2022-09-09 08:45:48
इंग्लैंड की नई लेवर पार्टी की नई सरकार ने 15 मार्च 1946 को अंतत: भारत को स्वतंत्रता के अधिकार को स्वीकार कर लिया। इसके लिए सरकार के स्वरूप तथा राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के उद्देश्य से विभिन्न पक्षकारों से बात करने के लिए सर स्टेफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में तीन कैबिनेट मंत्रियों का एक कैबिनेट मिशन भेजने के लिए 15 मार्च 1946 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की। यह कैबिनेट मिशन 24 मार्च 1946 को नई दिल्ली पहुँचा। प्रतिनिधि मंडल ने गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, जिन्ना, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, मौलाना आजाद तथा साथ ही रजवाडों का प्रतिनिधित्व कर रहे भोपाल के नवाब जैसे नेताओं से बात की। 5 अप्रैल को प्रतिनिधि मंडल ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर तथा सरदार मास्टर तारा सिंह से भी भेंट की। बातचीत के दौरान डॉ. अम्बेडकर ने प्रतिनिधि मंडल को एक स्मारक पत्र प्रस्तुत किया जिसमें भारत के नए संविधान में उत्पीड़ित वर्ग (दलित) के बचाव के लिए कुछ खास उपायों के सुझाव दिये गए थे। डॉ. अम्बेडकर ने संविधान में पृथक निर्वाचन द्वारा दलितों के चुनाव की व्यवस्था पर जोर दिया तथा केंद्रीय व प्रांतीय विधान मंडलों, केंद्र तथा राज्य सरकार में, संघीय तथा प्रांतीय लोक सेवा आयोगों तथा लोक सेवाओं (सरकारी नौकरियों) में दलित वर्ग के लोगों के लिए उचित प्रतिनिधित्व की माँग की। उन्होंने दलित वर्गों की शिक्षा के लिए निश्चित धन की तथा इनके लिए नए रिहायशी इलाकों की माँग की।
कैबिनेट मिशन ने भारतीय गतिरोध के अंतिम समाधान के लिए ‘स्टेट पेपरस’ के रूप में अपनी योजना की 16 मई 1946 को घोषणा की। इसमें भारत संघ प्रांतों के तीन समूह सहित संविधान सभा का गठन, केंद्र में अंतरिम सरकार का प्रस्ताव था लेकिन इस घोषणा में दलित वर्गों की मांगों के विषय में कोई भी जिक्र नही था। कैबिनेट मिशन द्वारा दलित वर्गों की मांगों की उपेक्षा के विरोध में डॉ. अम्बेडकर ने कैबिनेट मिशन के तीनों सदस्यों के साथ भारत के वायसराय को स्मारक पत्र लिखे तथा दलित वर्गों की माँगें मानने के लिए जोर दिया लेकिन इस विषय में कोई सफलता नहीं मिली।
कैबिनेट मिशन के विरुद्ध अपना आक्रोश प्रदर्शित करने तथा अपनी माँगें मनवाने के लिए ‘अखिल भारतीय शेडयूलड कास्ट फेडरेशन’ ने भारत में कई जगह सत्याग्रह करने का फैसला किया। पहले सत्याग्रह का 15 जुलाई 1946 में पूना में आयोजन किया गया। सत्याग्रह का नेतृत्व बम्बई प्रांत के अध्यक्ष दादा साहेब बी.के. गायकवाड ने किया। यह सत्याग्रह 5-6 दिन चला जिसमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। दूसरा बड़ा सत्याग्रह व प्रदर्शन नागपुर में सितम्बर 1946 में आयोजित किया गया। नागपुर में विधान सभा, जहाँ संविधान सभा के लिए चुनाव हो रहा था, फेडरेशन के अंतर्गत लगभग 10,000 लोगों ने जिनमें लगभग 500 महिलाएँ भी थी, के बाहर जबर्दस्त प्रदर्शन किया। कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों में दलितों की उपेक्षा के विरोध में नागपुर में बड़ी संख्या में सत्याग्रहियों ने भाग लिया तथा विधान सभा की ओर जाने वाली सभी सड़कों पर प्रदर्शन किया।
12 सितम्बर से लेकर 14 सितम्बर 1946 तक नागपुर में प्रतिदिन लगभग 250 सत्याग्रहियों ने पुलिस को अपनी गिरफ्तारी दी। शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के तहत ही कैबिनेट मिशन द्वारा दलितों की उपेक्षा के विरोध में सबसे बड़ा सत्याग्रह अप्रैल 1947 में लखनऊ में आयोजित किया गया जो लगभग एक महीने तक चला।
भले ही कैबिनेट मिशन ने दलितों की मांग पर कोई निर्णय नहीं दिया लेकिन डॉ. अम्बेडकर अपना दबाव बनाने में सफल रहे। यह ऐतिहासिक सत्य है कि अंग्रेज सरकार ने भारत को सत्ता हस्तान्तरण करते समय यह शर्त लगा दी थी कि भारत के नये संविधान से दलितों की सहमति आवश्यक होगी।
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