Friday, 15th November 2024
Follow us on
Friday, 15th November 2024
Follow us on

ऐतिहासिक पत्रिका ‘मूकनायक’

प्रभाकर गजभिये
News

2024-01-25 13:02:37

भारत भूमि को तैतीस करोड़ देवताओं की धरा कहा जाता है, किन्तु इस देव भूमि पर अछूतों का अस्तित्व पशुओं से भी बदतर था। उन्हें मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। वे इंसान के रूप में एक जिंदा लाश थे। उन्हें वास्तविक इंसान बनाने का वास्तविक कार्य डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने किया। उन्होंने दलितों के उत्थान हेतु अपना सर्वस्व समर्पित किया। बाबा साहेब अम्बेडकर के कारण ही अछूतों को सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक तथा धार्मिक अधिकार प्राप्त हुए। अछूत समाज में चेतना का संचार करने के लिए उन्होंने चार समाचार पत्र (मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता व प्रबुद्ध भारत) निकाले। डॉ. अम्बेडकर ने 31 जनवरी 1920 को मूकनायक पाक्षिक को जन्म दिया। यह वर्ष मूकनायक का शताब्दी वर्ष है। आईये, हम अपने इस इतिहास को जानने का प्रयास करे।

जब भीमराव अम्बेडकर को पता चला कि बड़ोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड रियासत जी ओर से कुछ छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजने वाले है, तब अम्बेडकर ने इस संबंध में महाराज से मुंबई में मुलाकात की। महाराज ने भीमराव अम्बेडकर से पूछा - तुम किस विषय में पढ़ाई करना चाहते हो?

भीमराव- महाराज मैं समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा लोकवित्त की पढ़ाई करना चाहता हूँ।

महाराज- इस विषय में पढ़ाई कर तुम क्या करना चाहते हो?

भीमराव-महाराज इस विषय का अध्ययन करने पर मुझे वह रास्ता दिखाई देगा जिससे मैं अपने समाज की दयनीय अवस्था में सुधार कर पाऊँगा।

कहावत है कि ‘पूत के पाँव पालने में ही दिखाई पड़ते है।’ विद्यार्थी दशा से ही भीमराव अम्बेडकर अस्पृश्य समाज की उन्नति हेतु चिंतित थे। जब वे मुंबई के सिहनहेम कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे, तब उनके मन में समाज के प्रति और अधिक छटपटाहट बढ़ गई थी। इसी बीच 27 जनवरी 1919 को साउथबरो कमीशन जब मुंबई आया था, तब उन्होंने इस कमीशन को एक निवेदन देकर अछूत समाज की व्यथा-वेदना को रखा था। जिसमें वे कहते हैं-----‘अस्पृश्यता ने न केवल अछूतों के व्यक्तित्व विकास को अवरुद्ध किया है, वरन उनकी आर्थिक उन्नति की राह में कांटे बोये है। उसने अछूतों के नागरिक अधिकारों को हड़प लिया है।

अछूतों के सच्चे हितैषी राजर्षि शाहूजी महाराज ने सहयोगी दत्तोबा पवार से तथा बड़ोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड से सुन रखा था कि बी.आय.टी. चाल, परेल-मुंबई में महार जाति के भीमराव अम्बेडकर नामक युवक ने अमेरिका से एम.ए., पीएच.डी. की उच्च पदवी प्राप्त की है तथा वह मुंबई के सिहनहेम कालेज में अर्थशास्त्र का प्राध्यापक है।

यह समाचार सुनकर शाहू महाराज बहुत आनंदित हुए थे। उन्होंने दत्तोबा से कहा---जब भी हमारा मुंबई जाना होगा, तब हम इस उच्च शिक्षित युवक से अवश्य मिलेंगे- हो सके तो इस युवक को कोल्हापुर रियासत में लाकर अस्पृश्य समाज के कल्याण हेतु कुछ योजनायें कार्यान्वित करेंगे।

राजर्षि शाहू महाराज गवर्नर क्लाउड से मिलने के लिए 9 दिसम्बर 1919 को मुंबई आए थे। 17 दिसम्बर 1919 को महाराज दत्तोबा पवार को साथ लेकर कार से बी.आय.टी. चॉल पहुँचते है। महाराज की कार मैदान में रुकती है तथा दत्तोबा महाराज का संदेश लेकर भीमराव अम्बेडकर के घर पहुँचते है। प्रो. अम्बेडकर महाराज से मिलने घर से निकलते है। सामने ही महाराज के दर्शन होते हैं। डॉ. अम्बेडकर ने नमस्कार लेते हुए विनम्र भाव से कहा---‘महाराज! आपने इतना कष्ट क्यों किया? मुझे संदेश देते, तो मैं ही आपसे मिलने आ जाता। तब महाराज ने भीमराव को आलिंगन (गले लगते) करते हुए कहा---विद्वानों का सत्कार अपने घर बुलाकर नहीं, तो उनके घर जाकर किया जाता है। यह अपनत्व के शब्द सुनकर डॉ. अम्बेडकर गुणग्राही शाहू महाराज की ओर देखते ही रह गए थे।

