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देश की पृष्ठभूमि के लिए आवश्यक है ‘विरासत टैक्स’

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2024-04-27 09:22:18

देश में सदियों से मनुवादी व्यवस्था है ब्राह्मणी-सामाजिक व्यवस्था के तहत भारत का पूरा समाज चार वर्णों और 6743 जातियों में विभाजित है। ब्राह्मणी व्यवस्था के तहत ये चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र हंै। पहले तीनों वर्णों की आबादी की जनसंख्या 10-12 प्रतिशत के आसपास है, और चौथे शूद्र वर्ण की जनसंख्या 85-90 प्रतिशत है। शूद्र वर्ण देश में बहुसंख्यक होने के बाद भी संपत्ति में वह सबसे निचले स्तर पर है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था के आधार पर जिस समाज की जनसंख्या अधिक होती है उसी वर्ण का शासन होना चाहिए। लेकिन देश में ब्राह्मणी वर्चस्व और पाखंड की बहुलता के चलते अधिसंख्यक समाज सत्ता से दूर रहते आया है। और जिस समाज की जनसंख्या 10-12 प्रतिशत के आसपास है वे निरंतरता के साथ सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होते आ रहे हैं। इसका मूल कारण है कि यहाँ के कुछेक शूद्र वर्ण के लोग ब्राह्मणी संस्कृति से संक्रमित हैं। मोदी का झूठ आधारित प्रचार चरम पर चल रहा है वे हर रोज दर्जनों झूठ बोलकर जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं।

सैम पित्रौदा ने 24 अप्रैल 2024 को उदाहरण के तौर पर जनता को बताया था कि अमेरिका में ‘इन हैरिटेन्स’ टैक्स (विरासत कर) की व्यवस्था है। इसका मतलब है कि अगर किसी के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है तो मरने के बाद बच्चों को सिर्फ 45 प्रतिशत संपत्ति ही मिलेगी और बाकी 55 प्रतिशत संपत्ति सरकार ले लेगी। इस व्यवस्था के द्वारा मनुष्य जो संपत्ति अपने जीवन में एकत्र करेगा उसका 55 प्रतिशत हिस्सा उसके संसार से जाने के बाद सरकार के पास चला जाएगा। सैम पित्रौदा ने यह भी कहा था कि यह प्रावधान मेरी नजर में अच्छा है परंतु कुछ ऐसे मुद्दे हैं कि भारत में आप ऐसा नहीं कर सकते। ऐसे मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता होनी चाहिए लेकिन मोदी ने अपनी संघी फितरत के अनुसार छत्तीसगढ़ के सरगुजा की रैली में इसके आधार की मंशा को पलटते हुए कहा कि जब तक आप जीवित रहेंगे, तब तक कांग्रेस आपको ज्यादा टैक्स से मारेगी और जब आप जीवित नहीं रहेंगे तब आप पर ‘विरासत टैक्स’ लाद देगी। सैम पित्रौदा ने मोदी के झूठ पर अपनी सफाई देते हुए ‘एक्स’ पर लिखा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है, मोदी ने मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया, मैंने कहीं नहीं कहा कि आपकी 55 प्रतिशत संपत्ति छीन ली जाएगी। बीजेपी और उसका मीडिया इतना घबराया हुआ क्यों है? उन्होंने आगे कहा कि मैंने अपनी बातचीत में सिर्फ अमेरिका के विरासत टैक्स का उदाहरण अमेरिका के लिए ही दिया था। ऐसा करके मैंने कौन सा अपराध किया है, मैंने तो सिर्फ तथ्य बताएँ हैं। साथ में मैंने ये भी कहा था कि ये ऐसे मुद्दे है जिन पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है। मेरे बयान से कांग्रेस पार्टी या किसी अन्य पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है।

