2024-09-14 14:35:38
जब देश में दलित सियासत की गूंज है और बीजेपी, कांग्रेस, सपा सहित राज्यों में भी तमाम बड़े राजनीतिक दल दलित समुदाय का साथ चाहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि सत्ता तक पहुंचने के लिए इस समुदाय का साथ और समर्थन हासिल करना कितना जरूरी है। ऐसे में सवाल यह है कि आजादी के 75 साल बाद दलित समुदाय से कितने नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं? भारत में अब तक दलित समुदाय से आठ मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें से तीन बिहार से और एक-एक आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र से हैं। आईए जानते हैं इनके बारे में।
1. दामोदरम संजीवय्या, आंध्र प्रदेश
भारत में दलित समुदाय के पहले नेता जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, उनका नाम दामोदरम संजीवय्या है। वह 39 साल की छोटी उम्र में आंध्र प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त वह भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री भी थे। दामोदरम संजीवय्या किसान मजदूर के बेटे थे। उन्होंने आजादी के आंदोलन में भाग लिया था और इसके बाद वह कांग्रेस से जुड़ गए।
1956 में वह आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तीसरे अध्यक्ष बने और 1961 तक इस पद पर रहे। 1957 के आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 301 में से 187 सीटें जीती और नीलम संजीवा रेड्डी मुख्यमंत्री बने। लेकिन गुटबाजी होने की वजह से संजीवय्या को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई।
1964 में संजीवय्या राज्यसभा गए और उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में श्रम और रोजगार मंत्री के रूप में काम किया। 1972 में मात्र 51 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया।
2. भोला पासवान शास्त्री, बिहार
भोला पासवान शास्त्री का जन्म 1914 में बिहार के पूर्णिया में एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और 1968 में जब वह बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री बने तो यह बड़ी घटना थी। विद्वता के कारण ही उन्हें शास्त्री कहा जाता था। वह 1968 से 1972 तक तीन बार मुख्यमंत्री रहे।
1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो बिहार में चल रही हरिहर सिंह की कांग्रेस सरकार गिर गई और शास्त्री ने कांग्रेस (आॅगेर्नाइजेशन) का हाथ पकड़ लिया। तब वह 13 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने लेकिन उनकी सरकार भी नहीं चल सकी। जून 1971 में वह इंदिरा गांधी कांग्रेस में शामिल हो गए और 7 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने। भोला पासवान शास्त्री ने 1972 से 1982 तक राज्यसभा में भी बिहार का प्रतिनिधित्व किया और वह 1978 में विपक्ष के नेता भी रहे। 1984 में उनका निधन हो गया।
3. रामसुंदर दास, बिहार
रामसुंदर दास का जन्म 1921 में बिहार में हुआ था। उन्होंने कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में पढ़ाई की थी और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। इसके बाद वह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ जुड़ गए और 1957 का लोकसभा चुनाव इसी पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से लड़ा।
1977 के विधानसभा चुनाव में दास सोनपुर से विधायक चुने गए लेकिन उस दौरान मुख्यमंत्री कपूर्री ठाकुर के मुंगेरीलाल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के फैसले की वजह से पार्टी में लड़ाई शुरू हो गई। मुंगेरीलाल आयोग की रिपोर्ट में सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की सिफारिश की गई थी।
जनता पार्टी के ऊंची जाति के सदस्यों ने कपूर्री ठाकुर को सीएम की कुर्सी से हटाने की कोशिश की। इस दौरान दलित विधायकों को अपने साथ लाने के लिए दास को मुख्यमंत्री बनाया गया। ठाकुर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और 1979 में दास मुख्यमंत्री बने। 2015 में उनका निधन हो गया।
4. जगन्नाथ पहाड़िया, राजस्थान
राजस्थान में दलित समुदाय से सिर्फ जगन्नाथ पहाड़िया ही मुख्यमंत्री बने हैं। वह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वक्त से कांग्रेस में थे और उन्हें नेहरू-गांधी परिवार का करीबी माना जाता था। पहाड़िया राजस्थान के वरिष्ठ नेता थे। वह 1957 से 1984 के बीच चार बार लोकसभा के सांसद रहे थे और राज्यसभा भी पहुंचे थे। वह चार बार विधायक भी बने थे।
