान, कंपनियां, रेलवे, हवाई अड्डे आदि अपने व्यापारी मित्रों को बेच रहे हैं वे क्या मोदी जी व संघ द्वारा निर्मित हुए थे? सरकार को देश की जनता से सच बोलना चाहिए जो मोदी व संघ की संस्कृति व डीएनए में है ही नहीं।
=आज देश में हिंदुत्व का जो आतंक चल रहा है उससे देश के सामाजिक परिवेश में नफरत अधिक उगी है। देश का बहुजन समाज विशेषकर दलित व मुस्लिमों पर अमानवीय अत्याचार अधिक बढ़े है जो संघियों की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। देश में आज मनुस्मृति की अवधारणा का शासन चल रहा है। प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म है, आज स्वतंत्र पत्रकारों को जेल में बंद किया जा रहा है। देश का संविधान मनुवादी गुंडों द्वारा ध्वस्त कराया जा रहा है और मनुवादी गुंडों को सरकारी पदों पर बैठाकर पोषित किया जा रहा है और उनसे असंवैधानिक वक्तव्य दिलाये जा रहे हैं।
=बहुजनों जागो अगर देश और संविधान को बचाना है तो एक होकर संकल्प के साथ खड़े होकर संघी बेईमानों, देशद्रोहीयों से जंग लड़ो, नहीं तो ये मनुवादी गुण्डे देश की सम्पदा जो देशवासियों ने 77 वर्षों में अपनी मेहनत और संघर्ष से बनायी है वह खत्म हो जाएगी। फिर हम और आप सब क्या करेंगे? देश को बचाना है तो मोदी-संघी शासन को देश से भगाना होगा।
=सही वक्त पर जागना, अपने अस्तित्व और स्वाभिमान की रक्षा करना प्रत्येक बहुजन (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) नागरिक का फर्ज है उसके लिए आज सामूहिक संघर्ष वक्त की जरूरत है।
=जिस समाज का मानव संसाधन जितना अच्छा होगा वह समाज उतना ही उन्नत होगा। बहुजन समाज को अपना मानव संसाधन उत्कृष्ट व प्रगतिशील बनाना होगा।
=समाज में निरंतर जागरण, जागरूकता और उसका सामयिक अवलोकन जरूरी है, जागरूक व सक्षम बनो।
=क्रमिक ऊँच-नीच के पैमाने पर अपने-आपको ऊपर समझ रहे जातीय घटकों को नीचे वाले घटकों से तालमेल के लिए नीचे उतरना होगा, तभी एक होकर संघर्ष करना कारगर हो सकेगा।
=दलित समझे जाने वाले घटकों को व अन्य सभी अति पिछड़ी जातियों को अपना इतिहास जानना होगा। अपना इतिहास जानकर ही आप इतिहास रच सकते हैं।
=सभी अति पिछड़ी जातियों को (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) को अब सिर्फ नौकरी पर निर्भर न रहकर विभिन्न व्यवसायों की तरफ भी बढ़ना होगा।
=समाज को अपनी दुकान, अपना कारखाना आदि स्थापित करने चाहिए। वैश्यों की दुकानों व संस्थानों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
=समाज के लोगों में आदत डालनी होगी कि वे अपने रोजमर्रा की वस्तुएं अपने समाज की दुकान से ही खरीदे, चाहे वह दस कदम दूरी पर ही क्यों न हो?
