2025-11-01 14:44:47
नई दिल्ली। चुनाव के समय सभी राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने तरीके से वोट देने वाली जनता को भिन्न-भिन्न तरीकों से लुभाने, छलने व ठगने का प्रयास करती है। इन सब कार्यों की प्रतिस्पर्धा में बीजेपी व उससे जुड़े राजनैतिक दल जेडीयू, एलएनजेपी, हम आदि अधिक बढ़-चढ़कर वायदे और नाटक दिखा रहे हैं। लोकतंत्र में मतदाताओं की वोट से सरकार बनती है। संविधान में सरकार की कार्यशैली को समझने, उसका उसी आधार पर आंकलन करने के लिए पाँच वर्ष का पर्याप्त समय होता है। अगर फिर भी विफल सरकार को मतदाता राज्य सरकार को दोहराते हैं तो ऐसा करना वहाँ के मतदाताओं की कमजोर समझ, लालच और जातिवादी मानसिकता को दर्शाता है।
लोकतंत्र में मतदाताओं की वोट से सरकार बनती है। संविधान में सरकार की कार्यशैली को समझने, उसका उसी आधार पर आंकलन करने के लिए पाँच वर्ष का पर्याप्त समय होता है। अगर फिर भी विफल सरकार को मतदाता दोहराते हैं तो ऐसा करना वहाँ के मतदाताओं की कमजोर समझ, लालच और जातिवादी मानसिकता को दर्शाता है।
दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता का बिहार में झूठ व तर्कहीन नाटक: सीएम रेखा गुप्ता दिल्ली में संघी मानसिकता की मुख्यमंत्री है। उनको दिल्ली की प्रबुद्ध जनता किसी भी तार्किक सोच की महिला नहीं मानती है। वह अपने छात्र जीवन से ही एक धूर्त नेता रही हैं जो मनुवादी-संघियों को सबसे ज्यादा भाता है। उनके उसी व्यवहार को देखकर दिल्ली में रेखा गुप्ता को विधान सभा का चुनाव लड़ाया गया, और जीतने पर उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया गया। दिल्ली की जनता बिहार के सापेक्ष पढ़ी- लिखी व जागरूक है। मगर दिल्ली के चुनाव में संघी तंत्र, सरकारी तंत्र और चुनाव आयोग द्वारा मशीनों में गड़बड़ी के कारण भाजपा दिल्ली के चुनाव जीती। इससे पहले श्रीमति रेखा गुप्ता दिल्ली नगर निगम में भाजपा की एक पार्षद थी, लेकिन दिल्ली में विधान सभा का चुनाव जीताकर उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाना उनके धूर्त व्यवहार के कारण ही केंद्र की भाजपा सरकार को फिट बैठता है इसलिए उन्हें दिल्ली का सीएम बनाया गया। भाजपा संघियों के पास आज चुनाव में जनता के सामने नए वायदों का जखीरा शायद खत्म हो चुका है इसलिए बिहार की बीजेपी और नीतीश की पार्टियां रेखा गुप्ता जैसे धूर्त नेताओं को बुलाकर तर्कहीन और साक्ष्यहीन बयान दिलवा रही है। उनमें बुद्धि की इतनी कमी है कि वह यह भी नहीं समझ पाते कि हम जो बोल रहे हैं। उसका असर जनता में नकरात्मक होगा या सकारात्मक? बिहार में पिछले 20 वर्षों से नीतीश और उसके सहयोगी दलों (एनडीए) का शासन है। जिसमें भाजपा भी प्रमुख साझेदार है, तो श्रीमति रेखा गुप्ता को स्वयं यह बताना चाहिए कि वे विपक्ष को किस मुख से कह रही है कि बिहार की जनता दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर है? बिहार और देश की जनता पूछना चाहती है कि हमें मूर्ख न समझे और साथ में अपने आपको विद्वान भी न माने, जो कुछ आप और आपकी पार्टी ने बिहार और देश की जनता के बारे में बोला है। क्या श्रीमति रेखा गुप्ता बिहार के लोगों के पलायन की जिम्मेदारी अपने शासन के ऊपर लेंगी? चूंकि पिछले 20 वर्षों से बिहार में विपक्ष का शासन नहीं है, तो विपक्ष को 20 साल के शासन के लिए जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है? पिछले 20 वर्षों के दौरान बिहार और केंद्र की सरकार में बीजेपी के कारण, जो विफलता है उसकी जिम्मेदारी मोदी, शाह और रेखा गुप्ता को लेनी चाहिए
