2023-11-04 08:31:07
डॉ. अम्बेडकर सन 1946 में वायसराय मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री थे। सन 1946 में ब्रिटिश सरकार ने निर्णय लिया कि भारत को आजादी देने से पहले भारतीय अपनी संसद का गठन कर लें और अपने देश का संविधान बना लें। डॉ. अम्बेडकर ने अंग्रेज सरकार से यह शर्त मनवा ली थी कि भारत के नये संविधान में अछूतों का भी योगदान हो और वह संविधान अछूतों को मान्य हो। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर महाराष्ट्र से संविधान सभा के लिए नहीं चुने जा सके इसलिए वे जुलाई 1946 में बंगाल विधानसभा से संविधान सभा के लिए विजयी हुए। जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारत सरकार के अंतरिम मंत्रिमंडल का गठन हो गया लेकिन डॉ. अम्बेडकर इस मंत्रिमंडल में शामिल नहीं थे। 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी देने का अंग्रेजों ने निर्णय कर लिया। लेकिन इस समय तक भारत का संविधान बनाने का काम कुछ खास आगे नहीं बढ़ सका। सरकार के सामने यह प्रश्न था कि भारत का संविधान कौन बनाये? अंत में बहुत सोच विचार के बाद यही निश्चय किया गया कि हमारे यहां केवल एक ही व्यक्ति है जो भारत के संविधान का निर्माण कर सकता है। यह व्यक्ति थे डॉ. भीमराव अंबेडकर।
इस निर्णय के बाद डॉ. अम्बेडकर को बम्बई से संविधान सभा के लिए चुना गया और 29 अगस्त 1947 को उन्हें ‘संविधान प्रारूप समिति’ का सदस्य नियुक्त किया गया। 30 अगस्त 1947 को वे ‘संविधान प्रारूप समिति’ के अध्यक्ष चुने गए। इस समिति में डॉ. अम्बेडकर के अलावा 6 और सदस्य थे। लेकिन दुखद यह है कि इन 6 सदस्यों का संविधान का प्रारूप बनाने में कोई खास योगदान नहीं मिला। अंतत: संविधान का प्रारूप बनाने की जिम्मेदारी अध्यक्ष डॉ. अम्बेडकर के कंघों पर ही आ पड़ी। इस जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया और अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद दिनरात संविधान का प्रारूप बनाने में लग गए। यहां तक कि वे अपने इकलौते पुत्र यशवंत राव अम्बेडकर के विवाह में शामिल होेने के लिए बम्बई नहीं जा पाये। यह सब दिखाता है कि डॉ. अम्बेडकर ने संविधान बनाने को कितनी बड़ी चुनौती समझा और अछूत वर्ग के लोगों की बेड़िया काटने के लिए अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना दिन रात ऐसा संविधान बनाने में लगे रहे जिसमें अछूतों को कुछ विशेष अधिकार मिल सकें और ये लोग ऊपर उठकर देश की मुख्य धारा में शामिल हों जायें।
बड़े परिश्रम के साथ उन्होंने संविधान का प्रारूप तैयार किया और 4 नवंबर सन 1948 को इस प्रारूप को संविधान सभा में प्रस्तुत कर दिया। उनके इस महान कार्य की संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सहित अनेक माननीय सदस्यों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की और यहां तक कहा कि डॉ. अम्बेडकर को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाने से और कोई बढ़िया निर्णय हो ही नहीं सकता था।
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