2023-09-06 10:16:18
भारत में हिन्दू-मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध तथा पारसी आदि सभी धर्माें को मानने वाले लोग रहते हैं। उन सभी को अपने-अपने धर्मों के अनुसार पूजा-पाठ व आचरण करने की स्वतंत्रता है। परंतु एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के अनुसार पूजा-पाठ व आचरण करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। सभी धर्माें के अपने-अपने रीति-रिवाज तथा त्योहार आदि है, सभी के अपने-अपने धार्मिक गं्रथ हैं। उदारणार्थ हिन्दुओं का पवित्र गं्रथ भागवत गीता, मुस्लिमों का कुरान शरीफ, ईसाईयों की बाईबल, सिखों का गुरुगं्रथ साहब व बोद्धों का त्रिपिटक, भगवान बुद्ध और उनका धम्म आदि हैं।
सभी लोग अपने-अपने धर्म ग्रंथों के प्रति निष्ठा तथा अटूट श्रृद्धा रखते हैं। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि भागवत गीता के प्रति अन्य धर्माें के लोग भी उतनी ही श्रृद्धा रखते हो जितनी हिन्दू रखते हों। कुरान शरीफ के प्रति जितन श्रृद्धा मुस्लिम रखते हैं जरूरी नहीं हैं कि उतनी ही श्रृद्धा अन्य धर्मों के लोग भी रखते हों। इसी प्रकार से सभी अन्य सभी धर्म-ग्रंथों पर भी यही बात लागू होती है।
परन्तु देश में एक ऐसा महाग्रंथ भी है जिस पर भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो, चाहे किसी भी जाति का हो, किसी भी प्रान्त का रहने वाला हो, स्त्री हो अथवा पुरुष हो, काला हो या गोरा हो उस महाग्रंथ के प्रति निष्ठा व श्रृद्धा रखता है। वह महागं्रथ है ‘भारत का संविधान’
भारत का राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायाधीश आदि चाहे किसी भी धर्म के मानने वाले हो, अपने पद पर आसीन होने से पहले भारत के संविधान की रक्षा करने की शपथ लेते हैं।
यदि कोई व्यक्ति उस महाग्रंथ अर्थात भारत के संविधान का अपमान करता है तो वह भारत के 140 करोड़ लोगों का अपमान करता है। वह भारत देश का अपमान करता है। यह राष्ट्रद्रोह है। राष्ट्रद्रोही को उसके ककृत्य की सजा मिलनी ही चाहिए। चाहे वह कितना ही बड़ा व्यक्ति क्यों न हो वह भारत देश से बड़ा नहीं हो सकता है।
इसलिए प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समीति के चेयरमैन को राष्ट्र-द्रोह के मामले में सजा मिलनी ही चाहिए। क्योंकि देश का सारा शूद्र वर्ग जो बहुसंख्यक है वह ऐसे व्यक्तियों को कठोर सजा देने की मांग करता है। क्योंकि मोदी का यह सलाहकार मोदी के इशारे पर संविधान बदलने की बात कहकर भारत में रहने का नैतिक अधिकारी भी खो चुका है। पिछले कई वर्षों से मोदी-संघि मानसिकता के लोग मनुवादियों के इशारे पर ऐसे असंवैधानिक कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं और सरकार उनपर कोई कठोर कदम नहीं उठा रही है जिससे ऐसे लोगों के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। सरकार शायद यह समझ रही है कि ऐसे लोगों के द्वारा हम मनुवादी नीतियों को जनता के ऊपर थोप सकते हैं।
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