गौतम बुद्ध द्वारा सारनाथ में प्रथम धर्म उपदेश
2022-08-23 12:17:42
यह वही पवित्र स्थल है जहां भगवान बुद्ध बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद आषाढ पूर्णिमा को सारनाथ (वाराणसी) आये। यहां उन्हें वे पांच भिक्षु मिले जो बोधगया में उनका साथ छोड़कर आ गये थे। तथागत गौतम बुद्ध ने अपना ज्ञान समाज में फैलाने का निर्णय किया। मृगदावपत्तन (सारनाथ) में रह रहे इन्हीं पांच भिक्षुओं को बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन प्रथम धर्म उपदेश दिया था। और इस प्रकार धम्म चक्र परिवर्तन की नींव रखी। इस स्थान पर सम्राट अशोक ने एक धमेक स्तूप का निर्माण कराया जिसे धर्माराजिक स्तूप भी कहते हैं। दुर्भाग्यवश 1794 में जगत सिंह के आदमियों ने काशी का प्रसिद्ध मुहल्ला जगतगंज बनाने के लिए इसकी ईंटों को खोद डाला था। खुदाई के समय 8.23 मीटर की गहराई पर एक संगरमरमर की मंजूषा में कुछ हड्डियां एवं सवर्ण पात्र, मोती के दाने एवं रत्न मिले थे, जिसे तब लोगों ने गंगा में बहा दिया। यहां जो पीपल का वृक्ष लगा है, उसे श्रीलंका से लाया गया था। सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा बोधगया स्थित पवित्र पीपल के पेड़ की एक शाखा श्रीलंका के अनुरंधपुरा में लगाई थी। उसी पेड़ की एक टहनी को सारनाथ में लगाया था।
मूलगंध कुटी
मूलगंध कुटी गौतम बुद्ध का मंदिर है। सातवीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसका वर्णन 200 फुट ऊंचे मूलगंध कुटी विहार के नाम से किया है। इस मंदिर पर बने हुए नक्काशीदार गोले और छोटे-छोटे स्तंभों से लगता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल में हुआ होगा। मंदिर के बदल में गौतम बुद्ध के अपने पांच शिष्यों को दीक्षा देते हुए मूर्तियां बनाई गई हैं।
चौखंडी स्तूप
बौद्ध समुदाय के लिए चैखंडी स्तूप काफी पूजनीय है। यहां गौतम बुद्ध से जुड़ी कई निशानियां हैं। ऐसा माना जाता है कि चैखंडी स्तूप का निर्माण मूलतरू सीढ़ीदार मंदिर के रूप में किया गया था। चैखंडी स्तूप सारनाथ का अवशिष्ट स्मारक है। इस स्थान पर गौतम बुद्ध की अपने पांच शिष्यों से मुलाकात हुई थी। बुद्ध ने उन्हें अपना पहला उपदेश दिया था। बुद्ध ने उन्हें चार आर्य सत्य बताए थे। उस दिन गुरु पूर्णिमा का दिन था। अशोक 234 ई. पूर्व में सारनाथ आए थे। इसकी याद में इस स्तूप का निर्माण कराया। इस स्तूप के ऊपर एक अष्टपार्श्वीय बुर्जी बनी हुई है। यहां हुमायूं ने भी एक रात गुजारी थी।
भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ
सारनाथ का संग्रहालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्राचीनतम स्थल संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1904 में हुई थी। यह भवन योजना में आधे मठ (संघारम) के रूप में है। इसमें ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व से 12वीं शताब्दी तक की पुरातन वस्तुओं का भंडार है। इस संग्रहालय में मौर्य स्तंभ का सिंह स्तंभ शीर्ष मौजूद है जो अब भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। चार शेरों वाले अशोक स्तंभ का यह मुकुट लगभग 250 ईसा पूर्व अशोक स्तंभ के ऊपर स्थापित किया गया था। इस स्तंभ में चार शेर हैं, पर किसी भी कोण से तीन ही दिखाई देते हैं।
अशोक स्तंभ का मॉडल
कई मुद्राओं में बुद्ध की मूर्तियों के अलावा, भिक्षु बाला बोधिसत्व की खड़ी मुद्रा वाली विशालकाय मूर्तियां, छतरी आदि भी प्रदर्शित की गई हैं। संग्रहालय की त्रिरत्न दीर्घा में बौद्ध देवगणों की मूर्तियां और कुछ वस्तुएं हैं। तथागत दीर्घा में विभिन्न मुद्रा में बुद्ध, वज्रसत्व, बोधित्व पद्मपाणि, विष के प्याले के साथ नीलकंठ लोकेश्वर, मैत्रेय, सारनाथ कला शैली की सर्वाधिक उल्लेखनीय प्रतिमा उपदेश देते हुए बुद्ध की मूर्तियां प्रदर्शित हैं।
ब्रिटिश काल के दौरान महान आर्केयोलोजिस्ट (पुरातत्वविद) एलेक्जेंडर कनिंगम ने सन 1837 में सारनाथ में खुदाई करवायी। खुदाई में धमेक स्तूप, मूलगंध कुटी, मोनास्ट्री, चौखंडी स्तूप, अशोक स्तंभ आदि बड़ी मात्रा में स्मारक व अवशेष यहां मिले। इस खुदाई से गौतम बुद्ध की महान विरासत जिंदा होकर निकली। प्रचीन अवशेषों पर संकेत और प्रतीक खुदे हुए हैं। इन्हें बौद्ध धर्म के बारे में बताने और इसे फैलाने के लिए रूपांकित किया गया था।