बहुजन समाज के जातीय घटक बिहार में न बिके और न भटके: बिहार चुनाव में बहुजन समाज के कई राजनैतिक दल मैदान में हैं और वे सभी शायद अपनी ताकत के बल पर खड़े नहीं है। उन्हें मनुवादी संघियों ने ही वहाँ बहुजन समाज की वोटों का बंटवारा करने के उद्देश्य से उतारा है। बहुजन समाज के राजनैतिक दल- बहुजन समाज पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, लोक जनशक्ति पार्टी, आजाद समाज पार्टी समेत अन्य कई राजनैतिक जातीय घटकों की पार्टियां मैदान में हो सकती हैं। जिनके माध्यम से मनुवादी संघी ब्राह्मणवादी पार्टियां बहुजन समाज के जातीय घटकों के वोटों का बंदरबाँट कर रही हैं। जो समाज की ताकत को शक्तिहीन करके मनुवादी संघियों की पार्टियों के लिए ठगने और छलने का काम करेंगी। मान्यवर कांशीराम जी के जमाने में बसपा का बिहार में जनाधार रहा है लेकिन अब बिहार में बहन जी संघियों के पाले में छिपे ढंग से बैटिंग कराने के लिए चुनावी मैदान में है। बिहार और देश का पूरा बहुजन समाज उनके हालिया बयानों से आंकलन कर सकता है। वे लखनऊ की रैली में योगी शासन की तारीफ करके बहुजन समाज के वोट किसको दिलाना चाह रही हैं? लखनऊ की रैली से एक दिन पहले ही नेशनल अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में दलित और मुस्लिमों के ऊपर बेताहाशा अपराधों में वृद्धि दिखाई गई है। वहाँ पर दलित व मुस्लिम के घरों व कारोबारों पर बुलडोजर न्याय अपेक्षाकृत अधिक चल रहा है। बहन जी क्या योगी के इसी राज व्यवस्था के लिए योगी का शुक्रिया अदा कर रही है?
आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर बहुजन समाज के एक लंपट नेता दिखाई देते हैं जिनकी शिक्षा-दीक्षा संघी भाजपाइयों की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से शुरू होती है। संघियों का इतिहास रहा है जब उनका कोई प्रशिक्षु उनका सदस्य रह लेता है तो वह जिंदगी भर उनकी संघी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाता। चंद्रशेखर उर्फ रावण ने अपने आंदोलनों में बहुजन समाज के युवकों को बड़ी संख्या में आकर्षित करके और उनके द्वारा असंवैधानिक कृत्य कराकर उनके ऊपर मुकदमे दर्ज कराये हैं।
चिराग पासवान की पार्टी बिहार में एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है उनका छिपा लक्ष्य यह है कि चिराग पासवान के कोटे से जो भी लोग जीतकर आएंगे वे मूल रूप से भाजपा के ही समर्थक होंगे। अगर ऐसा करने से चिराग पासवान उनको रोकते हैं तो फिर जीतकर आए लोग चिराग से अलग होकर भाजपा का दामन थाम लेंगे। इसलिए ही चिराग को 29 सीटें दी गई है। अगर नीतीश कुमार और भाजपा बराबर-बराबर सीटें जीतने में कामयाब होते है तो चिराग पासवान की पार्टी के संघी मानसिकता के उम्मीदवार और नीतीश की जेडीयू के संघी मानसिकता के उम्मीदवार एक साथ अपने दलों से टूटकर भाजपा का दामन थाम लेंगे! इसी संघी नीति के तहत नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया है। चुनाव के परिणाम में अगर नीतीश को भाजपा के सापेक्ष कम सीटें मिलती हैं तो नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। बिहार में सत्ता का यह खेल महाराष्ट्र की तर्ज पर शिंदे को मुख्यमंत्री के पद से हटाने की रणनीति के तहत खेला जाएगा। इस खेल में यह तय है कि नीतीश कुमार अब मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। चिराग का चरित्र बेहद ब्राह्मणवादी और मनुवादी है वे अपने आपको मोदी का हनुमान बताते हंै। उनके माथे पर लगा ब्राह्मण-पुजारियों से भी लंबा तिलक बहुजन समाज को यह दिखाने की कोशिश है कि अब चिराग पासवान (अपने जातीय घटक) का नहीं हैं। चूंकि वे ब्राह्मण माँ से पैदा होकर ब्राह्मण हैं इसलिए पासवान जाति के अन्य लोगों से चिराग श्रेष्ठ हैं। बहुजन समाज से हमारा निवेदन है कि चिराग पासवान के ऐसे छलावों से सावधान रहें। इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि संघी मानसिकता की भाजपा ने चिराग के चाचा को पहले अपनी गोद में लेकर चिराग को हराने का प्रयास किया था और अब वे चिराग को अपनी गोद में बैठाकर चिराग के चाचा और नीतीश की राजनीति को ध्वस्त करना चाहते हैं ताकि भाजपा को बिहार की सत्ता की कुर्सी मिले।
बिहार में मांझी पर तरश खाकर या उसे मूर्ख समझकर नीतीश कुमार ने कुछ समय के लिए बिहार का मुख्यमंत्री बनवा दिया था। लेकिन नीतीश के उस दांव ने मांझी में एक असंगत और अतार्किक भ्रम पैदा कर दिया कि वे एक योग्य व्यक्ति है जिसके कारण वे बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए, इसलिए अब वे बहुजन समाज की बात करके उनकी वोटों का बंटवारा करके संघियों की ताकत बिहार में बढ़ाना चाहते है और उनके द्वारा दी गई आर्थिक शक्ति से चुनावी मैदान में हैं। अगर बहुजन समाज के लोग उन्हें वोट देते हैं तो उससे समाज को कोई फायदा नहीं होगा। बल्कि उनकी वोट की ताकत का विघटन होकर समाज शक्तिहीन ही होगा। इसलिए मुसहर जाति और अन्य बहुजन समाज के जातीय घटकों से निवेदन है कि वे जीतन राम मांझी को वोट देकर अपनी वोट को खराब न करें।
देश को दलित-मुस्लिम के सामाजिक गठबंधन की जरूरत: सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार देश में शूद्रों के उन्हीं जातीय घटकों ने धर्म परिवर्तन किया था जो बहुजन समाज की कामगार जातीय के घटक थे। जैसे-नाई, कुम्हार, चमार, धोबी, बढ़ई, लौहार आदि जिन्होंने इस्लाम में परिवर्तित होकर भी अपनी मूल जातियों को नहीं छोड़ा जबकि इस्लाम में जाति का कोई स्थान नहीं है। भारत के मुसलमानों में ही जातियाँ पाई जा रही है विश्वभर के मुसलमानों में जाति नाम की कोई चीज नहीं है। वर्तमान समय में हिन्दूवादी संघी मानसिकता के द्वारा बहुजन समाज के लोगों का जो उत्पीड़न किया जा रहा है यह उत्पीड़न मुस्लिम व दलित समाज के ऊपर ही सबसे ज्यादा है और उत्तर प्रदेश इस अपराधिक कृत्य में अग्रणीय प्रदेश है। जहां की संघी योगी सरकार मकान व दुकानों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें ध्वस्त कर रही है। मान्यवर साहब कांशीराम जी ने और उनसे पहले बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर जी ने दलित व मुस्लिम संगठनों को एक एकजुट होने का संदेश दिया जो उन्हें राजनैतिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिए था, जो आज भी अधूरा है। वर्तमान समय में मनुवादी संघी सरकारों की कार्यशैली को देखकर दलित व मुस्लिम समुदाय को एक मजबूत सामाजिक गठबंधन बनाना चाहिए और अपनी मजबूत राजनीतिक शक्ति का उदय उसी आधार पर करना चाहिए। बहुजन समाज के नेताओं ने जो राजनैतिक दलों पर कब्जा किया हुआ है उनपर दलित व मुस्लिम समुदाय को आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। उनके पूर्व में किये गए कार्यों और वर्तमान में किये गए कार्यों को देकर ही उनका तर्कसंगत आंकलन करना चाहिए। मुस्लिम और दलित समाज के संगठनों को अपने ईमानदार, जातिविहीन व धर्म निरपेक्ष नेताओं की पहचान करके उन्हें सामूहिक राजनीति में उतारना चाहिए।





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