=समाज में बहुजन समाज के बाजार स्थापित करो और वहीं से अपनी जरूरत के समान को खरीदें। इसे अपनाकर समाज को विकसित करो।
=भारत का बहुजन समाज जनसांख्यिकी के हिसाब से बहुसंख्यक है, प्रजातंत्र में उसकी सरकार होनी चाहिए। मगर बुद्धि और एकता की कमतरता के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है।
=भारत दुनिया का एक उपभोक्तावादी देश है उसके बहुसंख्यक लोग जहाँ से अपनी जरूरत का सामान खरीदेंगे उसी की दुकान चलेगी और उसे ही लाभ होगा। समाज के सभी लोग वैश्यों से ही अपनी जरूरत के सामान खरीदते हैं। जिससे देश का वैश्य समाज सम्पन्न व धनाढ्य हो रहा है। देश का 75 प्रतिशत धन इसी माध्यम से वैश्यों और व्यापारियों के पास जा रहा है।
=देश में ब्राह्मण और वैश्यों का गठबंधन चल रहा है, ब्राह्मण योजना बनाता है और वैश्य व्यापारी उसे क्रियान्वित करता है। इसी धंधे से वैश्य मंदिरों व धार्मिक पाखंड के लिए दान देकर देश में पाखंड व अवैज्ञानिकता फैलाकर संविधान के अनुच्छेद 51 का खुला उल्लंघन कर रहा है।
=देश में अवैज्ञानिकता व पाखड़ फैलाने में ब्राह्मण और वैश्य वर्ग का मुख्य हाथ है। अगर जनता से जुड़ी रोजमर्रा की चीजे बहुजन समुदाय (शूद्र) अपने हाथ में लेगा तो ये दोनों ही बहुजनों के पास आने को मजबूर होंगे।
=बहुजनों को अपने बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए और उनके जो बच्चे पढ़ाई में उत्कृष्ट न हों उन्हें शुरू से ही व्यवसाय में डालना चाहिए।
=बहुजन समाज की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह न तो अपने इतिहास को जानता है और न ही उसे जानने का प्रयास करता है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने ऐसे लोगों को देखकर कहा था कि जो लोग अपना इतिहास नहीं जानते हैं वे इतिहास बना भी नहीं सकते।
=वर्तमान समय में भारत का सिख समाज सेवा का उत्कृष्ट काम करता है। कोरोना महामारी सबके सामने जीता जागता उदाहरण है जब लोग मौत के डर से बाहर नहीं निकल पा रहे थे तब सिखों ने अपनी जान की परवाह किये बिना असाहय लोगों की सेवा की। ऐसे काम करने की प्रेरणा उनमें अपने गुरुओं की शिक्षाओं के कारण है। सिख अपने गुरुओं की शिक्षाओं पर चलकर उनका आचरण भी करते हैं। जो बहुजन समाज के लोगों में नदारत है।
=बहुजनों में सबसे बड़ी कमजोरी है कि वे अपने महापुरुषों की बात तो करते हैं परंतु उनके बताए रास्ते पर चलते नहीं। ये अधिकतर इचल-बिचल चाल से ही चलते है। अति पिछड़ी जातियों को तो अपने महापुरुषों की जानकारी भी नहीं है। इसलिए अधिकतर वे अपने को हिन्दू कहकर अभिभूत होते हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि अगर वे हिन्दू हंै तो ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों से नीच कैसे हैं?
=काम-धंधों, संस्थानों व देश की सम्पदा में जनसांख्यिकी के आधार पर शूद्रों की हो हिस्सेदारी। अभी तक इसमें 100 प्रतिशत हिस्सेदारी ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों की है, शूद्रों को मनुवादी व्यवस्था के तहत शून्य पर रखा गया है उन्हें सिर्फ सेवा करने का ही अधिकार है।
=कुछेक शूद्र जातियाँ अपने आपको शूद्र न समझकर सामाजिक व्यवस्था में उच्च मानकर दूसरे शूद्रों से सामन्ती व्यवहार करती है और उनका उत्पीड़न भी करती है। शूद्रों को अपनी शक्तियों का इस्तेमाल दूसरे शूद्रों के विरुद्ध न करने का संकल्प लेना होगा और उसके अनुसार ही आपस में आचरण करना होगा।
=सामन्ती सोच के मूल दो चीजं हैं-पहली समाज में मनुवादी क्रमिक ऊँच-नीच; दूसरी जमीनों व भू-सम्पदा का मालिकाना हक। इसी कारण समाज में असमानता और दबंगई बढ़ रही है। इसका सटीक इलाज है कि देश की हर प्रकार की सम्पदा का हो राष्ट्रीयकरण। इस प्रकार की संपदाओं को उसके लायक लोगों को पट्टे पर काम करने के लिए दिया जाये। उन्हें उसका मालिक न बनाया जाये।
शूद्र समाज के कुछेक लोग समाज के बल (आरक्षण आदि) से सरकारी सेवा में सम्मानीय पद पाकर समाज के प्रति उपेक्षा का भाव रखकर शूद्र समाज के हित में काम नहीं करते हैं तो उन्हें सामाजिक स्तर से शूद्र समाज का अपराधी घोषित किया जाये और उसका समाजिक बहिष्कार भी किया जाये। ऐसे लोग अनुपयोगी सामाजिक कचरा है। साथ ही समाज का सेवानिर्वत मानव संसाधन अगर समाज की उन्नति में योगदान नहीं कर रहा है तो उसे भी सामाजिक कचरा ही माना जाये। मनुष्य के लिए जीवन पर्यन्त जरूरी है की वह अपने आपको हमेशा समाज उपयोगी बनाये रखे।
=अवैज्ञानिक व अबौद्धिक मान्यताओं और चलन का बहुजन समाज को तुरंत त्याग करना होगा और उन्हें समाज से दूर रखना होगा।
-प्रकाश चंद
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