2023-08-01 10:43:15
बहुजन समाज भारत का सारा शूद्र समाज है उसको जातियों में अलग-अलग करके देखना असंगत है शूद्रों और सभी वर्गों की महिलाओं को इस देश में सदियों से सभी मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया है जो ब्राह्मणी संस्कृति का एक गहरा षड्यंत्र था। बहुजन (शूद्र) समाज में अतीत से आधुनिक काल तक बहुत सारे महापुरुषों ने जन्म लिया और उन सभी ने अपनी यथाशक्ति के अनुसार शूद्र समाज को जागरूक किया। सभी महापुरुषों ने मनुवादी शोषण से मुक्ति के मार्ग भी सुझाये। इन महापुरुषों में कुछेक नाम प्रमुख हैं - भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक, गुरु रविदास, संत कबीरदास, गुरु नानक देव, महात्मा ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, संत गाडगे, रामासामी पेरियार, साहूजी महाराज, नारायण गुरु, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर और मान्यवर साहेब कांशीराम आदि। इन सभी महापुरुषों ने समाज में फैली सामाजिक विषमता, धर्म के नाम पर अत्याचार और उत्पीड़न, झूठ व पाखंड के विरुद्ध जन-जागरण किया। उनका जन-जागरण करने का उद्देश्य था कि शूद्र (बहुजन) समाज जागरूक होकर इन मनुवादी विषमताओं और अत्याचारों के खिलाफ खड़ा होकर स्वंय लड सके। परंतु यह कार्य सभी महापुरुषों की अपेक्षाओं के अनुरूप सामाजिक जमीन पर नहीं उतर पाया। आज का शूद्र समाज, पुरुष व महिलाएँ बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अथक प्रयास व परिश्रम के फलस्वरूप पढ़-लिखकर ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ पाकर व आरक्षण की बदौलत समृद्धता की ओर बढ़ रहे हैं और धनोपार्जन भी कर रहे हैं, लेकिन समाज में ऐसे व्यक्तियों की गणना कुछेक ही है। हमारे सभी महापुरुष (पूर्वज) चाहते थे कि संपूर्ण बहुजन (शूद्र) समाज शिक्षित और समृद्ध बने। मनुवादी पाखंड और प्रपंचों में न फँसे लेकिन विडंबना यह है कि सारा बहुजन समाज अपने आपको महापुरुषों का अनुयायी बताता है लेकिन देखने पर उनके आचरण में महापुरुषों के बताए लक्षण नजर नहीं आते। उदाहरण के तौर पर आज पूरा बहुजन समाज अपने आपको अम्बेडकरवादी कह रहा है, लेकिन अम्बेडकर के सिद्धांतों के विपरीत मनुवादी पाखंडों में शामिल होकर उन्हें भी निरंतरता के साथ आगे बढ़ाने में लगा हुआ है। समाज में देखा जा रहा है कि बहुजन (शूद्र) समाज के अधिसंख्यक लोग तथाकथित पाखंडी बाबाओं की धर्म संसद, कथाओं व सत्संगों में जा रहे हैं अगर ऐसे शूद्र समाज के लोगों से दूसरा कोई जागरूक व्यक्ति हिम्मत करके यह सवाल पूछ लेता है कि क्या आप भी इन मनुवादी पाखंडों में शामिल होकर अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं? तो उससे अटपटा व अस्वाभाविक जवाब मिलता है और वह अपनी आंशिक झेप मिटाने के लिए जवाब देता है कि मैं तो इनमें शामिल नहीं होता, न जाता और न किसी को जाने के लिए कहता। मगर क्या करूँ कि पत्नी व बच्चे मानते ही नहीं, वे कभी-कभी चले जाते हैं। समाज में पति-पत्नी परिवार में एक ही इकाई का हिस्सा होते हैं या यूँ कहें कि परिवार के एक ही सिक्के के दो रूप होते हैं। यह हो सकता है कि पत्नी अपने महापुरुषों की शिक्षाओं से अवगत व जागरूक न हो। परंतु जब वह अपने पति के साथ और उसके घर में आ जाती है तब पति का विशेष कर्तव्य बनता है कि वह पत्नी को भी अपने महापुरुषों की शिक्षाओं से अवगत कराये और उनके बताए हुए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। पत्नी के मस्तिष्क में यह बात भी बैठायी जाये कि परिवार का संपूर्ण विकास महापुरुषों की शिक्षाओं पर चलकर ही संभव है। हमारे पूर्व के महापुरुषों ने समाज में मिथ्या प्रचार नहीं किया और न अपनी कथनी और करनी में फर्क किया। सभी महापुरुषों की पत्नियाँ न शिक्षित थी, न पूर्ण रूप से जागरूक व ज्ञानवान थी। परंतु जब वे महापुरुषों की पत्नियाँ बनी तब उन्होंने अपने आपको पति के अनुरूप ढालकर जागरूक बनाया और पति के साथ कदम से कदम मिलाकर सामाजिक संघर्ष में पूरा साथ दिया। कहावत भी है कि किसी भी मनुष्य के श्रेष्ठ बनने में किसी न किसी एक महिला का हाथ अवश्य होता है। संपूर्ण समाज के