देश के लोगों को जानकारी होनी चाहिए कि अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, और फ्रांस समेत कई देशों में विरासत टैक्स लागू है। भारत में कभी ‘एस्टेट ड्यूटी एक्ट’ 1953 लागू था। इसके तहत विरासत में मिली सम्पति के कुल मूल्य का 85 प्रतिशत तक ड्यूटी देनी पड़ती थी। लेकिन 1985 में इसे हटा दिया गया अब देश में ऐसा कानून नहीं है। मोदी और शाह, पित्रौदा के बयान की निंदा करते हुए देश की जनता को बरगलाने के लिए कह रहे हैं कि कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति का पदार्फाश हो गया है। इन दोनों ने यह भी कहा कि कांग्रेस बहुसंख्यकों की सम्पति जब्त करने और उसे अल्पसंख्यकों में बाँटने की मंशा रखती है। मोदी शाह के इस बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी और अमित शाह पर अपनी टिप्पणी दी। उन्होंने कर्नाटक के कुलबुर्गी के अफजलपुर में एक रैली में कहा कि मोदी लगातार कहते हैं कि गांधी परिवार ने देश को लूटा। आप 10 वर्षों से प्रधानमंत्री है, देश का लूटा हुआ पैसा वापस दिलाओ। खरगे ने कहा कि इस देश में दो विक्रेता और दो खरीदार है। बेचने वाले मोदी-शाह है और खरीदने वाले अंबानी-अडानी है। मोदी-शाह, अंबानी-अडानी के लिए जी रहे हैं, वे देश के लोगों के लिए नहीं। अगर कायदे से मोदी के 10 साल का आंकलन किया जाये तो मोदी-संघियों ने अपने 10 साल के शासन में हिन्दू-मुसलमान, पाकिस्तान कहकर ‘हिन्दू तुष्टीकरण’ की राजनीति की है। राजीव गांधी की सरकार ने 1985 में विरासत टैक्स को खत्म कर दिया था जो 1953 से देश में लागू था। जिसे मोदी ने अपनी हालिया रैली में तोड़-मरोड़ कर पेश किया और जनता में झूठ फैलाया कि कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की संपत्ति बचाने के लिए यह कानून बदला था। अरुण जेटली जब 2018-19 का आम बजट पेश करने वाले थे तब एक बार फिर यह चर्चा उठी थी कि सरकार 5-10 प्रतिशत का टैक्स लगा सकती है। इससे पहले चिदम्बरम जब वित्तमंत्री थे तब भी यह मुद्दा उठा था, मगर यह टैक्स नहीं लगाया गया। लेकिन मोदी सरकार ने 2013-14 के बजट में एक करोड़ रुपए से अधिक की सालाना आमदनी पर 10 प्रतिशत का सरचार्ज लगा दिया था। 1985 में विरासत टैक्स के मुद्दे पर तब के वित्तमंत्री वी.पी. सिंह ने कहा था कि इससे न तो आर्थिक असमानता दूर करने में बड़ी मदद मिल रही है और न ही सरकार को बड़ा रिवेन्यू मिल रहा है।

भारत में सदियों से आर्थिक असमानता है यहाँ पर कुछ लोगों के पास बहुत धन-संपत्ति है और कुछ के पास बिल्कुल भी संपत्ति नहीं है। आँकड़ों के अनुसार देश की 50 प्रतिशत जनसंख्या के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है। इसके उलट देश के एक प्रतिशत अमीर लोगों के पास देश का 70 प्रतिशत धन है। यह आर्थिक असमानता दिन-प्रतिदिन तेज गति से बढ़ती जा रही है। सरकार और समाज के स्तर पर इन मुद्दों को लेकर गंभीर चिंतन और चर्चा करने की आवश्यकता है और बढ़ती आर्थिक असमानता को समतल करने का प्रयास करना चाहिए। संविधान का अनुच्छेद-14 देश की जनता को विधि के समक्ष समता का अधिकार देता है। मगर व्यवहारिकता और वास्तविकता में बढ़ती आर्थिक असमानता, समता के मौलिक अधिकार को विफल करती नजर आ रही है। संविधान के नीति निदेशक तत्वों के अनुच्छेद-38-39 के द्वारा संघ ने राज्यों से इन तत्वों के प्रावधानों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। अनुच्छेद-38 (1) कहता है कि राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था करे, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करे, भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोग कल्याण की अभी वृद्धि का प्रयास करेगा।

38(2) राज्य, विशिष्टतया आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद-39, राज्य अपने नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से-

(क) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो;

(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो, जिससे सामूहिक हित का सर्वोतम रूप से साधन हो;

(ग) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधन के लिए अहितकारी संकेंद्रण न हो;

(घ) पुरुष और स्त्रियों का समान कार्यों के लिए समान वेतन हो;

(ङ) पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े, जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो;

(च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएं और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।

विरासत टैक्स के खतरे? विरासत टैक्स से लेकर वेल्थ टैक्स तक के कदमों का मकसद बहुत अमीर लोगों से टैक्स लेकर समाज कल्याण में उसका उपयोग करना रहा है। इसमें खतरा यह है कि इसके चलते लोग अपनी संपत्ति विदेश में ट्रांसफर करना बेहतर मान सकते हैं जहाँ उनके वारिशों पर ऐसी देनदारी न बने। इससे ऐसा माहौल बन सकता है, जो उद्यमिता को हतोत्साहित करे। इसलिए विरासत टैक्स जैसी व्यवस्था लाने से पहले आर्थिक मुद्दों के विद्वानों व आम जनता से गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है उसके बाद ही एक उचित निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है। ऐसे बयानों को लेकर जनता से आग्रह है कि वह मोदी व उसके लफरझंडिस अन्धभक्तों के छलावों में न फँसे। क्योंकि कांग्रेस या अन्य किसी भी राजनैतिक दल का अभी तक ऐसा कोई विचार नहीं है। परंतु फिर भी समता के समर्थक सोचते हैं कि ऐसा करके जनता में आर्थिक समानता लाने के लिए ऐसे कदम उठाना आवश्यक है। आज देश की 50 प्रतिशत आबादी के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है तो फिर वे अपने इस देश पर भूखे-नंगे रहकर, अपनी दरिद्रता पर गर्व कैसे करें, ऐसे लोगों में अपने देश पर गर्व करने का भाव कैसे पैदा हो? यह देश को सोचना चाहिए और सरकारों को इस पर गंभीर विचार-विमर्श करके कदम बढ़ाने चाहिए। मोदी-भाजपा सरकार की गैर जिम्मेदार नीतियों के कारण देश में आर्थिक असमानता अधिक बढ़ी है। आज देश में बहुत अमीर लोगों की संख्या करीब 200 हो गई है। जो 2014 से पहले 100 व्यक्तियों से भी कम थी। आज गरीब और अधिक गरीब हो रहा है और अमीर और अधिक अमीर बनता जा रहा है।