इस मुलाकात के दौरान उन्होंने राजर्षि शाहू महाराज से कहा---‘महाराज अछूतों में शिक्षा का नितांत अभाव है, उनके पास कोई व्यवसाय नहीं है। इसी कारण वे सामाजिक,शैक्षणिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए है। उनमें जागृति लाने के लिये एक समाचार पत्र की अति आवश्यकता है जोकि उनकी बात कह सके, उन्हें मार्गदर्शन कर सके। इसलिए मैं एक पाक्षिक निकालना चाहता हूँ, किन्तु सबसे बड़ी समस्या आर्थिक है। यह सुनकर अछूतों के हितैषी राजर्षि शाहू महाराज ने पाक्षिक निकालने के लिए रु 2500/- का चेक दिया, साथ ही डॉ. अम्बेडकर को कोल्हापुर आने का निमंत्रण भी दिया।

प्रो. डॉ. अम्बेडकर ने जब ‘मूकनायक’ पाक्षिक की प्रसिद्धि हेतु लोकमान्य तिलक के समाचार पत्र ‘केसरी’ में शुल्क के साथ विज्ञापन दिया था। तब बाल गंगाधर तिलक ने उस विज्ञापन को छापने से इंकार किया था। यह था हमारे देश के राष्ट्रीय नेता का चरित्र? कितनी गहरी थी चातुर्वर्ण व्यवस्था, जातीय व्यवस्था तथा मनुस्मृति का फंदा?

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 31 जनवरी 1920 को ‘मूकनायक’ पाक्षिक निकाला। उनके द्वारा पाक्षिक को दिया गया नाम बहुत ही सार्थक था। अस्पृश्य समाज जवान होकर भी बेजवान था, उसके हाथ-पैर शक्ति विहीन थे। इस मराठी पाक्षिक के सम्पादक पांडुरंग भटकर थे, किन्तु असलियत यह थी कि अधिकांश काम डॉ. अम्बेडकर को ही करना पड़ता था।

डॉ. अम्बेडकर ‘मूकनायक’ के प्रथम सम्पादकीय में लिखते है---किसी युरोपियन सज्जन ने पूछा कि ‘आप कौन है? इस प्रश्न ने उत्तर में अंग्रेज, जर्मन, फ्रेंच, इटालियन आदि प्रकार के उत्तर मिलने पर संतोष होता है। परंतु हिंदुओं की वैसी स्थिति नहीं है। मैं हिन्दू हूँ, यह कहने मात्र से किसी को संतोष नहीं होगा। उसे तो अपनी जाति क्या है? यह बताना आवश्यक लगता है। यानि अपनी विशेष मानवीय पहचान बताने के लिए प्रत्येक हिन्दू को अपनी विषमता पग-पग पर दिखानी पड़ती है।

वे आगे लिखते हैं-‘हिन्दू समाज एक महल सदृश्य है तथा समाज की एक-एक जाति यानि महल की एक-एक मंजिल है। परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस महल को सीढ़ियाँ नहीं हैं। फलत: एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। जिस मंजिल पर जिसने जन्म लिया, उसे उसी मंजिल पर ही मरना है। नीचे मंजिल का आदमी कितना भी लायक क्यों न हो? किन्तु वह ऊपर की मंजिल में प्रवेश नहीं कर सकता। उसी भांति ऊपरी मंजिल का आदमी कितना भी नालायक हो, किन्तु उसे नीचे के मंजिल पर ढकेलने की प्रज्ञा किसी के पास नहीं है।

‘हमारे बहिष्कृत समाज पर हो रहे अन्याय तथा भविष्य में होने वाले अन्याय की रोकथाम हेतु उपाय योजना करना आवश्यक है। उसी भाँति भावी उन्नति तथा उस संबंध में वास्तविक स्वरूप की चर्चा के लिए समाचार पत्र जैसा दूसरा कोई माध्यम नहीं है। मुंबई प्रदेश में जो समाचार पत्र निकल रहे हैं। उनकी ओर नजर दौड़ने पर दिखाई देता है कि उनमें से बहुत सारे पत्र विशिष्ट जाति के होकर वह अपनी ही जाति के हितों की बात करते हैं। उन्हें अन्य जातियों की परवाह नही है। इतना ही नहीं तो वे कभी-कभी दूसरी जातियों के प्रति अहितकारी तथा अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं।

जिन्हें यह बुद्धिवाद कबूल है, ऐसे भी समाचार पत्र निकले है। यह बहुत ही गर्व की बात है। इनमें दीनमित्र, जागरूक, डेक्कन रयत, विजयी मराठा, ज्ञान प्रकाश, सुबोध पत्रिका प्रमुख है। इन समाचार पत्रों में बहिष्कृत समाज के समस्याओं की बहुधा चर्चा होती रहती है। परंतु गैर ब्राह्मण समाचार पत्र में आडंबर के कारण अनेक जातियों की समस्याओं का जहाँ विचार मंथन होता है, वहाँ बहिष्कृत समाज की समस्याओं का पूर्णत: ऊहापोह होकर पूर्ण रूपेण स्थान मिलना संभव नही है। ऐसे समय बहिष्कृत समाज की अति विकट स्थिति को देखते हुए उन समस्याओं का पूर्ण रूपेण विचार-विमर्श करने के लिए एक स्वतंत्र समाचार पत्र की अति आवश्यकता है। इस बात को तो कोई भी कबूल करेगा। इसी कमी को पूरा करने के लिए इस पाक्षिक का जन्म हुआ हैं।

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05