सामने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का उदाहरण मौजूद है, उनकी पत्नी माता रमाबाई ने बाबा साहेब को विश्व में ‘ज्ञान का प्रतीक’ व ‘बहुजन समाज का उद्धारक’ बनाने में जितना योगदान दिया वह हरेक के लिए अनुकरणीय व स्मरणीय है। बाबा साहेब जब इंग्लैंड और अमेरिका में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब वे बड़ी आर्थिक तंगी का सामना कर रहे थे। माता रमाबाई तब बम्बई की सड़कों पर पशुओं का गोबर इक्कट्ठा करके और उसके उपले बनाकर बेच रही थी और जो उससे थोड़ी बहुत आमदनी होती थी उसको वे बाबा साहेब को भेज रहीं थीं। यह अपने आप में किसी पत्नी का अनोखा, महानतम व उत्कृष्ट उदाहरण है। दूसरा उदाहरण बहुजन समाज के सामने महात्मा ज्योतिबा फुले का है जिन्होंने अपनी अशिक्षित पत्नी सावित्रीबाई फुले को अपने परिवार व समाज की संस्कृति के विरुद्ध जाकर पढ़ाने का संकल्प लिया और अपनी पत्नी को पढ़ा-लिखाकर शिक्षिका भी बनाया जो भारत की प्रथम महिला शिक्षिका कहलाई जाती हैं। महात्मा ज्योतिबा फुले को अपने इस प्रयास को पूरा करने के लिए अपने पिता का घर छोड़ना पड़ा था चूंकि ब्राह्मणी व्यवस्था के अनुसार लड़कियों को पढ़ाना धर्म विरुद्ध माना जाता था। महात्मा ज्योतिराव के पिता गोबिंदराव फुले ने उनके सामने शर्त रखी थी कि अगर तू अपनी पत्नी को पढ़ाएगा तो मेरा घर छोड़ना पड़ेगा। महात्मा ज्योतिबा फुले ने बाप का घर छोड़ना मंजूर किया लेकिन पत्नी को पढ़ाना जारी रखा। हम सभी को ये सोचना चाहिए कि बेरोजगारी की तरुण अवस्था में बाप का घर छोड़ना कितना कष्टदायी होता है। ये दोनों उदाहरण बहुजन समाज के उन कमजोर लोगों के लिए हैं जो यह कहकर अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं कि मैं तो पक्का अम्बेडकरवादी हूँ मगर पत्नी मेरी बात नहीं मानती। इस तरह का कथन बिल्कुल सत्यता से हटकर अपने आपको बचाने का माध्यम है। ऐसी व्यवस्था में कहीं न कहीं लूके-छिपे पति की मानसिकता भी सम्मिलित रहती है। वर्तमान समय में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनकी शादी अशिक्षित पत्नी से हुई लेकिन पतियों ने पत्नी को शिक्षित व सक्षम बनाने के लिए आवश्यक शिक्षा दिलाई और वर्तमान समाज के अनुरूप जागरूक करके अच्छे-अच्छे सरकारी पदों पर भी स्थापित किया।
समाज के वर्तमान हालत को देखते हुए सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि पति-पत्नी दोनों महापुरुषों के ज्ञान के अनुरूप जागरूक बने और अपने परिवार का उसी के अनुरूप विकास करें। सबसे बड़ी समस्या शूद्र समाज के सामने यह है कि वह अपने महापुरुषों की शिक्षाओं पर चलने का प्रयास नहीं करता बल्कि ब्राह्मणी संस्कृति के पाखंडी तथाकथित बाबाओं की कथाओं में शामिल होता है, वहाँ दान भी देता है और वहाँ जाकर अपनी तर्क बुद्धि को ध्वस्त करता है। अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में तथाकथित पाखंडी बाबा बागेश्वर धाम द्वारा हनुमान कथा का आयोजन कराया गया जिसमें लाखों लोगों की भीड़ जुटी। देखने से ऐसा लगा कि इस भीड़ का 80 से 85 प्रतिशत भाग शूद्र समाज के नर-नारियों का ही था। जब शूद्र समाज इस कदर इन तथाकथित बाबाओं के समागम में शामिल होगा तो पूरे शूद्र (बहुजन) समाज का गर्त में जाना निश्चित है। अगर आप अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का और समाज का भविष्य समृद्ध और उज्ज्वल देखना चाहते हैं तो हिंदुत्व के प्रपंचों व पाखण्डों का तुरंत त्याग करो और अपने घरों में मौजूद काल्पनिक देवी-देवताओं व भगवानों को घर से बाहर फेंको। इन सभी काल्पनिक देवी-देवताओं के बारे में वैज्ञानिक सोच के साथ स्वयं पढ़ों और अपनी बुद्धि बल से समझों। भगवान बुद्ध के उपदेश के अनुसार अपना दीपक स्वयं बनो। आप सबको इसका ज्ञान होना चाहिए कि ये सभी काल्पनिक देवी-देवता या भगवान आपके पूर्वजों के हत्यारे हैं जिनकी ये आपसे ही स्तुति, वंदना व पूजा करा रहे हैं और आपका धन लूट रहे हैं। यह सब अज्ञानता के कारण समाज में हो रहा है इसलिए सबसे अनुरोध है सोचो, समझो और अपने व समाज हित में जागो और अपने दिमाग की बत्ती जलाओ।
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |