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आने वाली नई सरकार के लिए ‘बहुजन एजेंडा’

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2024-05-24 12:45:19

देश का सामाजिक ताना-बाना हजारों जातियों, धर्मों, संप्रदायों, वैचारकियों से मिलकर बना है, इसलिए समाज में विविधता है। देश में सैंकड़ों संप्रदायों व धर्मों के लोग निवास करते हैं। देश में क्रमिक ऊँच-नीच की जातीय सामाजिक व्यवस्था है। एक जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के व्यक्ति से सामाजिक वर्गीकरण के हिसाब से या तो नीचा है या फिर ऊँचा है। समाज में समानता नहीं है, छुआछूत है। जाति व्यवस्था की यह सबसे बड़ी बिडंबना है कि वह मनुष्यों में आपसी भेद करती है। यही आपसी भेद लोगों में सौहार्द्ध उत्पन्न नहीं होने देता है और न ही उन्हें एकता के सूत्र में बंधने देता है। जाति व्यवस्था इस देश में मानव सभ्यता का एक सबसे बड़ा कलंक है। जिसे किसी भी सरकार ने खत्म करने की कोशिश नहीं की है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ। 26 जनवरी 1950 से भारतीय जनता में स्वाधीन सत्ता है। सभी नागरिक देश में समान है, सभी के लिए एक कानून हंै, किसी व्यक्ति का कोई विशेष दर्जा नहीं है। लेकिन आजादी के बाद से जो सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियाँ बदली हंै उसमें बहुजन समाज को अधिक फायदा होते नहीं दिखा है। बहुजन समाज (शूद्र) के सभी जातीय घटक आजादी से पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और आजादी के बाद अब वे ब्राह्मणवादी-मनुवादी सत्ता के गुलाम बने हुए हैं।

बहुजन समाज का सामाजिक दुश्मन कौन?: बहुजन समाज का अर्थ है (एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक)। बहुजन समाज की परिधि से शूद्र समाज की कुछेक दबंग जातियां जैसे-जाट, गुर्जर, अहीर अन्य समकक्ष जातियों को बहुजन समाज से निकाल देना ही सामाजिक दृष्टि से उचित लगता है। चूंकि इन जातीय घटकों में दबंगाई और सामंतवादी विचारधारा की अधिकता है। इन जातियों में दबंगाई और सामंतवाद का भाव इनके पास खेती योग्य जमीन का मालिकाना अधिकार होने के कारण है। इसलिए ये सभी जातीय घटक बहुजन समाज की अत्यंत पिछड़ी जातियों जैसे नाई, कुम्हार, लौहार, गडरिये, चमार, खटीक, धोबी, वाल्मीकि आदि को छोटा या नीच समझते हैं। बहुजन समाज के इन सभी जातीय घटकों का सामाजिक दुश्मन ब्राह्मणवाद है। ब्राह्मणवाद किसी एक जाति का नाम नहीं है। ब्राह्मणवाद एक सिस्टम का नाम है जिसके अंतर्गत समाज में रह रहे व्यक्तियों में जातीय आधारित क्रमिक ऊँच-नीच की व्यवस्था है। क्रमिक ऊँच-नीच की भावना ही ब्राह्मणवाद की विशेषता है। जिसके कारण समाज का एकीकरण और उसमें संगठनात्मक भाव नहीं है। यही भाव समाज के विघटन का कारक है। बहुजन समाज को समझना और जानना होगा कि इस देश में ब्राह्मणवादी-मनुवादी व्यवस्था समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है। इस व्यवस्था के पोषक और संचालक बहुजन समाज का कभी भला नहीं कर सकते। इसलिए जागरूक जनता को मनुवादी व्यवस्था को कभी भी देश की सत्ता में नहीं आने देना चाहिए। ब्राह्मण जाति इस व्यवस्था की जनक है और इसे समाज में बनाए रखना चाहती है। इसलिए ब्राह्मणवाद देश और समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है, इसे जितना जल्दी हटाओगे उतना ही जल्द समाज और देश स्वस्थ होगा। वर्तमान में चल रहे लोक सभा चुनाव में सामूहिक रूप से सभी बहुजनों को ब्राह्मणवाद के विरुद्ध वोट करके उसे परास्त करना होगा।

संपत्ति विहीन समाज: विभिन्न आर्थिक अध्यनोंं, सर्वेक्षणों के आधार पर पता चलता है कि देश की 50 प्रतिशत जनता के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है। संपत्ति का अर्थ है जो मनुष्य अपने श्रमिक बल से आय कमाता है। उस कमाई का अपने जीवनयापन के लिए खर्च करके जो कुछ भी उसके पास बचता है वह उसकी संपत्ति कहलाता है। राजनीतिक लोग देश की आबादी 140 करोड़ बताते नहीं थकते हैं जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि देश की 70 करोड़ आबादी (50 प्रतिशत) के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है। संपत्ति विहीन व्यक्तियों का यह आंकड़ा दर्शाता है कि देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को चलाने वाली सरकारों ने भारतीय संविधान की भावना और संविधान के अनुच्छेद-14, जो सभी को समानता का अधिकार देता है उसे सरकारों ने विफल करने का काम किया है। आज 75 वर्ष के बाद समता आधारित व्यवस्था पूर्ण रूप से लागू हो जानी चाहिए थी। मगर जमीन पर परिणाम उलटे ही दिखाई दे रहे हैं इस 50 प्रतिशत संख्या में अधिकांश जनसंख्या शूद्र (बहुजन) समाज की अत्यंत पिछड़ी जातियों जैसे नाई, कुम्हार, धोबी, सक्के, लौहार, गडरिये, चमार, अहीर, वाल्मीकि आदि की है। इन सभी को समाज में समान आधार देने के लिए सरकारों को विशेष योजनाएं बनानी चाहिए ताकि शूद्र समाज के ये सभी जातीय घटक विकसित होकर संपत्ति विहीन परिधि से बाहर हो सकें। सरकारों को ये योजनाएं समयबद्ध रूप में चलानी चाहिए जिनका असर मापने का भी सिस्टम बनाया जाये और समय-समय पर इन योजनाओं का सामूहिक आॅडिट किया जाये।

निजीकरण की भेंट चढ़ाए गए संस्थान पुराने सिस्टम में वापिस लाये जाये: 10 साल के मनुवादी संघी शासन में सरकारी संस्थानों को बड़े पैमाने पर निजीकरण की भेंट चढ़ाया गया है। मनुवादी संघियों ने औने-पौने दाम पर इन सभी सरकारी संस्थानों को अपने व्यापारी मित्रों को बेच दिया है। निजीकरण की भेंट चढ़ाने के पीछे संघी-मनुवादियों का मानसिक गणित है कि ये सभी सरकारी संस्थान निजीकरण की व्यवस्था में आ जाएँगे तो आरक्षण की व्यवस्था जो दलित व पिछड़े समुदायों के बच्चों को दी जाती है वह स्वत: ही समाप्त हो जाएगी। निजीकरण की व्यवस्था में इनको रोजगार भी नहीं मिलेंगे जिसके कारण इनकी आर्थिक संपन्नता भी कमजोर हो जाएगी और जब इनकी आर्थिक संपन्नता कमजोर होगी तो ये सभी (शूद्र) समाज के लोग मनुवादी व्यवस्था में जीने के लिए विवश होंगे। ये ब्राह्मणवादी व्यवस्था के आसानी से गुलाम बन जाएँगे।

अगर किसी वजह से निजीकरण की भेंट चढ़ाए गए संस्थान पुरानी व्यवस्था में लाने में संवैधानिक, कानूनी तथा तकनीकी दिक्कतें आए तो फिर सरकार को ऐसे सभी निजीकरण की भेंट चढ़ाएँ गए संस्थानों व अन्य निजी संस्थानों में भी एससी/एसटी/ओबीसी का आरक्षण संवैधानिक रूप से लागू किया जाये। यह देश जितना धन्नासेठों का हैं उतना ही शूद्र समाज की जातियों का भी है। देश की संपत्ति में बहुजन समाज का अधिकार होना भी उनका मौलिक अधिकार बनता है।

इस पूरी व्यवस्था को देखने के लिए तथा उसका आंकलन करने के लिए एससी/एसटी/ओबीसी वर्ग के योग्य व जागरूक लोगों का नियंत्रक ग्रुप बनाया जाये और यह ग्रुप इस पूरी व्यवस्था के संचालन, क्रियान्वयन पर अपनी रिपोर्ट समय-समय पर सरकार और जनता को दे और अगर इस व्यवस्था में कोई खामी नजर आए तो उसका तुरंत निवारण किया जाये।

अम्बेडकरी शिक्षण संस्थान पूरे देश में पर्याप्त संख्या में खोले जाये: देश में बहुजन समाज (एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक) अधिसंख्यक है। जिनके लिए बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि उनके जीवन को सुधारने के लिए और उनमें व्याप्त पाखंड को मिटाने के लिए एक मिशन है इसलिए देश के सभी भागों में अम्बेडकरी शिक्षण संस्थान पर्याप्त संख्या में स्थापित किए जाएं। इन अम्बेडकरी संस्थानों में सभी प्रकार की आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने का प्रावधान होना चाहिए तथा इन संस्थानों का प्रबंधन भी अम्बेडकरी मिशन से जुड़े प्रबुद्धजनों के हाथ में होना चाहिए। इन सभी अम्बेडकरी शिक्षण संस्थानों में ब्राह्मणवादी तथा मनुवादियों को कोई भी जगह न दी जाये और न ही मनुवादी तथा ब्राह्मणवादी रोग से संक्रमित लोगों को इन संस्थानों में कर्मचारी नियुक्त किया जाये।

मोदी-संघी शासन में हुए सभी घोटालों की जाँच की जाये: मोदी के पिछले 10 साल के शासन में देश में अदृश्य भ्रष्टाचार चरम पर है। पूर्ववर्ती सरकारों में आम व्यक्तियों का जो काम 1 लाख रुपए का सुविधा शुल्क देकर हो जाता था वह मोदी-संघियों की डबल इंजन की सरकारों में 3-5 लाख रुपए का सुविधा शुल्क देकर भी मुश्किल से होता है। इस तरह किए गए भ्रष्टाचारों की उपयुक्त समिति बनाकर जाँच की जाये और दोषियों को देश के कानून के मुताबिक कठोरतम सजा एक निश्चित समय सीमा में दी जाए।

मोदी काल में हुई शिक्षक संस्थानों में नियुक्तियों को रद्द किया जाये: मोदी-संघी शासन में पाखंडी प्रचारकों को देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में घुसाया गया है और उन्हें घुसाने के लिए एंट्री लेबल मापदंडों को भी कमजोर किया गया है। इतना ही नहीं देश के सभी शिक्षण संस्थानों में संघियों को कुलपति बनाया गया तथा विश्वविद्यालयों में सभी महत्वपूर्ण पदों पर धड़ल्ले से संघियों को भर्ती किया गया। ऐसा करने से विश्वविद्यालयों का पूरा कैंपस भगवा कर दिया गया। छात्रों के लिए तार्किक व परिचर्चा कार्यक्रमों को कमजोर व खत्म किया गया। विश्वविद्यालयों में पाखंडी प्रचारकों, कथावाचकों आदि का समावेश किया गया जिसका परिणाम आज यह है कि देश के विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिकता और तार्किकता कहीं नजर नहीं आ रही है। विश्वविद्यालयों द्वारा अपने शोध छात्रों को गाय-गोबर-मूत्र के कार्यक्रम दिये जा रहे है। जिससे देश का भविष्य अंधकार की तरफ बढ़ रहा है। देश का भविष्य अच्छी शिक्षा पर ही निर्भर करता है इसलिए सभी शिक्षण संस्थाओं में जनता उपयोगी शोध कार्यक्रम चलाए जाए और देश के अधिसंख्यक लोगों को भविष्य की चुनौती से निपटने के लिए तैयार किया जाये। ब्राह्मणवादी-मनुवादी मानसिकता के व्यक्ति ये सब कार्य करने में अक्षम रहेंगे इसलिए इन कार्यक्रमों की पूरी बागडोर अम्बेडकरी मिशन से जुड़े शूद्र समाज के योग्य व समझदार लोगों के हाथ में दी जाये।

बहुजन जनता मोदी की छलावामयी गारंटियों में न फँसे: मोदी लंबे समय तक एक संघी प्रचारक रहे हैं। उनके शरीर की रग-रग में झूठ, पाखंड, छलावा, प्रपंच, इत्यादि कूट-कूटकर भरा है। देश के प्रबुद्धजनों के लिए यह कोई आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं है। चूंकि दुनिया में जितने भी तानाशाह हुए हैं वे सभी ऐसे ही गुणों से परिपूर्ण थे। इसलिए मोदी जी में भी ये सभी गुण तानाशाही प्रवृति के कारण है। मोदी देश की जनता से इतने झूठ बोल रहे हैं जितनी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। झूठ बोलने का गुण एक क्रूर तानाशाह की पहचान है उनकी तानाशाही प्रवृति के कारण ही मोदी सरकार के किसी भी मंत्री में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे खड़े होकर मोदी से कह सकें कि आपके वक्तव्य झूठे हैं जनता पर इन झूठे वक्तव्यों का उलटा असर हो रहा है। जनता पीएम मोदी से प्रभावित होने के बजाय आलोचक बन रही है और भाजपा को मिलने वाला वोट भी कम हो रहा है। जमीनी हालत को देखने से साफ नजर आ रहा है कि मोदी संघी शासन देश से समाप्त होने जा रहा है। देश की आम जनता मोदी जी को मजाकिया लहजे में कहने लगी है कि झूठ बोलने में मोदी जी विश्वगुरु बन गए है। इसलिए देश के सभी भाजपाई संघी झूठ में तारीफ के चार चाँद लगाकर झूठ जोर से बोलते है, बार-बार बोलते है और पूरी कोशिश करते है कि इस झूठ को जनता में सच बनाया जाये।

मोदी-संघी सरकार भरोसे के लायक नहीं: देश के जागरूक प्रबुद्ध लोग 60-70 के दशक में आम विचार विमर्श में कहा करते थे कि संघी सरकार (जनसंघ) सरमायेदारों की सरकार है जो मुख्य तौर पर अपने व्यापारी मित्रों और धन्नासेठों का ही काम करती है और सरमायेदारों की सरकार में आम जनता महँगाई की मार और रोजगार न मिलने से त्रस्त रहती है। मोदी के 10 साल के शासन में देश की जनता ने यह सब कुछ अपनी आँखों से देखा, शारीरिक और मानसिक रूप से महसूस किया है। 10 साल के शासन में संघी मनुवादियों ने जितना देश की जनता को निचौड़ा है उससे आम जनता का भरोसा मोदी संघी शासन से उठ चुका है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जन भावना का समर्थन होना सरकारों में बने रहने के लिए आवश्यक है। परंतु मोदी संघी सरकार जनता से अपना भरोसा खो चुकी है। वर्तमान समय में जो लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं अगर इस चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा कुछ ईमानदार चुनावी प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है और ईवीएम मशीनों द्वारा कोई हेरा-फेरी नहीं की जाती है तो देश की वर्तमान मोदी संघी सरकार यह चुनाव भारी अन्तर से हारने जा रही है। आम जनता के विभिन्न समूहों का आंकलन है कि मोदी जी को इस चुनाव में 150 सीटें भी मुश्किल ही ही मिल पायेंगी।

संविधान को अक्षुण किया जाये: देश की जनता के लिए संविधान एक पवित्र ग्रंथ है। उसकी पवित्रता को अक्षुण रखने के उद्देश्य से बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को एक साथ मिलकर संविधान की रक्षा करने के लिए सामूहिक संकल्प लेना होगा और जो आताताही संविधान विरोधी शक्तियाँ संविधान को किसी भी तरह का नुकसान पहुँचाने की कोशिश करे उनका हर कीमत पर मुकाबला करना होगा। भारतीय संविधान बहुजन समाज की प्रगति व उत्थान के लिए अति आवश्यक है। इसलिए संविधान को अक्षुण रखने का दायित्व भी उन्हीं के कंधों पर है। आने वाली जो सरकार संविधान को अक्षुण रखने के प्रतिबद्धता दिखाये, बहुजन समाज उसी को वोट देगा।

लेटरल एंट्री से नियुक्तियाँ तुरंत प्रभाव से समाप्त की जाए: लेटरल एंट्री के द्वारा अपने मित्रों के व्यापारी संस्थानों से संघी मानसिकता के लोग उठाकर सरकार के विभिन्न विभागों में सयुक्त सचिव बनाए जा रहे हैं। संयुक्त सचिव का पद सरकार में नीति निर्धारण के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है। इसलिए लेटरल एंट्री के द्वारा कोई भी नियुक्ति सरकार में न की जाए और आने वाली सरकार से बहुजन समाज की माँग है की लेटरल एंट्री तुरंत प्रभाव से निरस्त की जाए। सयुक्त सचिव के पदों पर बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों से संख्या बल के आधार पर उपयुक्त व्यक्तियों को नियुक्त किया जाए।

बहुजनों के संख्याबल के हिसाब से बजट में धन आबंटित किया जाये: बहुजन समाज के जातीय घटक संख्या बल के हिसाब से बहुसंख्यक है मगर सरकार में उनकी भागीदारी नगण्य है इसलिए संख्याबल के हिसाब से बहुजन समाज की जितनी संख्या बनती है उतनी ही नियुक्तियाँ बहुजन समाज से की जाये। देश का जितना बजट है उसका अनुपातिक भाग बहुजन समाज को आगे बढ़ाने के लिए खर्च किया जाए और समय-समय पर इसका आंकलन भी किया जाए।

आने वाली सभी सरकारों से निवेदन है कि वे संविधान के अनुसार आचरण करे। देश के सभी जातीय घटकों को उनकी संख्या बल के हिसाब से अधिकारों से लेस करे। बहुजन समाज के विभिन्न जातीय घटकों के लिए विशेष योजनाएं चलाकर उन्हें सम्पन्न व समृद्ध बनाएं।

जय भीम, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05