2022-11-24 12:29:02
भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के मूल का इतिहास बुद्धकालीन संघों में मिलता है। लेकिन बुद्ध काल के उत्तरार्द्ध में पुष्पमित्र शुंग की मनुवादी क्रांति के बाद प्रजातांत्रिक व्यवस्था का इतिहास देश से समाप्त हो गया और देश में राजशाही व्यवस्था कायम हो गई। जिसमें राजा बनाने में जनता का कोई मत नहीं होता था। राजा रानी के पेट से ही पैदा होते थे। देश में यही राजशाही व्यवस्था अंग्रेजो के शासन के समय तक कायम रही। देश 755 वर्षों तक गुलाम रहा और उसमें ब्राह्मणी संस्कृति का वर्चस्व सर्वोपरि रहा। बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) को ब्राह्मणी संस्कृति ने शक्तिहीन व अधिकार विहान बनाया। अछूत समुदायों के साथ अमानवीय व्यवस्थायें कायम की गई। अछूत समुदायों के साथ सार्वजनिक रास्तों से चलना और सार्वजनिक स्थान (कुंओं, तालाब आदि) का उपयोग प्रतिबंधित किया गया। अछूतों के साथ अमानवीय व्यवहार की पराकाष्ठा को स्थापित किया गया। जैसा व्यवहार ब्राह्मणी संस्कृति के मनुवादियों ने अछूत जातियों के साथ किया वैसा उदाहरण दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। परिस्थितिकी साक्ष्यों से यही सिद्ध होता है कि अछूत वर्ग की जातियां हिन्दू कहे जाने वाले समुदाय का अभिन्न अंग नहीं थीं। वे भारत के मूल निवासी शासक ही थे जिनके शासन को अतीत में छल-कपट से आर्य संस्कृति के यूरेशिया से आए आर्यों (ब्राह्मण) ने हड़प लिया था। यहाँ के मूल निवासियों के राज्यों को ध्वस्त करके अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। जिसका संज्ञान बहुजन समाज में जन्में अनेकों महापुरुषों ने लिया परंतु सामाजिक व्यवस्थाओं के चलते कोई सही निराकरण नहीं कर पाये। अंग्रेजों के शासन काल में शूद्र समाज में जन्में महात्मा ज्योतिबा फुले ने सबसे पहले इस अमानवीय व्यवस्था का संज्ञान लेकर बहुजनों को बताया और चेताया कि इस समस्या का मूल अशिक्षा है। जिसको महात्मा ज्योतिबा फुले ने कहा कि-
‘विद्या बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी
नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया
वित्त बिना शूद्र गये, इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किये॥’’
महात्मा ज्योतिबा फुले के बाद अछूत जातियों में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का प्रादुर्भाव हुआ उन्होंने इस ब्राह्मणी व्यवस्था का सूक्ष्म स्तर पर अध्ययन कर संज्ञान लिया। देश में अछूत जातियों के प्रताड़न और अमानवीय अत्याचारों को समाप्त करने के लिए 23 सितम्बर 1917 को वडोदरा के पार्क में आठ घंटे बैठकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने संकल्प लिया कि ‘‘मैं अपना पूरा जीवन इस वंचित और उपेक्षित समुदाय के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में लगाऊंगा, मैं उन्हें उनके मानवाधिकार दिलाऊँगा।’’ बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने संकल्प के अनुसार उच्च शिक्षा प्राप्त करके भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया का श्रेष्ठतम विद्वान बने और उसी विद्वता को हथियार बनाकर ब्राह्मणी संस्कृति पर मानवीय प्रहार किया। जिसके आधार पर उस समय के अंग्रेजी शासन ने देश में अछूतों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों का संज्ञान लिया। 27 जनवरी 1919 को अम्बेडकर ने ‘‘साउथ बोरो कमेटी’’ के सामने वयस्क मताधिकार की बात कही थी। भारतीयों को मताधिकार कैसे दिया जाए इसके लिए सन 1928 में साइमन कमीशन भारत में जायजा लेना आया। साइमन कमीशन के समक्ष बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने प्रत्येक वयस्क नागरिक को मताधिकार की बात रखी। इस प्रतिवेदन में कहा गया कि भारत के हर 21 साल के वयस्क नागरिक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष को मताधिकार देने का अधिकार दिया जाये।
