2022-09-30 10:15:47
ाष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले ने 24 सितम्बर सन 1873 को एक पंथ की स्थापना की जिसका नाम है ‘सत्यशोधक समाज’ यह एक छोटे से समूह के रूप में शुरू हुआ और इसका उद्देश्य शूद्र एवं अस्पृष्य जाति के लोगों को पाखंण्डवाद व हिन्दुवाद से मुक्त करना था। इनकी विचारधारा ‘गुलामगिरी’, ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ ‘सत्य सार’ में निहित है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी भी इनके विचारों से बहुत प्रभावित थे।
एक प्रसंग है जिसने ज्योतिबा फूले जी को इसके लिये प्रेरित किया। अपने एक ब्राहमण मित्र की शादी में जातिगत भेदभाव एवम वैमनस्यता के कारण वे बुरी तरह अपमानित हुए, उन्हें बहुत भला बुरा कहा और ब्राह्मणों ने उन्हें धक्के देकर शादी के मंडप से निकाल दिया। घर आकर उन्होंने अपने पिताजी से इसका कारण पूछा । पिताजी ने बताया कि सदियों से यही सामाजिक वयवस्था है और हमें उनकी बराबरी नहीं करनी चाहिए। ब्राह्मण भूदेव (धरती के देवता) है; ऊँची जाति के लोग हैं और हम लोग नीची जाति के लोग हैं अत: हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते। फूले जी ने अपने पिताजी से बहस की और कहा, ‘मै उन ब्राहमणों से ज्यादा साफ-सुथरा था, मेरे कपड़े अच्छे थे, ज्यादा पढ़ा-लिखा व होशियार हूँ। हम उनसे ज्यादा अमीर भी हैं फिर मैं उनसे नीच कैसे हो गया?’ पिताजी नाराज होकर बोले,‘ये मुझे नहीं पता परन्तु यह सदियों से होता आ रहा है हमारे सभी धर्मग्रंथों एवम शास्त्रों मे यही लिखा है और हमें भी यही मानना पड़ेगा क्योकि यही परम्परा व परम सत्य है।’ फूलेजी सोचने लगे, धर्म तो जीवन का आधार है फिर भी धर्म को बताने वाली पुस्तकों व धर्मग्रंथों में ऐसा क्यों लिखा है? अगर सभी जीवों को भगवान ने बनाया है तो मनुष्य-मनुष्य मे विभेद क्यों हैं? कोई ऊँची जाति, कोई नीची जाति का कैसे है? अगर ये हमारे धर्मग्रंथों में लिखा है और जिसके कारण समाज में इतनी विषमता व छूआछूत हैं तो यह परम सत्य कैसे हुआ? यह असत्य हैं। यदि यह असत्य हैं तो मुझे सत्य की खोज करनी पड़ेगी और समाज को बताना भी पड़ेगा। अत: उन्होंने इस काम के लिए एक संगठन बनाया और उसका नाम रखा ‘सत्यशोधक समाज’ (सच को ढूंढने वाला समाज; Society to research on Social Truths)।
यहां पर यह बताना बहुत आवश्यक है कि ज्योतिबा फुले हिन्दुओं के महापुरुषों से बहुत आगे थे। फुले जी ने समाज को ब्राह्मणवाद के विरूद्ध जागृत करने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना 24 सितंबर 1873 की थी। जबकि इस पंथ को कमजोर करने के लिए दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 को की। इसी प्रकार फुले जी द्वारा लिखित ‘सत्यसार’ के पश्चात ही स्वामी दयानंद द्वारा सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना की। इसी प्रकार भारत में सबसे पहला प्राईवेट स्कूल ज्योतिबा फुले द्वारा 1 जनवरी 1848 को पूना में खोला गया। जबकि पहले डीएवी स्कूल की स्थापना महात्मा हंसराज द्वारा दयानंद के नाम पर 1 जून 1886 को लाहौर में की गयी।
ये बातें सिद्ध करती हैं कि ज्योतिबा फुले शुद्रों तथा दलितों के लिए सामाजिक सुधारों के पितामह थे और अपने समकालीन हिन्दू विद्वानों से अग्रणी थे।
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