पहाड़िया आपातकाल के दौरान संजय गांधी के बेहद करीबी बन गए थे। इसके बाद संजय गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था जबकि राजस्थान में कई नेता इसके खिलाफ थे। 1980 में संजय गांधी की मौत के बाद पहाड़िया को पार्टी में काफी विरोध का सामना करना पड़ा। जगन्नाथ पहाड़िया भरतपुर के एक गांव में पैदा हुए थे। उन्होंने केंद्र में कांग्रेस की कई सरकारों में बतौर मंत्री काम किया था। वह 1989 से 90 तक बिहार के और 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल रहे थे। 2021 में कोरोना की वजह से उनका निधन हो गया था।
5. मायावती, उत्तर प्रदेश
मायावती दलित समुदाय से आने वाली ऐसी मुख्यमंत्री हैं जो सबसे ज्यादा जाना-पहचाना चेहरा हैं। मायावती भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। मायावती नई दिल्ली में एक निम्न-मध्य वर्ग परिवार में पैदा हुई थीं। उन्होंने कालिंदी कॉलेज और मेरठ यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है और दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी हासिल की है।
मायावती को राजनीति में बसपा के संस्थापक कांशीराम ने आगे बढ़ाया। वह पहली बार 1995 में, दूसरी बार 1997 में, तीसरी बार 2002 में और चौथी बार 2007 में मुख्यमंत्री बनीं।
2007 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को बड़ी जीत मिली और मायावती पहली बार अकेले दम पर मुख्यमंत्री बनीं जबकि इससे पहले वह सपा और बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंची थीं।
6. सुशील कुमार शिंदे, महाराष्ट्र
सुशील कुमार शिंदे महाराष्ट्र पुलिस में कांस्टेबल थे और 1970 के शुरूआती सालों में शरद पवार उन्हें राजनीति में लेकर आए। शरद पवार उस वक्त कांग्रेस में थे। 2003 में जब महाराष्ट्र कांग्रेस में गुटबाजी वाले हालात बने और तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की स्थिति कमजोर हुई तो सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए शिंदे को चुना।
शिंदे महाराष्ट्र के पहले दलित मुख्यमंत्री बने। महाराष्ट्र में दलित मुख्यमंत्री का होना इसलिए भी बड़ी बात थी क्योंकि इस राज्य की राजनीति में मराठा समुदाय ताकतवर है। 2004 के विधानसभा चुनाव के बाद शिंदे की जगह फिर से देशमुख को मुख्यमंत्री बना दिया गया।
गृह मंत्री भी रहे शिंदे
महाराष्ट्र में वित्त मंत्री रहते हुए शिंदे ने रिकॉर्ड नौ बार बजट प्रस्तुत किया। वह 2006 से 2012 के बीच भारत सरकार में ऊर्जा जैसे बड़े मंत्रालय के मंत्री रहे और 2012 से 2014 के बीच उन्होंने केंद्र सरकार में गृह मंत्रालय भी संभाला।
7. जीतन राम मांझी, बिहार
जीतन राम मांझी गया में एक मजदूर परिवार में पैदा हुए थे और 1980 में राजनीति में आए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जेडीयू की करारी हार हुई तो नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन 10 महीने बाद ही जेडीयू ने उनसे मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के लिए कहा जिससे नीतीश कुमार फिर से राज्य की कमान संभाल सकें लेकिन मांझी ने इस्तीफा देने से मना कर दिया।
आखिरकार उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन उन्हें जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद मांझी ने अपनी पार्टी बनाई जिसका नाम हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) रखा। वर्तमान में वह एनडीए गठबंधन में शामिल हैं और भारत सरकार में मंत्री हैं।
8. चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब
चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। 2021 में कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह पर चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में चन्नी दो सीटों से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह पर उन्हें हार मिली और कांग्रेस भी सत्ता से बाहर हो गई।
चरणजीत सिंह चन्नी ने खरड़ नगर पालिका परिषद में वार्ड का चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की थी और 2002 में वह खरड़ नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष बने थे। 2015 से 2016 के बीच चन्नी पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे और अमरिंदर सिंह की सरकार में 2017 से 2021 तक मंत्री भी रहे। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जालंधर की सीट से चुनाव जीता था।
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