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सन 1931, 1932 और 1933 में हुए पहले, दूसरे और तीसरे गोलमेज सम्मलेन में लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार होना चाहिए। जब गोलमेज सम्मेलनों में अम्बेडकर सभी के लिए वयस्क मताधिकार की बात करते थे तो भारत के अन्य नेता इसे चरणबद्ध तरीके से, शिक्षा के आधार पर या सरकार को राजस्व भरने के आधार पर देने की बात करते थे।
अम्बेडकर यह अच्छी तरह से जानते थे कि यदि देश में पिछड़ों और दलितों को मताधिकार देने में देरी की जाएगी या उस पर शर्तें लगाई जाएगी तो सत्ता में भागीदारी सवर्ण जाति और धनाढ्य लोगों तक ही सीमित रह जाएगी। गोलमेज सम्मलेन में अम्बेडकर ने कहा था कि मताधिकार कृपा दृष्टि के रूप में नहीं अधिकार के रूप में दिया जाना चाहिए। गोलमेज सम्मेलनों में जब निरक्षर लोगों को मताधिकार कैसे दिया जाए की बात हुई तो अम्बेडकर ने सवाल उठाया कि निरक्षरता के लिए जिÞम्मेदार कौन? यदि निरक्षरता के लिए शासन जिÞम्मेदार है तो मतदान के लिए साक्षरता की शर्त लगाना लाखों-करोड़ों लोगों को मतदान अधिकार से वंचित रखने जैसा है। मान लिया जाए कि सरकार निरक्षरों को साक्षर बनाने का काम करेगी लेकिन इसकी गारंटी क्या है?
शिक्षा से वंचित रखना
लोगों को शिक्षा से वंचित रखना अन्याय करने जैसा है और उस आधार पर उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित रखना उनके जख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। अम्बेडकर ने कहा कि ‘‘अपनी निरक्षरता को दूर करने के लिए वंचितों के पास जो सबसे बड़ा हथियार साबित होगा, वह होगा मताधिकार।’’ उनका तर्क था कि मताधिकार बुद्धिमता का सवाल जरूर हो सकता है साक्षरता का नहीं। अम्बेडकर ने कहा था ‘‘जो साथी यह कहते हैं कि भारत की जनता मताधिकार के लिए पात्र नहीं है? उन्हें स्वराज्य या आजादी की माँग छोड़कर गोलमेज सम्मलेन से बाहर चले जाना चाहिए।’’ 22 दिसंबर 1930 के गोलमेज सम्मलेन की उप समिति की बैठक में अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि बैठक में सिर्फ दो सवालों पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई सरकार जनता के लिए कानून बनाती है और यह चाहती है कि जनता उसका पालन करे तो ऐसी सरकार के चयन में जनता की भागीदारी होना बहुत जरूरी है। गोलमेज सम्मेलनों में अम्बेडकर के इन्हीं तर्कों के चलते भारतीय नेताओं व ब्रिटिश अधिकारियों के तर्क खारिज हो गए। अधिकाँश ब्रिटिश शासक अम्बेडकर की दलीलों से सहमत हुए और अंग्रेज सरकार ने भारतीय कानून 1935 पारित किया उसमें मताधिकार का भी उल्लेख किया। 1935 के इस कानून का बड़ा हिस्सा भारतीय संविधान में शामिल किया गया। 26 जनवरी 1950 को जब हमारा संविधान लागू हुआ तो हर वयस्क भारतीय नागरिक को मताधिकार का संवैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ।
भारत में संविधान प्रक्रिया शुरू हुई तो गांधी व उनके समर्थक अछूतों को मताधिकार देने के पक्षधर नहीं थे। गांधी के समर्थकों जिनमें बाल गंगाधर तिलक, सरदार बल्लभभाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय, हिन्दू महासभा के सावरकर व अन्य कई नेता, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हेडगवार, आदि का मत था कि वोट देने का अधिकार केवल पढ़े-लिखे, टैक्स देने वाले, संपत्ति रखने वाले लोगों को ही दिया जाये। दलित और पिछड़ों को मताधिकार देने का कोई औचित्य नहीं है। सरदार पटेल और बाल गंगाधार तिलक आदि का मत था कि पिछड़े वर्ग की जातियों से संबंधित कुनबी लोग क्या संसद व विधान सभाओं में हल चलाएंगे? ब्राह्मणी संस्कृति से ओत-प्रोत ऐसे ही अग्रणी नेता बहुजन समाज को वोट का अधिकार देने के पक्षधर नहीं थे वे इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे।
