2024-06-14 13:14:06
18वीं लोकसभा 2024 के चुनाव का परिणाम 4 जून को आया। जिसके आधार पर इंडिया गठबंधन ने 234 और मोदी भाजपा ने 293 सीटें जीती हंै। मोदी-भाजपा के एनडीए को बहुमत मिलने पर राष्ट्रपति महोदया ने सरकार बनाने के लिए निमंत्रण दिया। मोदी ने अपने संघी साथियों के साथ मिलकर सरकार का गठन किया। सरकार के गठन की विशेषता यह है कि मोदी ने जिन चेहरों को अपने मंत्रिमंडल में पिछले दो ट्रम में रखा था उनमें से ही अपनी तीसरी पारी में 20 से ज्यादा चेहरों को दोबारा मंत्री बनाया। इन सभी मंत्रियों का चाल-चरित्र और चेहरा संघी-मनुवादी है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि देश की विविधता पूर्ण एकता को जैसा खतरा मोदी की पिछली दो पारियों में था वैसा ही खतरा वर्तमान तीसरी पारी में भी बरकरार रहने की संभावना है। जिसके कारण देश के सभी जागरूक व बुद्धिजीवियों को हमेशा सजग व जागरूक रहना होगा। जागरूक रहकर ही आप सभी लोग देश को सुरक्षित व संगठित रख सकेंगे। इस चुनाव में दो प्रमुख गठबंधन नजर आये। कांग्रेस की अगुआई वाला ‘इंडिया’ गठबंधन व मोदी की अगुआई वाला ‘एनडीए’। इन दोनों के अलावा कुछेक क्षेत्रीय पार्टियाँ भी चुनाव मैदान में थी जैसे-बीएसपी, तृणमूल कांग्रेस, तेलगु देशम पार्टी, डीएमके, राष्ट्रीय नेशनल कांग्रेस, शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि अपने स्तर पर चुनाव लड़ रही थी। इन चुनावों में मोदी-भाजपा ने चुनाव आयोग के साथ मिलकर जो चुनावी धांधलियाँ कराई हैं उससे साफ होता है कि 2024 का चुनाव न तो निष्पक्ष हुआ है और न उसमें संविधान की मर्यादाओं का पालन कराया गया है। चुनाव प्रक्रियाओं को देखकर लग रहा था कि देश का चुनाव आयोग मोदी संघी भाजपा के साथ मिला हुआ है और उन्हीं को जीताने के लिए काम कर रहा था। चुनाव शुरू होने से पहले चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सबको विश्वास दिलाया था कि चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता बरती जाएगी और सभी चुनाव लड़ने वाले व्यक्तियों को समान लेवल प्लेयिंग फील्ड दिया जाएगा। लेकिन वास्तविकता के आधार पर समान लेवल फील्ड और निष्पक्ष चुनाव कहीं भी देखने को नहीं मिले। चुनाव आयोग इस चुनाव में खुद भाजपा की सहयोगी पार्टी बनकर चुनाव लड़ रहा था।
‘इंडिया’ गठबंधन: इंडिया गठबंधन के तहत 38 राजनैतिक दलों ने चुनाव लड़ा। अधिकतर क्षेत्रीय राजनैतिक दल अपने संबंधित राज्य में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। जैसे उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस ने अपने कोटे की 17 सीटों में से 6 सीटें जीती और कांग्रेस कुल मिलाकर अपने पहले के प्रदर्शनों से अच्छी रही। इंडिया गठबंधन के दूसरे सहयोगी दल सपा ने गठबंधन में 37 सीटें जीती और उत्तर प्रदेश में सपा को गठबंधन में रहकर सबसे अधिक फायदा दिखा। इस चुनाव की विशेषता यह रही कि चुनाव राजनैतिक पार्टियों के बीच नहीं लड़ा जा रहा था यह चुनाव मोदी और आम जनता के बीच लड़ा जा रहा था। देश की जनता मोदी के झूठे वायदों, महँगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के कारण उत्पीड़न झेल रही थी। जनता ने मोदी को चुनाव में हराने का मन बना लिया था और उसने अपने उसी फैसले के अनुसार मोदी को वोट नहीं दिया है।
निष्पक्ष चुनाव कराने में विफल रहा चुनाव आयोग: देश की जनता में चुनाव के प्रति विश्वास और भरोसा बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग का व्यवहार निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए। लेकिन इस चुनाव में देश के मतदाताओं ने चुनाव आयोग की निष्पक्ष और पारदर्शिता की धज्जियाँ उड़ते देखा। चुनाव आयोग जान-बूझकर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को मतदान का डेटा उसी दिन न देकर कई-कई दिन बाद दे रहा था। कई दिन बाद सप्लाई किये गए डेटा में मतदान की संख्या अधिक आ रही है अब जनता चुनाव आयोग से सवाल पूछ रही है कि बढ़े हुए मतदान का आंकड़ा कैसे बढ़ा और कहाँ से आया ? यहाँ पर यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि जहाँ-जहाँ पर मतदान का आंकड़ा वास्तविक मतदान संख्या से बड़ा है वहाँ-वहाँ पर भाजपा के प्रत्याशी ही अधिक जीतें हैं। ये तथ्य चुनाव आयोग का भाजपा के साथ मिले होने की ओर संकेत करते हैं।