आर्थिक समानता के लिए, कानून में हो उचित बदलाव: सैम पित्रौदा के बयान को लेकर मोदी-भाजपा आक्रामक है जबकि बीजेपी और उसके पूर्व नाम से जानी जाने वाली जनसंघ पार्टी ऐसी नीतियों की मूल रूप से समर्थक रही है। ‘बँच और थोटस’ की पुस्तक में संघियों के कर्णधारों ने सामाजिक व्यवस्था के लिए कहा है कि समाज में सिर्फ कुछेक लोग ही धनी बने और बहुसंख्यक समाज केवल इन धनी लोगों की चाटुकारिता करे। ऐसी मानसिकता की व्यवस्था संविधान के कल्याणकारी राज्य के विपरीत है। देश के सामाजिक ताने-बाने को स्वस्थ बनाने व रखने के लिए घातक है, इसे जल्द से जल्द देश की सामाजिक संरचना में समता के भाव के साथ निहित करना चाहिए। मोदी भाजपा का यह अघोषित आपातकाल चल रहा है और मोदी-संघी भाजपा के जो लोग श्रीमती इंदिरा गांधी के 1975 की आपातकाल की आलोचना करते हैं वह आपातकाल जनसाधारण के लिए बहुत अच्छा था, हमने उसे अपनी आँखों से देखा है पूरे देश की पूरी सामाजिक व्यवस्था, परिवहन व्यवस्था, सरकारी तंत्र चुस्त-दुरुस्त थे और वह अपना काम संयम के साथ समय पर कर रहे थे। इंदिरा जी के आपातकाल में देश के कुछेक राजनैतिक नेता ही जेल में थे बाकी पूरा देश स्वतंत्र रूप से अपना काम कर रहा था। मोदी के झूठों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, आज पूरे देश का जनमानस अघोषित रूप में बंधित है। लोगों को सरकारी संस्थाओं के माध्यम से डराया-धमकाया जा रहा है। सभी लोग भय-भीत है।

आज विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता सैम पित्रौदा के बयान पर टिप्पणी कर रहे हैं, उसके शायद दो अहम कारण है। पहला ऐसे लोग समतामूलक समाज की अवधारणा को पूर्ण रूप में समझने में अक्षम है। दूसरा कारण टिप्पणी करने वाले अधिकतर लोग राजनीति से जुड़े हुए हैं और शायद इन्होंने राजनीति में रहकर अनाप-सनाप ढंग से कुछ अवैध धन इककट्ठा कर लिया है और वे अंदर से डर रहे हैं की उनका धन इन आर्थिक समानता के प्रयास से चला न जाये। देश के जागरूक लोगों को आगे आकर देश को विभाजनकारी संघियों से बचाना चाहिए। देश बहुत बड़ा है हम सबका उद्देश्य देश को बनाना होना चाहिए। मोदी-शाह के झूठों से बचो और मोदी-भाजपा को अपना वोट मत दो।

संविधान के नीति-निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 38-39 को आर्थिक समानता लाने के लिए राज्य सरकारों को काम करना चाहिए था मगर आर्थिक असमानता का स्वरूप देखकर लग रहा है कि सरकारों न इसपर कोई काम नहीं किया है। जिसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि राज्यों में अधिकरत मुख्यमंत्री शुरु से लेकर अभी तक ब्राह्मणी संस्कृति के ही रहे हैं और उन्होंने आर्थिक समानता जमीन पर उतारने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। आर्थिक समानता को इन नीति-निर्देशक तत्वों के आधार पर जमनी पर उतारने के लिए राज्यों में बहुजन समाज के समुदाय से मुख्यमंत्री बनने चाहिए और उनमें बहुजन समाज के लिए काम करने की दिली इच्छा भी होने चाहिए। तभी देश की जनता का भला हो सकता है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05