भारतीय संविधान के अनुसार समानता के आधार पर आज सभी अपना मतदान करने को स्वतंत्र है। इस अमूल्य अधिकार के लिए सभी नागरिकों को बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का कर्तज्ञ होना चाहिए। मताधिकार के आधार पर जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है जो देश की विधायिका में शामिल होकर जनता के अधिकारों व लोकहित से संबंधित कार्यों में आपका प्रतिनिधित्व करते हैं। इसीलिए जनता अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए मतदान से पहले सोचे, समझे, अपनी बुद्धि से सही उम्मीदवार का आंकलन करके मतदान करने का फैसला करे।
किसी भहकावे, प्रलोभन में आकर उम्मीदवार को अपना मत देने का फैसला न करे।
किसी धार्मिक उन्माद और धार्मिक भाव में आकर किसी के बताये हुए या किसी के प्रभाव में आकर अपना वोट न दे।
खुद सही-गलत का फैसला करके स्वतंत्र रूप से अपना मतदान करे।
फ्री रेवड़ियों के प्रलोभन में आकर किसी को अपना वोट न दें।
मतदान जरूर करे किसी के कहने या प्रभाव में आकर ‘नोटा’ का बटन न दबाये।
अगर जनता ऐसा करती है तो जनता अपने अमूल्य मतदान के अधिकार का कत्ल करती है।
अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी सोच मतदान को लेकर संकीर्ण है और इससे आपको ही नहीं बल्कि आपसे जुड़े समाज का घातक नुकसान होता है चूंकि जनता के मतदान से प्रतिनिधि चुना जाता है और वह एक-दो दिन के लिए नहीं बल्कि पाँच साल के लिए चुना जाता है और पाँच साल के लंबे समय तक आपके जीवन के कार्यकलापों से जुड़े कार्यों में जो आपका प्रतिनिधित्व करता है और आपके मतदान से ही आपका हित-अहित तय होता है।
दिल्ली एमसीडी और प्रदेशों की विधान सभाओं में चुनाव का समय चल रहा है विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रत्याशी मैदान में है हर कोई आपका मत पाने के लिए अनाप-सनाप वायदे कर रहा है। इन अनाप-सनाप वायदों पर गोर करें और बुद्धि से आंकलन करे कि पिछले चुनाव में किये गए वायदे क्या वायदा करने वाले उम्मीदवारों ने पूरे किये है? अगर किये है तो उनका क्या प्रभाव पड़ा है, जनता को उनके किये गए वायदों से कितना लाभ हुआ है? और अगर वायदें पूरे नहीं हुए है तो अब उन पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? ये सभी बातें सोचकर-समझकर मतदान किसको करना है इसका फैसला स्वयं करें। मतदान के समय किस दल का प्रत्याशी जनता से जुड़े विकास को महत्व देकर उसको अग्रसर बना सकता है इसका आंकलन करे और समझे कि क्या वह इसे करने में सक्षम होगा? अगर आपके आंकलन में सक्षम लगता है तो उसे अपना वोट दें, अन्यथा नहीं।
शिक्षा और रोजगार हर नागरिक के लिए उसके जीवन से जुड़े अहम मुदÞदा है इसी पर हर नागरिक का संतुलित विकास निर्भर करता है। आपके आंकलन के अनुसार शिक्षा और रोजगार को जो प्रत्याशी व्यवहारिक रूप में सक्षम है उसे ही अपना वोट देने का मत बनाये। जो प्रत्याशी शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर प्रचंड प्रचार-प्रसार कर रहे हैं उनके द्वारा अतीत में किये गए इन मुद्दों पर कार्यों का आंकलन कर समीक्षा करे अगर वे इन मुद्दों पर खरे उतर रहे है तो उसी को अपना वोट दें, अन्यथा नहीं?