सपा, कांग्रेस का मिथ्या गौरव: उत्तर प्रदेश में सपा को 37 सीटें जीतकर यह आनंद हो रहा है कि प्रदेश की राजनीति में अब हमारे मुकाबले में कोई दूसरा नहीं है। साथ ही कांग्रेस को भी 6 सीटें जीतकर मिथ्या गौरव का अनुभव हो रहा है कि अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पुन: जीवित हो रही है। इन दोनों दलों की वास्तविक राजनैतिक पृष्ठभूमि चुनाव परिणामों से भिन्न है। देश की जनता अखिलेश की सपा को गुंडा पार्टी मानती है और अधिक संख्या में लोग उसे वोट नहीं करना चाहते परंतु इस चुनाव में देश की जनता अखिलेश की सपा को वोट नहीं कर रही थी वह तो सिर्फ मोदी को हराने के लिए वोट कर रही थी, सामने वाला प्रत्याशी चाहे किसी भी राजनैतिक दल का हो।
इन चुनाव परिणामों से कांग्रेस को भी सबक लेने की जरूरत है और वह यह न समझे कि कांग्रेस को सपा के साथ जाने से फायदा हुआ है बल्कि वास्तविकता के आधार पर कांग्रेस को सपा के साथ जाने से नुकसान हुआ है। अगर कांग्रेस पूरे प्रदेश में अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ती तो कम से कम पूरे प्रदेश में 80 में से 20 सीटें मिलती। कांग्रेस के सपा के साथ जाने से सपा को अधिक फायदा हुआ है जिसके कारण वह 37 सीटें जीतने में सफल रही।
हर चरण में मतदान समाप्त होने के बाद जो प्रतिशत बढ़ाया गया वह 2-3 दिन बाद ज्यादा कैसे हो गया? भाजपा के जीते हुए कुल 240 प्रत्याशियों में 165 प्रत्याशी 200 से 2000 के अंतर से ही जीतें हैं और मतदान प्रतिशत भी इसी अनुपात में बढ़ा है।
200 के अंतर से 7 सीटें
500 के अंतर से 23 सीटें
1000 के अंतर से 49 सीटें और
2000 के अंतर से 66 सीटें।
ये सब आँकड़े चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।
बहुजन समाज पार्टी: बसपा की सुप्रीमो बहन मायावती जी ने चुनाव शुरू होने से पहले ही घोषणा कर दी थी कि बसपा अकेले ही अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन बसपा जिस समाज का वोट लेकर राजनीति में सशक्त बनती है उस समाज के सभी लोग इस फैसले के विपरीत थे। बसपा का वह समाज चाहता था कि बहन जी अकेले चुनाव न लड़कर कांग्रेस के साथ देशव्यापी चुनावी गठबंधन करें। परंतु कांग्रेस के कुछेक ब्राह्मणी संस्कृति के नेताओं और कांग्रेस के नेताओं के अतीत के चरित्र को देखकर बहन जी फैसला अपने समर्थकों की मंशा के अनुरूप निर्णय लेने में विफल रही। राजनीति में अच्छे परिणामों की संभावनाएँ परिस्थितिकी और वोटरों के अंदर की मंशा को भाँपकर उसके अनुरूप फैसला लेने से अधिक लाभ हो सकता है। परंतु बहन जी ने इन सबको नकारते हुए चुनाव में अकेले जाने का फैसला किया जिसका परिणाम सबके सामने ‘शून्य’ है। ऐसा परिणाम देखकर बहुजन समाज का मतदाता बहन जी से अधिक नाराज दिखाई दे रहा है। बहन जी को अपने मतदाताओं की मानसिकता का आंकलन करके अपने मतदाताओं से समय-समय पर विचार-विमर्श करके सही फैसला लेना चाहिए था ताकि चुनाव परिणामों का उनके ऊपर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। बीएसपी को अपने अंदर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को भी उचित स्थान व सम्मान देना चाहिए और समाज के बुद्धिजीवियों को विचार-विमर्श के लिए भी आमंत्रित करना चाहिए। बहुजन समाज बसपा को सिर्फ एक राजनैतिक पार्टी न मानकर उसे अम्बेडकरवादी मिशन समझता है और समाज के जो लोग/संस्थायें अम्बेडकरवादी मिशन में काम कर रहे हैं उन्हें भी बसपा के मिशन में भागीदार बनाया जाये।
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