साथ ही वोट देने से पहले इस बात का भी आंकलन करे कि वोट माँगने वाले प्रत्याशी की सोच और अतीत कैसा रहा है? क्या उसकी सोच और समझ आम जनता के लिए व्यवहारिक है? तथा समाज के सभी घटकों, महिलाओं व दलितों के प्रति कैसी रही है? उसका भी गंभीरता के साथ आंकलन करे। अगर किसी भी राजनैतिक दल का प्रत्याशी जाति, धर्म, वर्ण के आधार पर आपका वोट माँगता है तो उसको अपना वोट बिल्कुल भी न दें। इससे समाज व देश का अहित होता है। ऐसा फैसला करने में आपकी सोच और समझ न्यायिक होनी चाहिए जातिवादी या मनुवादी नहीं।
वर्तमान में सत्ताधारी पार्टी के द्वारा किये गए नए-नए वायदों की गंभीरता से समीक्षा करे, विचार करे कि सत्ताधारी पार्टी ने अपने सत्ताकाल में कितने वायदे पहले पूरे किये है? अगर नहीं किये है तो उन पर भरोसा बिल्कुल न करे और न उनको अपना अमूल्य वोट दे। अगर राजनीतिक दल या राजनैतिक प्रत्याशी अतीत में जनता से किये गए वायदे पूरे नहीं कर सका है तो उस पर अब भी विश्वास न करे। अतीत से लेकर अब तक संघी मानसिकता के राजनैतिक दलों का इतिहास रहा है कि वो समाज को बाँटकर, विषमता फैलाकर सत्ता हासिल करते रहे हैं जिसके कारण जनता में नफरत उपजी है और जनहित के कार्य नहीं हो सके है। बल्कि जनता को उन्मादी व दंगाई बनाने का ही काम किया है।
भाजपा और आप संघी मानसिकता से पूरी तरह ओत-प्रोत है दोनों की राजनैतिक विचारधारा समाज को जातीय व धर्म के आधार पर जनता का वोट पाकर सत्ता में पिछले करीब आठ वर्षों से है। जिसके आधार पर समाज में विषमता और नफरत का वर्चस्व है। झूठे वायदों की जनता के सामने बौछार हो रही है। अतीत में किये गए वायदों पर इनमें से किसी भी दल न अभी तक कोई बात नहीं की है और न ही कर रहे है। जनता को अपने द्वारा किये गए वायदों का न आजतक कोई हिसाब-किताब दिया है। इस मुद्दे पर जनता स्वयं सोचे कि संघी मानसिकता की संरचना से पैदा हुए नेताओं ने कभी भी लोकहित के कार्य नहीं किये। चूंकि हर मनुष्य का भविष्य अतीत के इतिहास पर ही वर्तमान की बुनियाद का निर्माण करता है। मोदी और केजरीवाल संघी मानसिकता की अवधारणा को ही जनता में प्रतिपादित करने के लिए कार्य करते हैं। हर वक्त छल-कपट, धोखाधड़ी, हिन्दु-मुसलमान, बहकाने, बरगलाने की नीतियों को जनता में परोसते है, मुफ्त की रेवड़ियों का आश्वासन देकर जनता को ठगना चाहते हैं। इससे जनता को विशेष रूप से महिलाओं और दलितों को सावधान रहना चाहिए और मोदी और केजरीवाल के झूठे जुमलों नहीं फँसना चाहिए।
शराब व अन्य खाद्य सामग्री: आमतौर पर चुनावी समय में देखा गया है कि दलित बस्तियों, कामगारों के इलाकों में ही शराब आदि का अधिक वितरण किया जाता है। जबकि सवर्ण समाज की बस्तियों में कोई शराब व खाद्य सामग्री नहीं बांटी जाती है। इससे साफ नजर आता है कि संघी मानसिकता के नेता बहुजन समाज की बस्तियों में शराब आदि बांटकर उन्हें राजनैतिक रूप से अशक्त बनाने का काम कर रहें हैं और उन्हें राजनैतिक रूप से अक्षम और सोचविहीन बना रहे हैं। इस तरह के कार्याें से बहुजन समाज व कामगार जातियों को सावधान रहकर इस तरह के अमार्यादित आचरण से दूर रहकर उसमें नहीं फंसना चाहिए।
बहुजन स्वाभिमान संघ आपसे यही अपील करता है कि आप अपना कीमती वोट लोकहित, समाजहित और देशहित को ध्यान में रखकर ही करने का फैसला लेंगे।
चेतन सिंह, Delhi | |
बाबा साहेब के हम ऋणी है कि जो इतनी लड़ाई लड़ाई लड़ने के बाद हमें यह अधिकार मिला, लेकिन हम इसका सही इस्तेमाल नहीं कर, दलालों को सत्ता की कुर्सी पर बैठा रहे हैं। हमें वोट का सही निर्णय लेना होगा। दलालों की पहचान करनी होगी। | |
2022-11-25 05:53:16 | |
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